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संग्रहालय और यादें
भारत में संग्रहालयों का स्वरूप अब केवल महानगरों तक सीमित नहीं रहा। अब छोटे शहरों और कस्बों में भी अनोखे संग्रहालय उभर रहे हैं, जो स्थानीय इतिहास, संस्कृति और सूक्ष्म पहचान को संजोए हुए हैं। हालांकि, इन्हें वित्तीय सहायता, रखरखाव और कम दर्शक संख्या जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद डिजिटलीकरण, शैक्षिक पहलों और बिएनाले जैसे नवाचार इन संग्रहालयों को सांस्कृतिक आदान-प्रदान के नए अवसर प्रदान कर रहे हैं। क्या ये छोटे शहरों के संग्रहालय विरासत को संजोते हुए आधुनिकता
May 20, 20246 min read


बदनामी से सहयोग तक
भारत एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है, जहाँ विशेषज्ञों की भारी कमी और इलाज की बड़ी खाई बनी हुई है। सरकार की कोशिशों के बावजूद, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सामाजिक बदनामी (stigma) और जागरूकता की कमी अब भी बड़ी बाधाएँ हैं।
हालांकि, टेली-मेंटल हेल्थ सेवाओं और एआई आधारित प्लेटफॉर्म जैसे डिजिटल उपाय उम्मीद की किरण दिखा रहे हैं। लेकिन क्या ये तकनीकी प्रयास इतने प्रभावी साबित होंगे कि देश के हर कोने तक मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं पहुँच सकें? या फिर ज़मीनी स्तर पर समुदाय आधारि
May 10, 20248 min read


बूढ़ा होता भविष्य
भारत की आबादी धीरे-धीरे बूढ़ी होती जा रही है और 2050 तक यह दोगुनी हो जाएगी, जिससे स्वास्थ्य सेवा, आवास और सामाजिक व्यवस्था जैसी नई चुनौतियाँ सामने आएंगी। छोटे शहरों में बुजुर्गों को समर्थन की कमी का सामना करना पड़ता है, लेकिन सामुदायिक प्रयास जैसे पीढ़ियों के बीच कार्यक्रम, वरिष्ठ नागरिक आवास परियोजनाएं और पुनर्जीवित सार्वजनिक स्थान मददगार साबित हो रहे हैं। मानसिक स्वास्थ्य और बुजुर्गों के प्रति दुव्यवहार जैसे गंभीर मुद्दों के बीच क्या भारत अपने बुजुर्गों के लिए उम्र के अनुकू
May 3, 20247 min read


दीवारों से परे किताबें
भारत में किताबें फिर से लोकप्रिय हो रही हैं, लेकिन जिस तरह आप सोचते हैं, वैसी नहीं! छोटे शहरों और कस्बों में छोटे-छोटे लाइब्रेरी कई अनोखे स्थानों पर बन रही हैं, जैसे सैलून और बस स्टैंड, साथ ही पुरानी लाइब्रेरी का डिजिटल रूपांतरण भी हो रहा है। पढ़ाई की इस क्रांति के बीच, पुराने संसाधन और असमान लाइब्रेरी पहुंच अब भी बड़ी चुनौती हैं। तो फिर शहर बढ़ते हुए किताबों के शौकीनों की जरूरतों को कैसे पूरा कर रहे हैं? सरकार की पहल और स्थानीय समुदाय के प्रोजेक्ट नए ज्ञान के केंद्र बना रहे
Apr 25, 20248 min read


लोकसभा चुनाव 2024
बाइक रैली से लेकर लोक गीतों तक, बड़े और छोटे शहर वोटरों को भारत के 2024 के आम चुनावों में ज्यादा से ज्यादा हिस्सा लेने के लिए हर तरह के प्रयास कर रहे हैं। लेकिन क्या ये पोस्टकार्ड और भावुक अपीलें प्रवासी मजदूरों, एनआरआई और पहली बार वोट देने वालों तक पहुंच पाएंगी? जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है — असल और राजनीतिक दोनों तरह से — भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था एक नए और बड़े चुनौती के लिए तैयार हो रही है।
Apr 19, 20245 min read


छोटे शहरों से लेकर बड़ी लीग तक
मिदनापुर और मेरठ जैसे शहरों में फैन पार्क से लेकर बढ़ती फैंटेसी लीग तक, IPL धीरे-धीरे भारत के छोटे शहरों में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। ऐसे क्रिकेटर जो ऐसे शहरों से निकलते हैं जिन्हें अक्सर नक्शे पर ढूंढना मुश्किल होता है, और बढ़ती क्षेत्रीय भाषाओं में कमेंट्री के साथ, IPL अब भारत के दिल के इलाकों में ज़्यादा जोर से धड़क रहा है। नए क्रिकेट स्टेडियम शहरों के नज़ारों को बदल रहे हैं, और IPL अब सिर्फ क्रिकेट नहीं बल्कि स्थानीय गर्व का भी प्रतीक बन गया है।
Apr 10, 20244 min read


बदलाव की दवा
बेगुसराय में ICU सुधार से लेकर छोटे शहरों में मोबाइल एंडोस्कोपी यूनिट तक, भारत के टियर-2 और टियर-3 शहरों में स्वास्थ्य सेवा में बदलाव हो रहा है। बड़े अस्पताल अपनी क्षमता बढ़ा रहे हैं, दवाओं की पहुँच बेहतर हो रही है, और होम हेल्थकेयर भी तेजी से लोकप्रिय हो रही है। पहले जहाँ यह माना जाता था कि गुणवत्तापूर्ण इलाज केवल मेट्रो शहरों में ही मिलता है, अब वह सोच धीरे-धीरे बदल रही है। यह बदलाव भले ही धीमा हो, लेकिन छोटे-छोटे शहरों में लोगों की ज़िंदगियाँ बदल रहा है।
Apr 4, 20244 min read


पर्वतमाला परियोजना
भारत ने मुश्किल इलाक़ों और भीड़भाड़ वाले शहरों में चलने-फिरने की समस्याओं को हल करने के लिए रोपवे पर भरोसा किया है। पर्वतमाला योजना के तहत 200 से ज़्यादा प्रोजेक्ट्स की तैयारी है, जिसमें छोटे शहर इस बदलाव के मुख्य केंद्र बन रहे हैं। लेकिन इस हरित पहल की सफलता स्थानीय लोगों की स्वीकृति, पर्यावरणीय आकलन और रोपवे की रोज़मर्रा की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में अच्छी तरह एकीकृत होने पर निर्भर करेगी। क्या रोपवे दैनिक यात्री के लिए भरोसेमंद साधन बन पाएंगे?
Mar 28, 20243 min read


विश्व जल दिवस 2024
बेंगलुरु के जल संकट की खबरें बड़ी सुर्खियां बनती हैं, लेकिन भारत के छोटे शहर धीरे-धीरे सूखते जा रहे हैं। होसपेटे, मसूरी, और देवनहल्ली जैसे शहरों में औद्योगिक प्रदूषण से लेकर भूजल स्तर गिरने तक, पानी की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। नई-नई योजनाएं और वर्षा जल संचयन अभियान तो शुरू हो रहे हैं, लेकिन क्या ये छोटे शहर बढ़ते संकट से बेहतर तरीके से निपट पाएंगे?
Mar 21, 20243 min read


लोग इनोवेटिव तरीके से घर कैसे बनाते हैं?
भारत की अनौपचारिक बस्तियां इतनी तेजी से बढ़ रही हैं कि शहर उनसे निपटने में असमर्थ हैं। आवास की कमी, पलायन और खराब योजना के कारण बन रही ये फैली हुई झुग्गियां बुनियादी ढांचे, पानी और स्वास्थ्य जैसी समस्याओं का सामना कर रही हैं। संभलपुर के जमीनी स्तर के क्लीनिक से लेकर अहमदनगर की खाने योग्य छतों तक, समुदाय वहीं कदम बढ़ा रहे हैं जहाँ सरकारी व्यवस्था कमजोर पड़ जाती है। लेकिन क्या ये संघर्षशील इलाके अनौपचारिक शहरी विस्तार के बढ़ते संकट का समाधान बन सकते हैं?
Mar 14, 20243 min read


गुस्साए हुए या सताये हुए वन्यजीव?
जब जंगल सिकुड़ते हैं और शहर फैलते हैं तो क्या होता है? देहरादून में रात्री गश्त से लेकर कोयंबटूर में एआई निगरानी तक, भारत के छोटे-छोटे शहर अब मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं से निपट रहे हैं। हाथी, तेंदुए, बंदर और अन्य वन्यजीव शहरी क्षेत्रों के करीब आने लगे हैं, जिससे समुदाय सतर्कता और सहअस्तित्व के बीच फंसे हुए हैं। जहां कुछ शहर तकनीक और बाड़ों का सहारा लेते हैं, वहीं कुछ समुदाय जागरूकता बढ़ाकर संतुलन बहाल करने की कोशिश कर रहे हैं।
Feb 29, 20242 min read


काम पर (लेकिन बेड़ियाँ तोड़कर)
भारत के छोटे शहरों की महिलाएं परंपराओं को चुनौती दे रही हैं और व्यवसाय, तकनीक, और गिग इकोनॉमी जैसे नए और असामान्य क्षेत्रों में अपनी पहचान बना रही हैं। करियर प्लेटफॉर्म और नीतियां उनके लिए नए अवसर खोल रही हैं, लेकिन क्या ये बाधाओं को पार करने के लिए काफी हैं? महिलाओं के उद्यमी और पेशेवर के रूप में बढ़ते कदम कार्यबल को नया आकार दे रहे हैं, लेकिन उनके सतत विकास और समावेशन के लिए क्या जरूरी है?
Feb 29, 20244 min read


आगे बढ़ती साइकल
कोटा में कोचिंग छात्रों से लेकर कोच्चि की महिलाओं तक, भारत के छोटे शहरों में साइक्लिंग फिर से लोकप्रिय हो रही है। कुछ शहर साइकिल ट्रैकों के लिए जगह बना रहे हैं और सार्वजनिक साइकल सिस्टम का नवीनीकरण कर रहे हैं, जबकि अन्य जगहों पर अतिक्रमण और उपेक्षा की समस्या बनी हुई है। इस प्रगति और चुनौतियों के बीच, स्थानीय समुदाय स्वच्छ और सुरक्षित परिवहन के लिए बदलाव की पहल कर रहे हैं। आपका शहर इस सफर में कहां खड़ा है?
Feb 27, 20243 min read


विश्व वेट-लैंड (आर्द्रभूमि) दिवस
आर्द्रभूमि केवल पानी के जमाव नहीं हैं, बल्कि ये शहरों की ज़िंदगी के छिपे हुए स्रोत हैं! कोलकाता से गुवाहाटी और उदयपुर तक, नागरिक की रिपोर्ट और पैनल चर्चा शहरी आर्द्रभूमियों की भूमिका पर प्रकाश डालती है — कैसे यह अक्सर अनदेखी की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र हमारे शहरों को पर्यावरणीय, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से सहारा देती है। जैसे-जैसे जलवायु संकट बढ़ रहा है, क्या स्थानीय नवाचार और जिम्मेदारी हमारे नजरिए को बदल कर शहरी आर्द्रभूमियों को बचा सकते हैं?
Feb 9, 20245 min read


कहानियों से भरी सड़कें
बटाला में बस टूर, पलक्कड़ में पुरानी राहों का सफर, और बाराबंकी के भूले-बिसरे कोठियों और कॉलोनियल गलियों की कहानी सुनाने वाले — ये हेरिटेज वॉक भारत के छोटे शहरों को फिर से जानने का रास्ता दिखा रहे हैं। अपने अतीत से जुड़कर ये वॉक शहरों में नागरिक गर्व और सांस्कृतिक यादों को जागृत कर रहे हैं। लेकिन क्या सच में ये पैदल यात्राएं शहरों को उनकी असल पहचान याद दिला सकती हैं? और जब शहरी क्षरण, नीतिगत कमी और धुंधली होती हुई इतिहास की कहानी हो, तो इस चलन को कैसे बनाए रखा जा सकता है?
Feb 2, 20243 min read


इलेक्ट्रिक वाहनों की लहर
ई-रिक्शा छोटे शहरों जैसे दरभंगा और माथेरन में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं और पर्यावरण के अनुकूल सफर के विकल्प पेश कर रहे हैं। लेकिन इसके साथ ही कई चुनौतियां भी सामने आ रही हैं। सुरक्षा के मसले, नियमों की कमी और स्थानीय विरोध इस हरित परिवहन क्रांति की जटिलताओं को दर्शाते हैं। आखिरी मील की कनेक्टिविटी की बढ़ती मांग के बीच, क्या ई-रिक्शा वाकई टिकाऊ और भरोसेमंद शहरी यात्रा का वादा पूरा कर पाएंगे?
Jan 31, 20243 min read


कचरा प्रबंधन: एक नया तरीका
छोटे शहरों में एआई से चलने वाली नावें, आईटी टूल्स और कचरे से ऊर्जा बनाने वाले प्लांट्स जैसे प्रयोग हो रहे हैं। लेकिन असली चुनौती है इन पहलों को बड़े पैमाने पर लागू करना, जनता को साथ जोड़ना और नियमों का कड़ाई से पालन कराना। जहाँ केरल जैसे राज्य ज़ीरो-वेस्ट मिशन की सफलता का उदाहरण हैं, वहीं कई जगहों पर कचरे के अलगाव जैसे बुनियादी कामों में भी दिक्कतें हैं। कचरा बढ़ता जा रहा है, तो साथ ही बढ़ रही है स्मार्ट, समुदाय-आधारित और तकनीक पर आधारित समाधानों की जरूरत। क्या ये नवाचार शहरो
Jan 22, 20243 min read


फास्ट फूड के शौकीन
जैसे ही मैकडॉनल्ड्स नागपुर और डोमिनोज़ लातूर जैसे छोटे शहरों में खुल रहे हैं, ये फास्ट फूड चेन वहां के खाने के तरीकों को बदल रहे हैं। सस्ता, तेज़ और आधुनिक दिखने वाला—क्विक सर्विस रेस्टोरेंट्स (QSR) बढ़ती मांग का फायदा उठा रहे हैं। लेकिन बढ़ते स्वास्थ्य संकट और पर्यावरणीय कीमतों के बीच, क्या ये चेन सिर्फ सुविधा दे रही हैं या इसके पीछे कुछ और बड़ा नुकसान छुपा है?
Jan 21, 20243 min read


आग से मुकाबला
शिमला, विशाखापत्तनम और शिलांग जैसे शहरों में आग लगने की घटनाओं ने ये दिखाया है कि कई शहरी केंद्र आग जैसी आपदाओं के लिए कितने असमर्थ हैं। कुछ शहरों ने सुरक्षा उपायों को सशक्त किया है, लेकिन कई जगहें पुराने कानूनों, अग्निशमन गाड़ियों की कमी और जोखिम भरे भवनों की समस्या से जूझ रही हैं। जैसे-जैसे शहर फैलते जा रहे हैं, क्या छोटे शहर अगली बार आग लगने से पहले तैयारियों की संस्कृति को मजबूत कर पाएंगे?
Jan 15, 20243 min read


स्थानीय धरोहरों का निर्माण
भारत के छोटे शहरों में इत्र की दुकानों से लेकर मिट्टी के बर्तनों और उपग्रहों के लिए चाँदी के पुर्जों तक, कई अनोखे उद्योग मौजूद हैं। कुछ उद्योग नई तकनीक और सरकारी मदद से नई जान पा रहे हैं, जबकि कई को कम होती मांग और बढ़ती वैश्विक प्रतियोगिता से मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। क्या युवा इनोवैटर और समझदार नीतियाँ इन स्थानीय विरासत उद्योगों को आज की दुनिया में फलने-फूलने में मदद कर पाएंगी?
Jan 10, 20243 min read
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