दीवारों से परे किताबें
- connect2783
- Apr 25, 2024
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Updated: Jul 16
भारत में किताबें फिर से लोकप्रिय हो रही हैं, लेकिन जिस तरह आप सोचते हैं, वैसी नहीं! छोटे शहरों और कस्बों में छोटे-छोटे लाइब्रेरी कई अनोखे स्थानों पर बन रही हैं, जैसे सैलून और बस स्टैंड, साथ ही पुरानी लाइब्रेरी का डिजिटल रूपांतरण भी हो रहा है। पढ़ाई की इस क्रांति के बीच, पुराने संसाधन और असमान लाइब्रेरी पहुंच अब भी बड़ी चुनौती हैं। तो फिर शहर बढ़ते हुए किताबों के शौकीनों की जरूरतों को कैसे पूरा कर रहे हैं? सरकार की पहल और स्थानीय समुदाय के प्रोजेक्ट नए ज्ञान के केंद्र बना रहे हैं और बदलाव ला रहे हैं!

"दिमाग के लिए पढ़ना ठीक वैसा ही है, जैसा शरीर के लिए व्यायाम है।" -जोसेफ एडिसन
क्या आप जानते हैं कि हर दिन केवल 15 मिनट पढ़ लेने भर से ही 69% अधिक सफल, 55% अधिक तनावमुक्त और 33% अधिक खुश महसूस कर सकते हैं? किताब पढ़ने से दिमाग का विस्तार होता है, कल्पना शक्ति बढ़ती है, रचनात्मक सोच बढ़ती है, तार्किक बुद्धि तेज होती है और भावनात्मक बुध्दिमत्ता का विकास होता है। एनओपी वर्ल्ड कल्चर स्कोर इंडेक्स द्वारा 30 प्रमुख देशों पर किये गए सर्वे में भारत शीर्ष पर है, भारतीय लोग हर हफ्ते 10.4 घण्टे पढ़ते हैं।
भारत के सार्वजनिक पुस्तकालय पर एक नजर
भारत में तकरीबन 70,817 सार्वजनिक पुस्तकालय हैं, जिनमें से 4,580 पुस्तकालय शहरी क्षेत्रों में स्थित हैं। ये आंकड़े इस बात को उजागर करते हैं की ग्रामीण क्षेत्रों में 11,500 व्यक्तियों पर एक पुस्तकालय है जबकि शहरों में 80,000 लोगों पर केवल एक पुस्तकालय है। हालांकि देश की स्वतंत्रता के बाद से पुस्तकालयों की बढ़ोतरी में सुधार हुआ है लेकिन लम्बे समय से इनका ठीक तरीके से रखरखाव नहीं किया गया है। मौजूदा समय में भारत के पुस्तकालय कई मुसीबतों का सामना कर रहे हैं जैसे कि जगह की कमी, स्टाफ की कमी और अनुचित प्रबंधन।
बिहार विधानसभा पुस्तकालय समिति के अध्यक्ष की माने तो बिहार में 1950 के दशक के दौरान 540 सार्वजनिक पुस्तकालय थे, जिनमें से आज केवल 51 ही चल रहे हैं। समिति ने यह भी बताया कि कुल छह जिले कैमूर, अरवल, शिवहर, शेखपुरा, बांका और किशनगंज में एक भी पुस्तकालय नहीं है। भारत में सार्वजनिक पुस्तकालयों के उपयोग में गिरावट को देखते हुए कई राज्यों की सरकार, एनजीओ और कुछ लोगों की मदद से नए पुस्तकालयों की स्थापना करने, मौजूद पुस्तकालयों को डिजिटल रूप से मजबूत करने और दूरदराज के इलाकों में पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रयास किये जा रहे हैं।
पुस्तकालय तक पहुंच बढ़ाने के लिए सरकारी और सामुदायिक पहल
तमिलनाडु सरकार ने जिला अस्पताल और बस टर्मिनल जैसे सार्वजनिक स्थानों पर 100 छोटे पुस्तकालय और वाचनालय शुरू करने के लिए 3 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है। इसी तरह केंद्र सरकार ने इसी साल सार्वजनिक पुस्तकालय की बुनियादी जरूरतों में सुधार के साथ ही दूसरी सुविधाओं को बढ़ाने के लिए जम्मू कश्मीर के लिए 5000 करोड़ रुपये देने की घोषणा की है। इस योजना में नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया की मदद से ग्रामीण और अर्ध-नगरीय (सेमी-अर्बन) क्षेत्रों के बच्चों और किशोरों के लिए किताबों और डिजिटल संसाधनों तक बेहतर पहुंच प्रदान करना शामिल है।

हालांकि सरकार के द्वारा नई लाइब्रेरी शुरू करने या मौजूदा लाइब्रेरी को अपग्रेड करने के कई प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन फिर भी एक व्यापक राष्ट्रीय पुस्तकालय नीति के न होने की वजह से यह हाशिये पर रहने वाले समुदाय की पहुंच से अभी भी दूर हैं।
छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों के लोगों द्वारा मिनी लाइब्रेरी शुरू करने और पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है। केरल के सत्यनारायण मुंडायुर, जिन्हें लोग अंकल मूसा भी कहते हैं। ये अरुणाचल प्रदेश में शिक्षा को बढ़ावा देने में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। इन्होंने कई पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन किया है और इसके साथ ही लोहित युवा पुस्तकालय आंदोलन के एक भाग के रूप में तेजू नामक कस्बे में 13 बैम्बू लाइब्रेरी (बांस से बने पुस्तकालय) को भी शुरू किया है। इसी तरह असम की एक समलैंगिक कार्यकर्ता, रितुपर्णा निओग ने बच्चों के लिए ऑनलाइन कहानी सुनाने की पहल की। इससे प्रेरित होकर उन्होंने जोरहाट में 600 पुस्तकों के साथ दो मुफ्त पुस्तकालय की शुरुआत की। अब यहाँ पुस्तकों की संख्या बढ़कर 1200 हो गई है। इसी तरह कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय(यू सी),बर्कले में मानव विज्ञान (एंथ्रोपोलॉजी) की एक प्रोफेसर आरती सेठी ग्रामीण क्षेत्रों तक पुस्तकालय की पहुंच बढ़ाने के लिये सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। इसी साल जनवरी 2024 में उन्होंने समाज के वंचित तबकों तक सूचना की पहुंच को बढ़ाने के लिए महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में एक रीडिंग सेशन की मेजबानी की।

कलकत्ता की सबसे पुरानी दुकानों में से एक दासगुप्ता एंड कंपनी ने अपनी दूसरी मंजिल को एक मुफ्त पुस्तकालय में बदल दिया है जिसका उद्देश्य ज्ञान और सामर्थ्य (आसानी से पहुंच) के बीच की कमी को दूर करना है।
साल 2005 में भुवनेश्वर स्थित बकुल फाउंडेशन ने ‘पुस्तकें दान करें: पुस्तकालय बनाएं’ अभियान की शुरुआत की, जिसने उड़ीसा में पुस्तकालय आंदोलन को बढ़ावा दिया। ये सार्वजनिक पुस्तकालय अब कटक, परलाखेमुंडी, विश्वनाथपुर में और 15 मॉडल स्कूल लाइब्रेरी के तौर पर भुवनेश्वर, गंजम और मलकानगिरी में शुरू हो चुके हैं और सभी के लिए पूरी तरह से निःशुल्क हैं।
मिनी लाइब्रेरी का बढ़ता चलन

आइजोल के डॉ. लॉमज़ुआला और डॉ. लल्लाइसंगज़ुआली ने युवाओं खासकर छात्रों में पढ़ने की आदत को बढ़ावा देने के लिए सड़क के किनारे एक ‘लिटिल फ्री लाइब्रेरी’ नामक मिनी लाइब्रेरी को शुरू किया है।
आइज़ोल की छोटी-छोटी मुफ़्त लाइब्रेरियों से प्रेरित होकर अरुणाचल प्रदेश की दो बहनें नगुरंग मीना और रीना ने पापुम पारे, कुरुंग कुमे और तिरप जिलों में सड़क किनारे लाइब्रेरी शुरू की। साल 2021 में केरल के पेरुकुलम को “पुस्तक गांव” नाम दिया गया, यहाँ 14 ऐसे स्थान हैं जहाँ स्थानीय लोग पुस्तकों का आदान-प्रदान करते हैं और उधार भी ले सकते हैं। 5,000 लोगों के घर वाला यह गाँव सामूहिक रूप से पढ़ने की भावना को बढ़ावा दे रहा है। इसी तरह पश्चिम बंगाल के एक शहर पुजाली में महिलाओं के समूह ने मिलकर एक वृद्धाश्रम में छोटा सा पुस्तकालय शुरू किया। इस पुस्तकालय में बंगाली, अंग्रेजी और हिंदी में 400 किताबें और पत्रिकाएँ हैं। यह इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग करने के बजाय पुस्तकें पढ़ने की शौकीन पीढ़ी की जरूरतों को पूरा करता है।
इसी तरह मणिपुर के उखरूल जिले के हलांग गांव में 17 युवाओं के एक समूह ने मिलकर ज़िंगकट वोनरा पार्क में मुफ्त मिनी लाइब्रेरी शुरू की, जो पढ़ने के लिए शांत माहौल प्रदान करती है। द नीलगिरी माउंटेन आर्ट्स इनिशिएटिव (तनमई) की तरफ से माधवन पिल्लई, शोभना चंद्रशेखर और अनीता नानजपा ने उदगमंडलम और कुन्नूर जैसे शहरों में 'लाइब्रेरी वन टू' प्रोग्राम की शुरूआत की। यह परियोजना स्थानीय लोगों को सार्वजनिक क्षेत्रों में रखे गए बक्सों से पुस्तकों के लेन-देन की आजादी देता है। इस पहल ने दोनों शहरों के स्थानीय लोगों के बीच तेजी से लोकप्रियता हासिल की है।
थूथुकुडी के श्री पोन मारियाप्पन अपने सैलून के साथ एक छोटी सी लाइब्रेरी भी बनाए हुए हैं, जिसमें तमिल और अंग्रेजी दोनों भाषाओं की 900 पुस्तकें रखी है। वह उन ग्राहकों को 30 रुपये की छूट (बाल कटवाने का शुल्क 80 रुपये) देते हैं, जो उनकी सैलून में बैठकर किसी भी पुस्तक के कम से कम 10 पन्ने पढ़ लेते हैं।
डिजिटल लाइब्रेरी का विकास
पहले के समय में शिक्षाविद और बाकी दूसरे लोग सूचना तक अपनी पहुंच बनाने के लिए पुस्तकालय पर बहुत अधिक निर्भर थे। हालांकि हालिया दिनों में इसमें तेजी से बदलाव देखने को मिला है। जो लोग पहले पुस्तकालय आया करते थे, अब वे ऑनलाइन संसाधनों का उपयोग कर सूचना प्राप्त कर लेते हैं और इस कारण यहाँ आने वाले लोगों की संख्या में भारी गिरावट हुई है। हालांकि इनमें से कई पुस्तकालयों में डिजिटल बदलाव किया जा रहा है ताकि इसके उपयोगकर्ता की संख्या में बढ़ोतरी हो सके।
लखनऊ में 1868 में स्थापित ऐतिहासिक अमीर-उद-दौला पब्लिक लाइब्रेरी को स्मार्ट सिटी पहल की तर्ज पर डिजिटल रूप से बदला जा रहा है। इस कदम से 1.6 लाख से भी अधिक पुस्तकें अपनी डिजिटल फॉरमेट की वजह से ज्यादा लोगों तक अपनी पहुंच बनाने में सफल हो रही है।
इसी तरह स्मार्ट सिटी मिशन के एक भाग के रूप में देहरादून के मॉडर्न दून लाइब्रेरी और रायपुर के नालंदा परिसर ऑक्सी रीडिंग जोन लाइब्रेरी के तरह ही और 80 डिजिटल लाइब्रेरी को बनाया गया है। प्रयागराज में भी इलाहाबाद राजकीय सार्वजनिक पुस्तकालय को फिर से निर्मित किया जा रहा है।
सामूहिक पठन में सांस्कृतिक बदलाव और सुविधाओं की जरूरत
एक तरफ सार्वजनिक पुस्तकालयों की मांग में गिरावट देखी जा रही है वहीं निजी स्टडी सेंटर्स और रीडिंग रूम की लोकप्रियता में बढ़ोतरी हो रही है, खासकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के बीच इसकी बहुत मांग है। जयपुर में भी ऐसे स्टडी सेंटर चलन में हैं क्योंकि ये वातानुकूलित हॉल, आरामदायक बैठने की व्यवस्था, वाई-फाई की सुविधा और अध्ययन के लिए शांत वातावरण जैसी सुविधाएं देते हैं। अक्सर छात्रावास और साझा आवासों में ऐसी सुविधा नहीं होती है। सार्वजनिक पुस्तकालय के मुकाबले निजी रीडिंग रूम की मांग में बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण साफ शौचालय और कूलर जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी है। कटक नगर निगम ने स्कूली छात्रों और युवाओं की सुविधा के लिए शहर के कई मलिन बस्तियों में सार्वजनिक पुस्तकालय स्थापित किये। हालांकि इन पुस्तकालयों को स्थानीय लोगों द्वारा सकारात्मक रूप से स्वीकार किया गया है लेकिन यहाँ पीने के पानी और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
महामारी के बाद पढ़ने में बढ़ोतरी
कोविड-19 की चुनौतियों के बावजूद बैंगलोर के बुकस्टोर की बिक्री में 30-40% की बढ़ोतरी देखने को मिली।
गांधी बाजार में अंकिता पुस्तक के मालिक प्रकाश कंबथल्ली ने बताया कि साल 2020 में उन्होंने ऑनलाइन बुक स्टोर शुरू किया था और कोविड-19 के बाद इसकी बिक्री तेजी से बढ़ी है। इनके अनुसार इनकी ज्यादातर बिक्री टियर-2 और 3 शहरों में होती है।
नीलसन के एक अध्ययन,‘भारतीय पुस्तक उपभोक्ता पर कोविड-19 का प्रभाव’ से यह बात सामने आती है कि लोगों में हर हफ्ते पढ़ने के समय में 9 से 16 घण्टे की बढ़त हुई है। इसके अलावा सेल्फ हेल्प, आध्यात्मिकता, इतिहास और उद्यम पर आधारित किताबों ने पाठकों के मन को लुभाया है। मसूरी का कैम्ब्रिज बुक डिपो, शिमला का मारिया ब्रदर्स, गंगटोक का रचना बुकस्टोर और नई दिल्ली का फकीर-चंद एंड संस जैसी पुरानी और पारम्परिक लाइब्रेरी और बुकस्टोर ने अपने वफादार ग्राहकों को आकर्षित करना जारी रखा है।


पढ़ने के लिए वापस जगह की तलाश
बैंगलोर जैसे बड़े शहरों के लोग पढ़ने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर वापस आ रहे हैं। वे ध्यान का अभ्यास करने लगे हैं और एक साल से ज्यादा समय से सामूहिक पठन कार्यक्रम का हिस्सा बनकर अपने सामाजिक संबंधों को और बढ़ा रहे हैं। बैंगलोर में ही शुरू हुई कब्बन रीड्स अब अपनी पहुंच लंदन, पेरिस, बोस्टन, एशबर्न, सैन जोस और जोहान्सबर्ग जैसे शहरों तक बढ़ा चुका है। हालांकि बैंगलोर, मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में लोगों को मौन वाचन (साइलेंट रीडिंग) में दिलचस्पी तो है लेकिन इस आंदोलन ने कोच्चि, पुणे, पांडिचेरी, देहरादून जैसे छोटे शहरों में भी अपनी जगह बना ली है।
आधुनिक समय में पढ़ना एक ऐसी गतिविधि के रूप में उभर रहा है जो पारंपरिक पुस्तकालय की बन्द दीवारों से परे है क्योंकि लोग अब सामूहिक रूप से पढ़ने के लिए सार्वजनिक स्थानों को अपनाते हैं। कुछ लोग खासकर शिक्षा जगत या प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले लोग निजी रीडिंग रूम में सुकून से पढ़ते हैं क्योंकि ये देर तक खुले रहते हैं और ध्यान से पढ़ने के लिए एक आरामदायक माहौल प्रदान करते हैं। ऑनलाइन किताबें ऑर्डर करने के चलन के बावजूद व्यस्त और छोटे शहरों के लोग अभी भी किताबों की खूबसूरत दुकानों पर जाने के सपने को संजोकर रखते हैं। पढ़ने के जुनून में चाहे व्यक्तिगत रुचि का हाथ हो या एकेडेमिक जरूरतों का, इसने कई महत्वपूर्ण डिजिटल बदलाव को महसूस किया है।
इस साल विश्व पुस्तक दिवस की थीम "अपने तरीके से पढ़ें" इस बात पर रोशनी डालती है कि पढ़ना एक क्रिया, एक गतिविधि के रूप में जीवित है जबकि पढ़ने के विकसित होते तरीकों को भी मौजूदा समय में स्वीकार किया जा रहा है।
आपके शहर में पढ़ने के लिए लोग कहाँ जाते हैं?
क्या अपने कभी अपने शहर के किसी सार्वजनिक पुस्तकालय का दौरा किया है?
हाँ
नहीं
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