लोग इनोवेटिव तरीके से घर कैसे बनाते हैं?
- connect2783
- Mar 14, 2024
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Updated: Jul 16
भारत की अनौपचारिक बस्तियां इतनी तेजी से बढ़ रही हैं कि शहर उनसे निपटने में असमर्थ हैं। आवास की कमी, पलायन और खराब योजना के कारण बन रही ये फैली हुई झुग्गियां बुनियादी ढांचे, पानी और स्वास्थ्य जैसी समस्याओं का सामना कर रही हैं। संभलपुर के जमीनी स्तर के क्लीनिक से लेकर अहमदनगर की खाने योग्य छतों तक, समुदाय वहीं कदम बढ़ा रहे हैं जहाँ सरकारी व्यवस्था कमजोर पड़ जाती है। लेकिन क्या ये संघर्षशील इलाके अनौपचारिक शहरी विस्तार के बढ़ते संकट का समाधान बन सकते हैं?

तमिलनाडु शहरी आवास विकास बोर्ड के आंकड़ों के तुलनात्मक विश्लेषण के मुताबिक चेन्नई, कोयंबटूर और मदुरै में 2014 से 2018 के बीच अस्थिर झुग्गियों की संख्या में 63% की बढ़ोतरी हुई है। भारतीय शहरों में तेजी से बढ़ते प्रवास, सीमित किफायती आवास और अपर्याप्त शहरी नियोजन के कारण यह बढ़त देखी जा रही है।
उड़ीसा के राउरकेला और अंगुल में तेजी से बढ़ते औद्योगिकीकरण ने प्रवासी मजदूरों को अपनी ओर लुभाया है जिससे औद्योगिक क्षेत्रों के आसपास बड़े पैमाने पर अनौपचारिक बस्तियाँ बस गई है। उड़ीसा सरकार ने जागा मिशन के माध्यम से इन झुग्गियों में सुधार के प्रयास तो किये गए थे लेकिन इसके बावजूद एक अध्ययन में यह बात सामने आई कि भुवनेश्वर के 84 झुग्गियों में सुरक्षित पेयजल की पहुंच नहीं है। इस दौरान यहाँ अस्वच्छता, प्रदूषण और बुनियादी सुविधाओं में कमियाँ भी नजर आई।
Such initiatives have empowered residents to engage in the redevelopment of their homes, fostering ownership, and community cohesion.
बुनियादी सुविधाओं की कमी और प्रदूषित वातावरण में रहने की स्थिति का यहाँ रहने वाले लोगों पर बुरा असर पड़ता है। उनमें बुरे स्वास्थ्य के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक कमजोरी भी बढ़ती रहती है। आंध्र विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा विशाखापत्तनम की झुग्गियों पर एक अध्ययन किया गया, जिसमें पाया गया कि 76% महिलाएँ माइग्रेन से पीड़ित हैं, जबकि 52% को थायरॉयड की दिक्कत है, 48% को उच्च रक्तचाप, वहीं 42% मधुमेह से ग्रसित हैं। संबलपुर के वीर सुरेन्द्रभाई इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च (विमसार) की डॉ० गीतारानी चौबे और डॉ० संजीव मिश्रा ने स्वास्थ्य सेवा की कमी के कारण समलपीदार के स्थानीय निवासियों के लिए एक निःशुल्क क्लिनिक शुरू किया है।
मौजूदा समय में जलवायु परिवर्तन ही इन सभी समस्याओं की जड़ है। इस वजह से घनी और अनौपचारिक बस्तियों में रहने वाली महिलाएं अधिक प्रभावित होती हैं। कोयंबटूर और चेन्नई में जीआइजेड जो एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, आईसीडीएस के भवनों को पर्यावरण अनुकूल बना रहा है ताकि घरेलू कामगार, शिक्षक और छात्रों के लिए गर्मी के तनाव को कम किया जा सके। इस बीच अहमदाबाद में महिला आवास ट्रस्ट (एमएचटी) जलवायु के अनुकूल घर के लिए मॉड्यूलर छत तैयार करने में ऐसी महिलाओं की मदद ले रहा है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं।
कटक नगर निगम ने बच्चों में पढ़ने की आदत को बढ़ावा देने के लिए झुग्गियों में 10 रेडीमेड (प्री-फैब्रिकेटेड) स्मार्ट लाइब्रेरी शुरू करने की योजना बनाई है, जो सौर पैनलों द्वारा चलेंगी। अहमदनगर के संजयनगर स्लम में एक समूह द्वारा पुनर्विकास परियोजना चलाई जा रही है, जिसमें घर के छतों पर "खाद्य उद्यान" बनाकर बच्चों में पोषण की कमी को दूर करने की कोशिश की जा रही है। इस तरह के सकारात्मक पहल निवासियों को अपने घरों के पुनर्विकास में शामिल होने, स्वामित्व और सामूहिक तालमेल को बढ़ावा देने का काम करते हैं।
क्या आपने अपने शहर में अनौपचारिक बस्तियों में वृद्धि देखी है? क्या ऐसी बस्तियों के लिए कोई विकास कार्य किए गए हैं?



जलवायु परिवर्तन इन समस्याओं को और बढ़ा देता है, खासकर घनी और अनौपचारिक बस्तियों में रहने वाली महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है।
विशाखापत्तनम की झुग्गियों में आंध्र विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में पाया गया कि 76% महिलाएं माइग्रेन से पीड़ित हैं, जबकि 52% को थायरॉयड की समस्या, 48% को हाई ब्लड प्रेशर और 42% को डायबिटीज़ है।
ऐसे प्रयासों ने निवासियों को अपने घरों के पुनर्विकास में भाग लेने का सामर्थ्य दिया है, जिससे उनमें घर के प्रति लगाव और समुदाय की एकजुटता बढ़ी है।
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