बूढ़ा होता भविष्य
- connect2783
- May 3, 2024
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Updated: Jul 16
भारत की आबादी धीरे-धीरे बूढ़ी होती जा रही है और 2050 तक यह दोगुनी हो जाएगी, जिससे स्वास्थ्य सेवा, आवास और सामाजिक व्यवस्था जैसी नई चुनौतियाँ सामने आएंगी। छोटे शहरों में बुजुर्गों को समर्थन की कमी का सामना करना पड़ता है, लेकिन सामुदायिक प्रयास जैसे पीढ़ियों के बीच कार्यक्रम, वरिष्ठ नागरिक आवास परियोजनाएं और पुनर्जीवित सार्वजनिक स्थान मददगार साबित हो रहे हैं। मानसिक स्वास्थ्य और बुजुर्गों के प्रति दुव्यवहार जैसे गंभीर मुद्दों के बीच क्या भारत अपने बुजुर्गों के लिए उम्र के अनुकूल जगहें और नीतियां अपनाएगा ताकि वे बेहतर जीवन जी सकें?

साल 2022 में भारत की कुल आबादी में 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों की हिस्सेदारी 10.5% थी। इंडिया एजिंग रिपोर्ट, 2023 के मुताबिक 2050 तक यह आंकड़े दोगुने हो जाएंगे। विभिन्न संगठनों के डेटा के आधार पर इस रिपोर्ट के द्वारा यह अनुमान लगाया गया है कि अगले दो दशकों में हर 5 में से 1 व्यक्ति वरिष्ठ नागरिक बन जाएगा। 2.0 से कम प्रजनन दर और 70 साल से ज्यादा जीवन प्रत्याशा के साथ भारत में वृद्ध लोगों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। देश भर में बेहतर स्वास्थ्य सेवा सुविधा, चिकित्सा उपचार तक बेहतर पहुँच और टेक्नोलॉजी के विकास ने जीवन प्रत्याशा में वृद्धि की है। इसके अलावा बदलते समाज, शहरीकरण और प्रवासन पैटर्न ने पारंपरिक पारिवारिक संरचनाओं को बदल दिया है और नतीजा यह हुआ कि एकल परिवारों की बढ़ती संख्या से वृद्धों के लिए पारिवारिक सहायता कम हो गई है।
वृद्ध लोगों की बढ़ती आबादी का आशय
इस तरह से वृद्ध लोगों की आबादी में बढ़ोतरी छोटे शहरों को कई तरह से प्रभावित करती है, जिसमें स्थानीय बाजार में बदलाव, बढ़ती बीमारी और स्वास्थ्य सेवाओं का विकास शामिल है। मौजूदा समय में भारत में वरिष्ठ नागरिकों के रहने के लिए 18,000 यूनिट हैं, जिसमें चेन्नई, कोयम्बटूर, कोच्चि और बैंगलोर जैसे दक्षिणी शहर कुल आपूर्ति में 62% योगदान देते हैं। Housing.com द्वारा किया गया शोध यह अनुमान लगाता है कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए आवास की मांग में काफी बढ़ोतरी हुई है, खासतौर से यह कोविड-19 के बाद ज्यादा देखने को मिला है। हालांकि कुमार एवं अन्य (2024) के अध्ययन से यह पता चलता है कि महानगरों में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं आसानी से मिल जाती है जबकि छोटे शहरों में इसकी कमी है और यह आसानी से नहीं मिल पाती है। फिर भी इस तरह की कमी के कारण ही 'होम-बेस्ड हेल्थकेयर सेक्टर' में विकास को तेजी मिली है जो बुजुर्गों की स्वास्थ्य सेवा जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
भारत के बूढ़े होते शहर
केरल का एक छोटा सा शहर, कुम्बानद एक वृद्ध समाज बन चुका है। यहाँ के स्थानीय स्कूलों में छात्रों की कमी है। बेहतर अवसर की खोज में युवाओं के पलायन ने बड़ी संख्या में बुजुर्ग आबादी को पीछे छोड़ दिया है। हालांकि कुम्बानद ऐसी समस्या का केवल एक छोटा रूप है, जबकि नागालैंड और तमिलनाडु जैसे दूसरे राज्यों में बुजुर्गों की बढ़ती आबादी एक बड़ी चुनौती है। अपने राज्य में शिक्षा और रोजगार के अवसरों की कमी के कारण लोग दूसरे राज्य चले जाते हैं जिस वजह से इन राज्यों में अकेले रहने वाले बुजुर्गों की संख्या काफी ज्यादा है। हालांकि कुछ स्थानीय पहल नागालैंड में बुजुर्गों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए लोगों को जागरूक कर रहे हैं। बीते साल सितम्बर 2023 में कोहिमा ने वरिष्ठ नागरिकों की मदद के लिए एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन "द एल्डर लाइन- 14567" की दूसरी वर्षगांठ मनाई। नागालैंड में यह हेल्पलाइन वरिष्ठ नागरिकों के लिए बैंक में अलग काउंटर और नागालैंड रोडवेज (एनएसटी) की बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा देने में सफल रहा है।
बुजुर्गों के सामुदायिक संरक्षक
कुछ लोगों ने इनोवेटिव तरीके से वृद्ध आबादी की जरूरतों को पूरा करने और उनके स्वास्थ्य की देखभाल को बढ़ावा देने का जिम्मा उठाया है। महाराष्ट्र के छोटे से शहर वाई के माधव दामले ने 2012 में "हैप्पी सीनियर्स" नामक मैचमेकिंग पहल की शुरुआत की, ताकि बुजुर्ग रिश्तों के बारे में अपनी पुरानी सोच को तोड़कर एक नए साथी को अपने जीवन में जगह दे सकें।

इसी तरह शांतनु नायडू की देख-रेख में चलने वाला 'गुडफेलो पहल' दो पीढ़ियों के संबंध को बढ़ावा दे रहा है, जिसमें युवा स्वयंसेवक द्वारा बुजुर्गों को दादा-दादी कहा जाता है।
इस बीच फरीदाबाद में प्रणव शुक्ल ने आनंदी ओल्ड एज होम की शुरुआत की, जहाँ बुजुर्गों को डेयरी उत्पादन जैसे कामों में व्यस्त रखा जाता है जिससे उन्हें खुद का खर्च उठाने में मदद मिलती है।

1996 में प्रणव शुक्ला ने फरीदाबाद में तीन बुजुर्गों के साथ आनंदी वृद्धाश्रम की शुरुआत की थी। वर्तमान में इस गृह में 42 बुजुर्ग रहते हैं और पिछले 28 वर्षों में लगभग 300 बुजुर्ग यहां रह चुके हैं। बुजुर्गों को डेयरी उत्पादन जैसी उत्पादक गतिविधियों में व्यस्त रखा जाता है, जिससे उनके घर का खर्च चलता है।
कोच्चि भारत का पहला ऐसा शहर है जो डब्ल्यूएचओ ग्लोबल नेटवर्क फ़ॉर एज-फ्रेंडली सिटीज एंड कम्युनिटीज (डब्ल्यूएचओ-जीएनएएफसीसी) का सदस्य है जो स्वस्थ और सक्रिय उम्र के लिए उचित वातावरण को बढ़ावा देने में बुजुर्गों के साथ काम करता है।
इस बीच पिंपरी चिंचवाड़ के सुदर्शन चौक में एक अवैध पार्किंग क्षेत्र को "8 से 80" उम्र के लोगों के लिए पार्क बना दिया गया। सामूहिक पहल की वजह से यह खुली जगह अब युवा और वृद्ध दोनों के लिए व्यायाम, साइकिल चलाने और सामाजिक मेलजोल के लिए जगह प्रदान करती है। इसी तरह मलप्पुरम ने हाल ही में "बदाई बाजार" की शुरुआत की जहाँ बुजुर्गों के सामाजिक मेल-मिलाप के लिए मुफ्त सामुदायिक केंद्र है। नगर पालिका द्वारा द्वारा किये गए एक सर्वे के मुताबिक इसी तरह के 28 और केंद्रों को शुरू करने की योजना पर काम चल रहा है, जो सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक खुले रहेंगे।
भारत की बूढ़ी होती आबादी के लिए सार्वजनिक पहल
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस (निमहंस) ने हेल्पएज इंडिया के साथ मिलकर समुदाय आधारित पहल 'सार्थक' की मदद से 10,000 कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों को ट्रेनिंग देने का काम कर रहा है ताकि बुजुर्गों के मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल की जाए। इसी तरह आइवरी हेल्थ- एक एज-टेक स्टार्टअप कंपनी है जो आधुनिक तकनीक और व्यक्तिगत हस्तक्षेप के द्वारा बुजुर्गों की मानसिक क्षमताओं में गिरावट का ध्यान रख रही है। इस बीच उत्तर प्रदेश सरकार राज्य के 18 जिलों में "गरिमा गृह" नामक वृद्धाश्रम शुरू करने की योजना बना रही है। ये बुजुर्गों को भोजन, मनोरंजन, कपड़े और चिकित्सा उपचार की सुविधा प्रदान करेंगे। रांची में अनाथ बच्चों और बुजुर्गों की सुविधा के अनुकूल वातावरण मुहैया करने के उद्देश्य से एक पायलट प्रोग्राम चलाये जाने की योजना चल रही है, जिसके एकल परिसर में बाल-सह-वृद्धाश्रम की शुरुआत हो सके। इसे दुमका,पलामू और लातेहार में भी शुरू करने की योजना है।


भारत की बुजुर्ग आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार के प्रयास को विभिन्न नीति और योजनाओं में रेखांकित किया गया है जैसे कि नेशनल पॉलिसी ऑन सीनियर सिटीजन 2011, बुजुर्गों के स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम और आयुष्मान आरोग्य मंदिर में वृद्धावस्था पैकेज आदि। नेशनल पॉलिसी फॉर ओल्डर पर्सन (1999) ने पेंशन की योजना और एनजीओ के माध्यम से मदद करते हुए बुजुर्गों के लिये पारिवारिक देखभाल को बढ़ावा दिया है। हालांकि भारत में अनुदैर्ध्य आयु अध्ययन (लॉन्गीट्यूडनल एजिंग स्टडी इन इंडिया, लासी) के डेटा से यह बात सामने आई कि केवल एक-चौथाई बुजुर्ग ही अपने कानूनी अधिकारों के बारे में जानते हैं। वहीं 12% से भी कम लोग माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण से जुड़े कानून के बारे में जानकारी रखते हैं। सामाजिक सुरक्षा तक बुजुर्गों की पहुंच अभी भी कम है विशेष रूप से स्वास्थ्य बीमा कवरेज के मामले में, जो इन्हें सामाजिक रूप से और कमजोर बना देता है।

राष्ट्रव्यापी हेल्पलाइन नंबर 14567 पर कॉल करके वरिष्ठ नागरिक किसी भी समय मदद मांग सकते हैं और अपनी शिकायतों का निवारण करवा सकते हैं।
बुजुर्ग स्वयं, देखभाल करने वाले, संबंधित व्यक्ति, पुलिस या बुजुर्गों की ओर से सहायता चाहने वाला कोई भी व्यक्ति कॉल कर सकता है।
बुजुर्गों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं
स्वास्थ्य परिदृश्य में बुजुर्गों के लिए बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का पहलू महत्वपूर्ण होता जा रहा है। लासी के मुताबिक भारत में लगभग 20% बुजुर्गों को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं वहीं एक-तिहाई बुजुर्गों में अवसाद के लक्षण दिखाई देते हैं। भारत की जीवन प्रत्याशा में सुधार तो हुआ है लेकिन साथ ही संज्ञानात्मक हानि भी बढ़ी है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक भारत में तकरीबन 40 लाख लोग डिमेंशिया से पीड़ित हैं और ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि यह संख्या 2050 तक बढ़कर 1 करोड़ 34 लाख हो सकती है। विशेषज्ञ बताते हैं कि शहरी बुजुर्गों में सामाजिक अलगाव और प्रदूषण प्रमुख कारक हैं जो अपक्षयी रोग (डीजेनेरेटिव डिजीज, ऑस्टियोआर्थराइटिस) के शुरुआती लक्षणों को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा बुजुर्गों के साथ बढ़ते बदसलूकी ने भी उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाला है।
हेल्पएज इंडिया के एक सर्वे ने छोटे शहरों में बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार को एक खतरनाक संकेत बताया था और मदुरै में 63.25% की दर के साथ ऐसे सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए। जबकि टियर-1 शहरों में बुजुर्गों के असम्मान की घटना 76% पाई गई वहीं टियर-2 शहरों में मौखिक दुर्व्यवहार की घटनाएं 72% तक देखने को मिली।
भविष्य की राह
हाल ही में मैकिन्से हेल्थ इंस्टीट्यूट (एमएचआई) द्वारा किए गए एक सर्वे में यह पाया गया कि "जीवन में उद्देश्य होना और दूसरों के साथ सार्थक संबंध होना" दुनिया भर के बुजुर्गों की समूची स्वास्थ्य स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। समुदाय-आधारित पारिवारिक संरचनाओं से दूर जाने के कारण भारत में कई बुजुर्ग व्यक्ति अलग-थलग पड़ गए हैं। हालांकि गुजरात के मेहसाणा के पास चंदनकी गाँव अपने सामुहिक रसोई में एक साथ भोजन करके इस अकेलेपन का मुकाबला कर रहा है। सौर ऊर्जा से चलने वाले एयर कन्डिशन्ड हॉल में एक साथ भोजन करने के लिए इकट्ठे होने वाले बुजुर्ग ग्रामीण भारत की बूढ़ी होती आबादी के लिए जगह बनाने में शहरों को रास्ता दिखा रहे हैं।
क्या आपके शहर में ऐसी कोई पहल है जो बुजुर्गों को अकेलेपन से लड़ने में मदद कर रही है?
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भारत को वृद्ध आबादी की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर नीतियों और सामुहिक पहलों की सख्त जरूरत है। सामूहिक रसोई और सार्वजनिक पार्क जैसे उम्र के अनुकूल वातावरण के साथ ही स्वास्थ्य सेवा सहायता के बारे में जागरूकता और पहुंच बढ़ाना समय की जरूरत है। अपने बुजुर्गों की भलाई सुनिश्चित करके भारत उनकी बुद्धिमत्ता और सहनशीलता का उपयोग एक उज्जवल भविष्य के लिए कर सकता है।
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