top of page

पर्वतमाला परियोजना

  • connect2783
  • Mar 28, 2024
  • 3 min read

Updated: Jul 16

भारत ने मुश्किल इलाक़ों और भीड़भाड़ वाले शहरों में चलने-फिरने की समस्याओं को हल करने के लिए रोपवे पर भरोसा किया है। पर्वतमाला योजना के तहत 200 से ज़्यादा प्रोजेक्ट्स की तैयारी है, जिसमें छोटे शहर इस बदलाव के मुख्य केंद्र बन रहे हैं। लेकिन इस हरित पहल की सफलता स्थानीय लोगों की स्वीकृति, पर्यावरणीय आकलन और रोपवे की रोज़मर्रा की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में अच्छी तरह एकीकृत होने पर निर्भर करेगी। क्या रोपवे दैनिक यात्री के लिए भरोसेमंद साधन बन पाएंगे?

स्रोत : सिद्धांत सुवगिया
स्रोत : सिद्धांत सुवगिया

आने वाले साल 2025 के मई तक भारत में आम जनता के लिए पहली हवाई केबल कार शहरी परिवहन प्रणाली (एरियल केबल-कार अर्बन ट्रांजिट सिस्टम) तैयार हो जाएगी। अनुमान लगाया जा रहा है कि पर्वतमाला परियोजना के तहत बनने वाले इस 3.75 किलोमीटर लंबे काशी रोपवे से हर रोज लगभग 1 लाख लोग यात्रा करेंगे।


राष्ट्रीय रोपवे विकास कार्यक्रम (नेशनल रोपवे डेवलपमेंट प्रोग्राम) के तहत 1.25 लाख करोड़ की कुल लागत से तकरीबन 200 ऐसी परियोजनाओं की पहचान की गई है। मौजूदा समय में लगभग 30 परियोजनाओं पर काम चल रहा है। इन परियोजनाओं की सहायता से केंद्र सरकार का लक्ष्य दुर्गम इलाकों में कनेक्टिविटी बढ़ाना, आवागमन का समय कम करना और उन क्षेत्रों में भीड़भाड़ कम करना है जहाँ पारंपरिक जन परिवहन प्रणाली नहीं है। इसी तरह प्रयागराज में भी संगम के पार देश का सबसे लंबा रोपवे बनाए जाने की योजना है। वहीं राजस्थान सरकार बूंदी, सीकर, अजमेर और बांसवाड़ा सहित 16 शहरों में रोपवे शुरू करने की योजना बना रही है।


लगभग 30 प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं, जिनके माध्यम से केंद्र सरकार कठिन इलाक़ों में कनेक्टिविटी बढ़ाने, यात्रा के समय को कम करने और उन शहरी क्षेत्रों में भीड़ कम करने का लक्ष्य रखती है जहाँ पारंपरिक मास ट्रांजिट सिस्टम नहीं हैं।
स्रोत : अजय एस रावत , डाइअलॉग अर्थ
स्रोत : अजय एस रावत , डाइअलॉग अर्थ
अधिकारियों की माने तो रोपवे एक ऐसा प्रभावी और हरित विकल्प है जिससे प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

 हालांकि हल्द्वानी-नैनीताल रोपवे के निर्माण के दौरान भूस्खलन जैसी घटनाओं ने एक विचारणीय और गम्भीर चिंता को जन्म दिया है। कुल्लू और भुंतर के निवासियों ने भी प्रस्तावित बिजली महादेव रोपवे के खिलाफ कड़ा विरोध प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि इसके निर्माण से उनके देवता नाराज हो जाएंगे। संबंधित क्षेत्रों के विशेषज्ञ इन परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभाव पर विस्तृत आकलन की मांग कर रहे हैं। खासकर हिमालयी क्षेत्रों में यह बहुत जरूरी है क्योंकि यहां की भौगोलिक स्थिति बहुत संवेदनशील और नाजुक होती है।


जूदा समय में रोपवे को पर्यटन और कई दूसरे वाणिज्यिक उद्देश्य के लिये उपयोग किया जा रहा है। लेकिन शारदा देवी जाने के मार्ग में पड़ने वाले मैहर रोपवे को महंगाई और जीएसटी के नए नियमों के कारण तीर्थयात्रियों से लिए जाने वाले किराए को बदलना पड़ा। इस बीच आइजोल के डार्टलांग-चालटलांग रोपवे के कारण सरकार को 15 करोड़ से भी अधिक की बर्बादी झेलनी पड़ी क्योंकि इसके निर्माण से पहले न ही जरूरी स्वीकृति ली गई थी और न ही इस परियोजना की व्यवहार्यता का कोई आकलन किया गया था और आखिरकार इससे कोई ठोस सार्वजनिक लाभ भी नहीं हो पाया।


विशेषज्ञ इन परियोजनाओं के व्यापक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessments) की माँग कर रहे हैं, खासकर हिमालय क्षेत्र में, क्योंकि वहाँ की पारिस्थितिकी संवेदनशील है।

इन चुनौतियों के बाद भी छोटे शहरों में रोपवे विकास लगातार बढ़ रहा है क्योंकि इस कोशिश के कारण ही सतत विकास के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। रोपवे को सार्वजनिक परिवहन साधन के रूप में अधिक सुलभ बनाने के लिए नियंत्रण करने वाली सुविधा, व्यापक मूल्यांकन और स्थानीय समुदाय की सहभागिता को शामिल करने के लिए ठोस प्रयासों की जरूरत है।


क्या आपके शहर में भी जल्द ही कोई नया रोपवे बनने वाला है? क्या आपको लगता है कि यह आपके शहर की परिवहन संबंधित जरूरतों को पूरा करने के योग्य होगा?


स्रोत : डाइअलॉग अर्थ
स्रोत : डाइअलॉग अर्थ


Comments


bottom of page