लोकसभा चुनाव 2024
- connect2783
- Apr 19, 2024
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Updated: Jul 16
बाइक रैली से लेकर लोक गीतों तक, बड़े और छोटे शहर वोटरों को भारत के 2024 के आम चुनावों में ज्यादा से ज्यादा हिस्सा लेने के लिए हर तरह के प्रयास कर रहे हैं। लेकिन क्या ये पोस्टकार्ड और भावुक अपीलें प्रवासी मजदूरों, एनआरआई और पहली बार वोट देने वालों तक पहुंच पाएंगी? जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है — असल और राजनीतिक दोनों तरह से — भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था एक नए और बड़े चुनौती के लिए तैयार हो रही है।

इस साल भारत में लोकसभा चुनाव 19 अप्रैल से शुरू होने वाले हैं। छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को संचालित करने के रास्ते में कई चुनौतियां हैं। साल 2019 में 11 राज्यों में लगभग 67.40% से भी कम मतदान हुआ, जिसमें तकरीबन 29 करोड़ 70 लाख मतदाताओं ने मतदान नहीं किया था। भारत निर्वाचन आयोग (इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया, ईसीआई) ने ऐतिहासिक रूप से 266 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों की पहचान की जिनकी इन चुनावों में कम हिस्सेदारी थी। इनमें से 51 निर्वाचन क्षेत्र शहरी हैं, जिनमें कानपुर, इलाहाबाद, सिकंदराबाद, पटना, कल्याण और नागपुर जैसे शहर शामिल हैं।
साल 2022 में गांधीधाम विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र ने गुजरात के राज्य चुनाव में सबसे कम 48.14% मतदान दर्ज किया जो पिछली बार 2017 में हुए चुनाव से भी 6% कम है। इसी तरह शिमला में राज्य के औसत मतदान 75.78% के मुकाबले 63.48% मतदान दर दर्ज की गई। सूरत के ग्रामीण विधानसभा क्षेत्रों में शहरी विधानसभा क्षेत्र की तुलना में मतदान प्रतिशत अधिक है। 2019 के भारतीय चुनाव में वर्ग आधारित मतदान पैटर्न पर हुए एक अध्ययन के मुताबिक कस्बों के 59.8% मतदान में अमीर वर्ग का मतदान 52% से भी कम था। इसके विपरीत शहरों में 65% मतदान हुआ जिसमें अमीर वर्ग का मतदान 69.6% से भी अधिक था (श्रीधरन,2020)। हालांकि यह अध्ययन भारत में शहरीकरण और मतदाताओं के बीच एक नकारात्मक संबंध का संकेत देते हैं, चंद्रा और पॉटर (2016) के मुताबिक छोटे शहरों में कम मतदान पिछले परिणामों में जटिलता को बढ़ाने का काम करता है।
उत्तर प्रदेश के मुख्य चुनाव आयुक्त ने इस बात को उजागर किया कि किस तरह राज्य में सबसे ज्यादा मतदाता होने के बावजूद 2019 के लोकसभा चुनावों में कम मतदान हुआ। प्रवासी श्रमिकों की एक बड़ी आबादी मतदान देने के अवसर से छूट जाती है क्योंकि वे साल के कुछ खास महीनों में काम की तलाश के लिए बड़े शहरों में चले जाते हैं। चुनाव आयोग की मतदान कार्यान्वन योजना (टर्नआउट इम्प्लीमेंटेशन प्लान) पोस्टकार्ड के माध्यम से जागरूक कर इसी तरह की चुनौतियों को हल कर रही है। नागपुर के जिलाधिकारी कार्यालय द्वारा आयोजित मतदाता जागरूक अभियान में लोक गायक गजानन वानखेड़े और दूसरे स्थानीय कलाकार सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं। नुक्कड़ नाटक और रचनात्मक पहलों के माध्यम से लोगों को आगामी चुनावों के दौरान मतदान करने के लिये प्रेरित किया जा रहा है।

व्यवस्थित मतदाता शिक्षा और चुनाव भागीदारी (सिस्टेमेटिक वोटर्स एजुकेशन एंड इलेक्टोरल पार्टिसिपेशन, एसवीईईपी) के माध्यम से भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) कई कार्यक्रमों और सामूहिक सहभागिता की सहायता से चुनावी प्रक्रिया में मतदाताओं को जागरूक कर रहा है।
नंजनगुड में एसवीईईपी कमिटी ने शहर के अलग-अलग बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर यात्रियों के लिए जागरूकता अभियान चलाया और उनसे इस दिन छुट्टी मनाने के बजाय मतदान दिवस को लोकतंत्र के त्योहार के रूप में मनाने और मतदान करने का आग्रह किया। इस बीच मेघालय के विलियमनगर में एसवीईईपी अभियान के तहत साइकिल रैली का आयोजन किया गया।
इसी तरह महाराष्ट्र के यवतमाल में स्थानीय लेखक सावन राठौड़ ने लुभावने नारे लिखकर बंजारा समुदाय को मतदान प्रक्रिया में प्रभावी रूप से शामिल होने के लिए जागरूक किया।
राजस्थान के जालोर, सिरोही और पाली में जिलाधिकारी अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान को बढ़ावा देने के लिए गैर-निवासी लोगों को सक्रिय रूप से शामिल कर स्थानीय लोगों को जागरूक कर रहे हैं। मतदाताओं से आग्रह करने के लिए कई इनोवेटिव तरीकों का उपयोग किया जा रहा है जैसे कि व्हाट्सएप ग्रुप और जूम मीटिंग पर कुमकुम पत्रिका निमंत्रण डिज़ाइन करके भेजना। केरल के विधायक और कांग्रेस उम्मीदवार शफी परमबिल ने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के शारजाह का दौरा किया और सभी एनआरआई से घर वापस आकर मतदान करने का आग्रह किया। केरल में चुनाव आयोग में पंजीकृत 88,223 एनआरआई मतदाताओं में से ज्यादातर कोझिकोड (34,909) से हैं जबकि मलप्पुरम से 15,106 और कन्नूर से 13,377 मतदाता हैं।

General Elections 2024: Phases for 543 Constituencies
राजस्थान में 58,000 से ज्यादा मतदाताओं ने आने वाले लोकसभा चुनावों के लिए घर से मतदान करने का चयन किया है। घर से मतदान करने वाले मतदाता, 85 साल से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिक मतदाता और 40% से अधिक विकलांग मतदाताओं से घर-घर जाकर डाक मतपत्र को इकट्ठा करने के लिए विशेष मतदान दलों को ट्रेनिंग दी जा रही है। 2023 के राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान घर से मतदान के सफल परिणाम ने इसे जारी रखने को प्रेरित किया।
इस बीच लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद नगरपालिका और पंचायत चुनाव के लिए एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव के साथ "एक राष्ट्र, एक चुनाव" के विचार पर गौर फरमाया जा रहा है।
हालांकि भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने इसे लेकर चिंता व्यक्त की है। जलवायु परिवर्तन के संकट के साथ गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश में हीटवेव (लू) की कई घटनाएं लगातार देखने को मिल रही है। इतनी अधिक गर्मी की संभावना के साथ रैली और मतदान केंद्रों पर पानी, कुलिंग और स्वास्थ्य सेवा की सुविधाएं प्रदान करना बहुत जरूरी हो जाता है।
मणिपुर में आंतरिक परेशानियों के कारण 94 विशेष मतदान केंद्र स्थापित करने के बारे में सोचा जा रहा है ताकि आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति (इंटरनली डिस्प्लेसड पर्सन, आईडीपी) सुविधाजनक रूप से मतदान कर सकें। इन केंद्रों का उद्देश्य 10 जिलों के 24,500 आईडीपी मतदाताओं को एक जगह एकत्रित करना है। जिलाधिकारियों के सहयोग से आईडीपी मतदाताओं के बीच पहचान पत्र बाँटना और सुचारू मतदान प्रक्रिया को पूरा करना है। इतने सारे तैयारियों की समीक्षा की जिम्मेदारी ईसीआई को दी गई है और आईडीपी मतदाताओं के मतदान की सुविधा पर विशेष ध्यान रखा गया है।
मद्रास उच्च न्यायालय ने मदुरै में चुनाव आयोग और जिला प्रशासन को निर्देश दिया है कि वे मदुरै के सरकारी मेडिकल कॉलेज को आगे आने वाले चुनावों में मतगणना केंद्र के रूप में इस्तेमाल होने पर रोक लगाएं। शैक्षणिक गतिविधियों में दिक्कत को देखते हुए ऐसा निर्णय लिया गया जिससे देश में मतदान संबंधी बेहतर बुनियादी सुविधा और योजना की जरूरत सामने आई। इस बीच पांडिचेरी में चुनाव संबंधी जैवनिम्ननीय (बायोडिग्रेडेबल) चीजों के उपयोग को बढ़ावा देने की वजह से मतदान को भी जीरो कार्बन बनाने की कोशिश की जा रही है। 'वॉक-टू-वोट' के माध्यम से वैसे मतदाताओं को बिना वाहन के केंद्र पर आने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है जिनका घर मतदान स्थल से 500-700 मीटर के दायरे में हैं।
एक विशाल लोकतंत्र के रूप में भारत को इस तरह के व्यापक मतदान का आयोजन करने में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन इन सबके बावजूद मतदाता भागीदारी में आने वाली मुश्किलों को दूर करने की कोशिश की जा रही है, जिसमें प्रवासी श्रमिकों के मतदान से लेकर वंचित तबकों के समुदाय की जरूरतों को पूरा करना और मतदान के बुनियादी ढांचे में सुधार करना शामिल है। इस तरह की कोशिशें न केवल लोकतंत्र को मजबूत बनाते हैं बल्कि नागरिक और राष्ट्र जुड़ाव के ताने-बाने को भी मजबूत करते हैं और इस तरह एक अधिक समावेशी और जीवंत चुनावी प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है।
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