स्थानीय धरोहरों का निर्माण
- connect2783
- Jan 10, 2024
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Updated: Jul 17
भारत के छोटे शहरों में इत्र की दुकानों से लेकर मिट्टी के बर्तनों और उपग्रहों के लिए चाँदी के पुर्जों तक, कई अनोखे उद्योग मौजूद हैं। कुछ उद्योग नई तकनीक और सरकारी मदद से नई जान पा रहे हैं, जबकि कई को कम होती मांग और बढ़ती वैश्विक प्रतियोगिता से मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। क्या युवा इनोवैटर और समझदार नीतियाँ इन स्थानीय विरासत उद्योगों को आज की दुनिया में फलने-फूलने में मदद कर पाएंगी?

क्या आप जानते हैं कि देश भर में बनने वाले विग के बालों की प्रोसेसिंग का 40% हिस्सा कर्नाटक के भाग्यनगर में होता है? या यह जानते हैं कि अलीगढ़ को 'तालों का शहर' कहा जाता है, जहाँ कारीगर एक दिन में 40 ताले बनाते हैं? भारत के छोटे शहरों और कस्बों में ऐसे कई उद्योग दशकों से चलते आ रहे हैं।
हालांकि ऐसे उद्योग लोगों के बीच कम लोकप्रिय हैं लेकिन अब धीरे-धीरे ये चर्चा में आ रहे हैं। खामगांव का श्रद्धा रिफाइनरी चांदी के बर्तनों का एक केंद्र है, इसे इसरो के उपग्रहों में इस्तेमाल होने वाले चांदी की सामग्रियों के योगदान के लिए जाना जाता है। इसी तरह मेरठ खेल के सामान को बनाने के लिए मशहूर है, जहाँ नेल्को प्राइवेट लिमिटेड जैसी कम्पनियाँ 80 के दशक से ही अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक आयोजन में खेल सामग्रियों की आपूर्ति करती है।
इन दिनों "मेड इन इंडिया" उत्पादों की लोकप्रियता वैश्विक स्तर पर भी देखने को मिल रही हैं लेकिन इसके बावजूद ऐसे उद्योगों के रास्ते में कई चुनौतियाँ हैं। कोयंबटूर के जीआई-टैग वाले वैट ग्राइंडर (अनाज पीसने के लिए उपयोग की जाने वाली एक मशीन, खासकर दक्षिण भारतीय व्यंजनों को बनाने के लिए) के निर्माता अपनी गिरती मांग को लेकर चिंतित हैं। कोविड-19 के बाद का आर्थिक प्रभाव, 18% जीएसटी, खान-पान के बदलते उपक्रम और खाना बनाने की बदलती हुई शैली इस गिरावट के लिए जिम्मेदार हैं।
इस बीच अलीगढ़ का पारंपरिक ताला उद्योग भी बाल श्रम की समस्याओं और चीन के उत्पादों की सस्ती कीमत से परेशान है।
वहीं दूसरी तरफ भाग्यनगर के स्थानीय विग-निर्माण उद्योग के उत्पादन में भी गिरावट आई है क्योंकि बड़े शहर इसके कच्चे माल पर एकाधिकार कर लेते हैं। इसके साथ ही म्यांमार के माध्यम से चीन में भी इन बालों की तस्करी की जा रही है और इस वजह से स्थानीय क्षेत्रों में इसकी कमी देखने को मिल रही है।


धागे की बढ़ती कीमतों के बावजूद तिरुपुर बुने हुए कपड़ों के उत्पादन का एक प्रमुख बाजार बना हुआ है। सरकार ने इसके निर्यात को बढ़ाने वाली योजना लाकर और उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन देकर इसकी मांग को बरकरार रखने में काफी मदद की है। स्थिरता और स्थानीय उत्पादों में बढ़ती रुचि के कारण कन्नौज के प्राकृतिक इत्र (इत्तर) की लोकप्रियता भी बाजारों में बनी हुई है।
अब युवा उद्यमी पारंपरिक रूप से कुशल कारीगरों और आधुनिक उपभोक्ताओं के बीच की खाई को भर रहे हैं।
जयपुर में स्थित एक स्टार्ट-अप, 'मिट्टीहब' टेराकोटा मिट्टी के बर्तनों को फिर से जीवन दे रहा है और कलाकारों को ट्रेनिंग देने के साथ ही बाजार से अच्छे संबंध विकसित कर अपने उत्पाद की लोकप्रियता को बढ़ा रहा है। अब यह उद्यम ग्राहकों को एक नए अनुभव से रूबरू कराने के लिए 3डी इमेजिंग अपनाने की भी योजना बना रहा है। ऐसे इनोवेटिव तरीके ही स्थानीय, पारंपरिक उद्योगों में नए जमाने की तकनीक को समझदारी से शामिल करने का रास्ता दिखाते हैं।
क्या आपका शहर किसी खास उद्योग केंद्र के रूप में जाना जाता है?
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