फास्ट फूड के शौकीन
- connect2783
- Jan 21, 2024
- 3 min read
Updated: Jul 14
जैसे ही मैकडॉनल्ड्स नागपुर और डोमिनोज़ लातूर जैसे छोटे शहरों में खुल रहे हैं, ये फास्ट फूड चेन वहां के खाने के तरीकों को बदल रहे हैं। सस्ता, तेज़ और आधुनिक दिखने वाला—क्विक सर्विस रेस्टोरेंट्स (QSR) बढ़ती मांग का फायदा उठा रहे हैं। लेकिन बढ़ते स्वास्थ्य संकट और पर्यावरणीय कीमतों के बीच, क्या ये चेन सिर्फ सुविधा दे रही हैं या इसके पीछे कुछ और बड़ा नुकसान छुपा है?

छोटे शहरों में त्वरित सेवा देने वाले रेस्तरां (क्विक सर्विस रेस्तरां, क्यूएसआर) का वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर विस्तार भारत के खान-पान की शैली को बदल रहा है। भारत में इस तरह की पहली खाद्य श्रृंखला निरुला ने दिल्ली से अपनी यात्रा शुरू की थी लेकिन अब मोहाली, कानपुर और इंदौर जैसे शहरों में भी अपनी पहचान बना ली है। इसी तरह डोमिनोज अपने 250 नए स्टोर में से एक तिहाई स्टोर लातूर और चेंगलपट्टू जैसे शहरों में खोलकर अब छोटे बाजारों में भी अपनी जगह बनाने की कोशिश में लगा है।

अधिक ऑर्डर, अधिक प्लास्टिक
टियर-2 और 3 शहरों में व्यापार की अपार संभावना और कम किराये की लागत के साथ-साथ लोगों की बदलती जीवनशैली ने क्यूएसआर का ध्यान आकर्षित किया है। बेहतर डाइनिंग सुविधाएं और तेज डिलीवरी प्रदान करके क्यूएसआर एक सुविधाजनक और स्वच्छ विकल्प के रूप में उभरकर सामने आया है और किफायती होने के कारण मध्यम वर्ग के युवाओं के बीच अपनी मार्केटिंग को तेजी से बढ़ा रहा है।
दुनिया भर के फास्ट फूड की बढ़ती सीमाएं भी छोटे शहरों के प्रति शहरी लोगों के नजरिये को बदल रही है।
साल 2019 में नागपुर के पहले मैक्डोनाल्ड्स आउटलेट ने लोगों के उत्साह को बढ़ाया था और इसे वैश्विक स्तर के विकास के रूप में देखा गया था।
आजकल समय की कमी और भागदौड़ वाले शहरी जीवन को क्यूएसआर जैसी सुविधा ने आसान बना दिया है और इस वैश्वीकृत जीवनशैली का प्रभाव लोगों के खान-पान पर देखने को मिला है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ (पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट्स) मानते हैं कि आजकल लोगों में बढ़ते मोटापे और मधुमेह के लिए फास्ट फूड का चलन एक प्रमुख कारक है। भारत के शहरी केंद्रों पर किये गए अध्ययन से यह बात सामने आई कि 1970 के दशक की शुरुआत में केवल 3% वयस्कों की आबादी मधुमेह से ग्रसित थी जबकि साल 2017 में यह बढ़कर 11.2% हो गई। अंतरराष्ट्रीय मधुमेह संघ के अनुमानित आँकड़ों के अनुसार 2045 तक यह संख्या बढ़कर 1 अरब 34 करोड़ 30 लाख हो जाएगी।
मैकडोनाल्ड्स जैसी दिग्गज क्यूएसआर कंपनी पर भी विज्ञापन के नियमों का उल्लंघन करने और स्वस्थ जीवनशैली को कमतर आंकने के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स ऑथोरिटी ऑफ इंडिया, एफएसएसएआई) द्वारा पहले भी आलोचना की गई है।
कोच्चि के कॉन्ट्रैक्टुअल कर्मचारियों का दावा है कि शहर का लगभग 90% प्लास्टिक कचरा फूड डिलीवरी की सामग्रियों से आता है। केरल सरकार अब विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी, ईपीआर) की लागत को उत्पादों पर लागू करने का विचार कर रही है।

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हालांकि छोटे शहर इन्हें फलने-फूलने का अवसर तो देते हैं लेकिन फिर भी क्यूएसआर को कम लाभ, उत्पाद की सीमा और स्थिरता की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अपनी इच्छाओं और अपने स्वास्थ्य के बीच संतुलन बनाना ही नागरिकों की असली चुनौती है।
आपने अपने शहर में क्यूएसआर के बढ़ते चलन के साथ क्या परिवर्तन देखा है?
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