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विश्व जल दिवस 2024

  • connect2783
  • Mar 21, 2024
  • 3 min read

Updated: Jul 16

बेंगलुरु के जल संकट की खबरें बड़ी सुर्खियां बनती हैं, लेकिन भारत के छोटे शहर धीरे-धीरे सूखते जा रहे हैं। होसपेटे, मसूरी, और देवनहल्ली जैसे शहरों में औद्योगिक प्रदूषण से लेकर भूजल स्तर गिरने तक, पानी की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। नई-नई योजनाएं और वर्षा जल संचयन अभियान तो शुरू हो रहे हैं, लेकिन क्या ये छोटे शहर बढ़ते संकट से बेहतर तरीके से निपट पाएंगे?




स्रोत : डेक्कन हेराल्ड
स्रोत : डेक्कन हेराल्ड

बैंगलोर में चल रहे जल संकट के कारण कई तकनीकी पेशेवर अस्थायी तौर से बेंगलौर छोड़ कर मैसूर चले गए। लेकिन वर्ल्ड वाइड फंड फ़ॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2050 तक 'गंभीर जल संकट' से जूझने वाले 30 भारतीय शहरों में से 26 मध्यम या छोटे शहर हैं, जिनमें धनबाद, नासिक और जबलपुर जैसे नाम शामिल हैं। विश्व जल दिवस 2024 के अवसर पर नागरिक ने नगर पालिका की अनदेखी और उनके जल मुद्दों को उजागर किया।


कर्नाटक में तुंगभद्रा जलाशय के नजदीक होने के बावजूद होसपेट, कोप्पल और बल्लारी जैसे छोटे शहरों को गर्मियों के दौरान जल संकट का सामना करना पड़ता है क्योंकि यहाँ के औद्योगिक कचरे और गाद भूजल को प्रदूषित कर देते हैं। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल,एनजीटी) कमिटी की कार्रवाई से इस बात की संभावना जताई जा रही है कि 2052 तक मसूरी में पीने योग्य पानी के संसाधन समाप्त हो जाएंगे। बैंगलोर के केम्पेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास स्थित शहर में तकरीबन 32 बोरवेल सूख गए जिसके कारण देवनहल्ली नगर निगम को पानी के टैंकरों को किराए पर लेना पड़ा।


WWF की रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक ‘गंभीर जल संकट’ के खतरे में आने वाले 30 भारतीय शहरों में से 26 मध्यम और छोटे शहर हैं, जैसे धनबाद, नासिक और जबलपुर।

जल की कमी को बढ़ाने में कई कारक जिम्मेदार हैं, जैसे कि जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, अपर्याप्त बुनियादी सुविधाएं और भूजल पर निर्भरता। छोटे शहरों में मजबूत जल आपूर्ति प्रणाली की कमी है। इसके साथ ही छोटे शहरों में संस्थागत अपर्याप्तता और केंद्रीकृत सीवेज सिस्टम का भी अभाव है। हालांकि देवनहल्ली ने अपनी दो झीलों में वर्षा जल और बैंगलोर के उपचारित अपशिष्ट जल (ट्रीटेड वेस्टवाटर) को मिलाकर उपयोग करना शुरू कर दिया है, जिससे घरों में हर रोज 2 लाख लीटर पानी की आपूर्ति की जा सके। इसी तरह नोएडा अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग करके सिंचाई कर रहा है। इसलिए इस शहर को जल शक्ति मंत्रालय द्वारा 'जल योद्धा' (वाटर वैरियर) शहर के रूप में चुना गया है।

स्रोत : टाइम्स ऑफ इंडिया
स्रोत : टाइम्स ऑफ इंडिया
बढ़ती पर्यावरणीय दबावों के बीच जल संकट से निपटने के लिए समावेशी जल शासन अत्यंत महत्वपूर्ण है।

हमारे पर्यावरण के संसाधनों पर बढ़ते दबाव के कारण जल की कमी से निपटने के लिए एक समावेशी जल प्रशासन की जरूरत है। इसी तरह कांगड़ा में 'कैच द रेन' अभियान चलाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य देहरा, पालमपुर और ज्वालाजी के लिए स्वीकृत योजनाओं के साथ मिलकर भूजल की कमी को दूर करना है। धर्मशाला में वर्षा जल संचयन के ढांचे को भी बनाया जा रहा है। मैसूर में जल दीवाली अभियान ने स्वयं सहायता समूह (सेल्फ हेल्प ग्रुप, एसएचजी) को सामूहिक रूप से जल संरक्षण जैसी चुनौती से निपटने के लिये सशक्त बनाया है। राजस्थान और डेनमार्क के बीच का हरित-रणनीतिक समझौता ज्ञापन जयपुर, भीलवाड़ा और नवलगढ़ में सतत शहरी जल विकास का सहयोग करता है।


क्या आपके शहर में पानी की समस्या या कमी है? आपके शहर के अधिकारियों ने जलसंकट की चुनौती का समाधान कैसे किया है?


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