कचरा प्रबंधन: एक नया तरीका
- connect2783
- Jan 22, 2024
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Updated: Jul 17
छोटे शहरों में एआई से चलने वाली नावें, आईटी टूल्स और कचरे से ऊर्जा बनाने वाले प्लांट्स जैसे प्रयोग हो रहे हैं। लेकिन असली चुनौती है इन पहलों को बड़े पैमाने पर लागू करना, जनता को साथ जोड़ना और नियमों का कड़ाई से पालन कराना। जहाँ केरल जैसे राज्य ज़ीरो-वेस्ट मिशन की सफलता का उदाहरण हैं, वहीं कई जगहों पर कचरे के अलगाव जैसे बुनियादी कामों में भी दिक्कतें हैं। कचरा बढ़ता जा रहा है, तो साथ ही बढ़ रही है स्मार्ट, समुदाय-आधारित और तकनीक पर आधारित समाधानों की जरूरत। क्या ये नवाचार शहरों के कचरे के प्रबंधन में मौजूद खामियों को दूर कर पाएंगे?

पिछले साल आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स, आएमओएचयूए) और रेल इंडिया तकनीकी और आर्थिक सेवा (रेल इंडिया टेक्निकल एंड इकोनॉमिक सर्विस, राइट्स) ने मिलकर 1 लाख से कम आबादी वाले शहरों में अपशिष्ट प्रबंधन को मानकीकृत करने, ठोस अपशिष्ट और उपयोग किये गए जल प्रबंधन में तकनीकी सहायता देने की पहल की थी और समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे।
इस साझेदारी के कारण कचरों के 'सुरक्षित नियंत्रण, संग्रह, परिवहन, उपचार और पुनरूपयोग' के माध्यम से ऐसे शहरों में स्वच्छ भारत परियोजना के तहत चलने वाले काम के प्रभावी तरीके से पूरा होने की उम्मीद की जा सकती है।


हाल ही में शिलांग में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे उमियम झील को साफ करने के लिए वहाँ के अधिकारियों ने सौर ऊर्जा से चलने वाले एक एआई बोट (नाव) की मदद ली है। आजकल कचरे से निपटने के लिए कई तकनीक संचालित समाधान उभरकर सामने आ रहे हैं और यह परियोजना भी उनमें से एक है।
इसी तरह रीवा ने री सस्टेनेबिलिटी लिमिटेड के कचरों से 12 मेगावाट की बिजली पैदा करने की पहल की है जिससे लैंडफिल के कचरे कम होने की उम्मीद है।
समूह-संचालित पहल भी पर्यावरण को साफ रखने में बखूबी अपना योगदान दे रही हैं, इसके साथ ही जरूरतमंद लोगों को आजीविका का जरिया भी मिल जाता है। गुवाहाटी की श्री गुरु प्लास्टिक कंपनी आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को रोजगार देते हुए कचरे को रिसाइकिल कर रही है। हालांकि गुवाहाटी में उचित अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली की कमी है, जिसके कारण कचरों का उनकी श्रेणी के हिसाब से पृथक्करण बहुत कम या बिल्कुल नहीं होता है। इस तरह उचित देख-रेख की कमी के कारण रीसाइक्लिंग यूनिट अपने प्रभाव को बढ़ा नहीं पा रही हैं।
स्थानीय स्वशासन विभाग या लोकल सेल्फ-गवर्नमेंट डिपार्टमेंट (एलएसजीडी) के आँकड़ों के अनुसार केरल ने भविष्य में शून्य-अपशिष्ट (जीरो वेस्ट) की दिशा में अपने तय किये गए लक्ष्य का 87% भाग हासिल कर लिया है। हरित कर्म सेना ने न्यूनतम शुल्क पर घर-घर जाकर कचरे को इकट्ठा करने की सेवा देकर इस परियोजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
तलिपरम्बा में पायलट प्रयोग के बाद कन्नूर की एक आईटी टूल कंपनी 'नेल्लीक्का' की प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिए इसे एकीकृत किया गया है।
चंडीगढ़ की पहली विकेन्द्रीकृत कचरा निपटान इकाई (गार्बेज प्रोसेसिंग यूनिट) को दुर्गंध और उत्सर्जन जैसे मुद्दों पर रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) और कई हाउसिंग सोसायटी से मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है। कोच्चि के एडप्पल्ली वडक्कुंबघम सेवा सहकारी बैंक से मिले वित्तीय सहायता की वजह से कुन्नुम्पुरम का अपशिष्ट उपचार संयंत्र (वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट) सुचारू रूप से चल रहा है। समुदाय की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए स्थानीय हितधारकों और अधिकारियों की मदद से ऐसे सकारात्मक पहलों में एक बेहतर और स्थायी भविष्य बनाने की काबिलियत झलकती है।
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