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बदलाव की दवा

  • connect2783
  • Apr 4, 2024
  • 4 min read

Updated: Jul 16

बेगुसराय में ICU सुधार से लेकर छोटे शहरों में मोबाइल एंडोस्कोपी यूनिट तक, भारत के टियर-2 और टियर-3 शहरों में स्वास्थ्य सेवा में बदलाव हो रहा है। बड़े अस्पताल अपनी क्षमता बढ़ा रहे हैं, दवाओं की पहुँच बेहतर हो रही है, और होम हेल्थकेयर भी तेजी से लोकप्रिय हो रही है। पहले जहाँ यह माना जाता था कि गुणवत्तापूर्ण इलाज केवल मेट्रो शहरों में ही मिलता है, अब वह सोच धीरे-धीरे बदल रही है। यह बदलाव भले ही धीमा हो, लेकिन छोटे-छोटे शहरों में लोगों की ज़िंदगियाँ बदल रहा है।


Source: Aman Chaturvedi, Unsplash
Source: Aman Chaturvedi, Unsplash

भारत में निजी अस्पतालों की शृंखला में सबसे ऊपर “अपोलो हॉस्पिटल” का नाम आता है। साल 2026 तक इस अस्पताल ने अपनी मौजूदा 10,000+ बिस्तरों में 2,680 और बिस्तर जोड़कर अपनी क्षमता बढ़ाने की योजना बनाई है। इस विस्तार की योजना को वाराणसी और मैसूर जैसे कई टियर-2 शहरों में पूरा किया जाएगा। इसी तरह दूसरे स्थान पर नाम आता है मणिपाल हॉस्पिटल का । यह 250-325 बिस्तरों वाली स्वास्थ्य सेवा यूनिट के निर्माण पर ध्यान दे रही है जो माइक्रो मार्केट (विशिष्ट ग्राहकों का एक छोटा समूह) की जरूरतों को पूरा कर सके। वर्तमान में भारत के स्वास्थ्य सेवा परिदृश्य में प्रमुख बदलाव देखने को मिल रहा है, बढ़ती अचल संपत्ति की लागत और शहरों में सीमित स्थान के कारण बड़े अस्पताल अब छोटे शहरों की तरफ अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। हर साल 83% की बढ़ोतरी के साथ टियर 2 शहरों ने चिकित्सा परामर्श में टियर 1 शहर को पीछे छोड़ दिया है।


Glocal Hospital, Bhagalpur. Source: Bajaj Finserv Health
Glocal Hospital, Bhagalpur. Source: Bajaj Finserv Health

इस बीच बिहार और पश्चिम बंगाल में ग्लोकल हॉस्पिटल जिसने केवल 11 अस्पतालों का एक नेटवर्क बनाया है वंचित समुदाय तक सुलभ स्वास्थ्य सेवा दे रहा है। बेगूसराय के ग्लोकल हॉस्पिटल ने लगभग 90% सर्वाइवल रेट के साथ उच्च गुणवत्ता वाली किफायती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में सफल रहा है। यहाँ इलाज कराने वाले रोगियों में से 85% से अधिक रोगी गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी के हैं, जिस वजह से इस अस्पताल को आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जेएवाई) के तहत बेहतर प्रदर्शन के लिए सम्मानित किया है।


छोटे शहर के अस्पतालों में भी अब एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी के साथ-साथ कई दूसरी तकनीकी सुविधाएं दी जा रही है। महाराष्ट्र के यवतमाल और गोंदिया में हार्ट अटैक के मामलों का सही समय पर पता लगने के कारण कई लोगों की जान बचाने में मदद मिली। बीते कुछ सालों में छोटे शहरों की स्वास्थ्य सेवा में काफी तरक्की देखने को मिला है। लेकिन छोटे शहर के अस्पतालों में भरोसे की कमी के कारण मरीज अक्सर बड़े शहरों में इलाज कराना पसन्द करते हैं। नागपुर में कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के सचिव डॉ० निधिश मिश्रा इस समस्या से निजात दिलाने के लिए छोटे शहर के डॉक्टर के लिए शैक्षणिक कार्यक्रम और मरीजों के लिए जागरूकता अभियान चलाने की योजना बना रहे हैं।


फरवरी महीने में उत्तरी कर्नाटक के रामदुर्ग और गोकक में दो निःशुल्क स्वास्थ्य जांच शिविर लगाया गया था। इससे पहले सवदत्ती में महंतेश कवतागीमठ फाउंडेशन ने एक स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया था, जिसमें तकरीबन 7000 लोगों को लाभ मिला था। इस बीच फुजीफिल्म इंडिया और जीवीएन अस्पताल ने मिलकर एंडो बस नाम का एक मोबाइल एंडोस्कोपी यूनिट शुरू करने पर विचार किया है। इसका उद्देश्य है छोटे शहरों के मरीजों में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर की जांच करना और इसका समय पर पता लगाना। स्वीडन की एक टेक्नोलॉजी कंपनी एलेक्टा ने एम्स के साथ साझेदारी के तहत कैंसर में उपयोगी लाइनेक (लीनियर एक्सीलेटर) मशीनों का विस्तार किया है जो उच्च ऊर्जा विकिरण की पहचान करके उन्हें खत्म करने में मदद करता है।


Endo Bus for early detection of gastrointestinal (GI) cancer across smaller cities in India. Source: Fujifilm India
Endo Bus for early detection of gastrointestinal (GI) cancer across smaller cities in India. Source: Fujifilm India

इसके अलावा कोरोना महामारी के बाद छोटे शहरों में भी दवाइयों की मांग में बढ़त देखी जा रही है। इसके अनेक कारण हैं जैसे कि छोटे शहरों में स्वास्थ्य जागरूकता, फार्मा कम्पनी और कई सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं का बढ़ना। सिप्ला जेनेरिक भारत की सबसे बड़ी जेनेरिक दवा कंपनी है, जिसके 5,500 थोक विक्रेताओं का नेटवर्क 15,000 पिन कोड पर अपनी सुविधाएं उपलब्ध कराता है। आजकल कई मोबाइल ऐप ने भी दूरस्थ सलाह, परामर्श, दवा ऑर्डर और लैब टेस्ट की सुविधा देनी शुरू कर दी है। इसी तरह के एक ऐप मेडीबडी 90,000 डॉक्टर, 7,100 डायग्नोस्टिक सेंटर, 2,500 फार्मेसी और तकरीबन 80 लाख सब्सक्राइबर का एक उभरता नेटवर्क है।


मेडपे 40,000 से भी ज्यादा स्थानीय फार्मेसी के नेटवर्क को डिजिटल अर्थव्यवस्था में शामिल होने के योग्य बना रहा है ताकि ग्राहकों की जरूरत पूरी हो सके और भारतीय बाजार में स्वास्थ्य सेवा की पहुंच बढ़ सके। हालांकि पिछले साल स्वास्थ्य मंत्रालय ने अखिल भारतीय रसायनज्ञ एवं औषधि विक्रेता संगठन (ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स) के कहने पर टाटा-1एमजी, फार्मइजी, रिलायंस नेटमेड्स सहित 20 कंपनियों को कारण बताने के लिए नोटिस जारी किया था। इसमें थोक दवा बेचने वालों पर एकाधिकार को रोकने और ई-कॉमर्स बाजार में प्रभावी नियंत्रण की जरूरत को बताया गया था।


83% की साल-दर-साल बढ़ोतरी के साथ, टियर-2 शहरों ने मेडिकल सलाह के मामले में टियर-1 शहरों को पीछे छोड़ दिया है!

किफायती लागत में स्वास्थ्य सेवा, डिजिटल तकनीक और बीमा की सुविधा के कारण छोटे शहरों में अब होम-हेल्थकेयर उद्योग के माध्यम से लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ रही है। कई कम्पनियों ने जैसे कि एचसीएएच और पोर्टिया मेडिकल ने स्टारहेल्थ, आईसीआईसीआई, लोम्बार्ड और गो डिजिट जैसी बीमा कम्पनियों से साझेदारी कर काम करना सुनिश्चित किया है ताकि मरीजों के खर्च को कम किया जा सके और दूसरे अस्पतालों के खर्च के मुकाबले 25-30% कम लागत पर सेवाएं दी जा सके।


ऐसे सकारात्मक बदलावों के बावजूद कई छोटे शहर अब भी कर्मचारी और पर्याप्त उपकरण की कमी से जूझ रहे हैं। वे इस सोच से भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हैं कि बेहतर स्वास्थ्य सेवा केवल बड़े शहरों में ही उपलब्ध है जिसके कारण रोगियों को इलाज के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। लेकिन धीरे-धीरे ही सही पर महानगरों के अलावा छोटे शहरों में भी बढ़ते निवेश के कारण कायापलट हो रही है और पूरे भारत का स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र बदल रहा है।


क्या आपने अपने शहर में स्थानीय स्वास्थ्य सेवाओं में कोई नया विकास देखा है? हमें नीचे टिप्पणी में बताएं!



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