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घर वहीं हैं, जहाँ इतिहास बसा हो
मौसम की मार झेलती दीवारें, घटता हुआ बजट और बदलती हुई शहर की तस्वीर — भारत के विरासत घर शहरी आधुनिकता के दबाव में हैं। कुछ घर डिजिटल आर्काइव, पर्यटन और होमस्टे के माध्यम से अपनी पहचान बनाए रख रहे हैं, तो कुछ पूरी तरह से व्यावसायीकरण का विरोध कर रहे हैं। निजी जिम्मेदारी और सार्वजनिक स्मृति के बीच फंसे ये घर एक अहम सवाल उठाते हैं: जब अतीत से आमदनी न हो, तो उनकी बचत की जिम्मेदारी असल में किसकी होती है?
Jan 10, 20243 min read


नदी तटों का जीर्णोद्धार
भारत के शहरों में नदी के किनारे विकास तेजी से हो रहा है, जैसे कोटा में चंबल नदी के किनारे का प्रोजेक्ट, जो नदी के आसपास के इलाकों को सामुदायिक स्थानों में बदलने की कोशिश कर रहा है। लेकिन जैव विविधता के नुकसान और बाढ़ के खतरे बढ़ने की वजह से जम्मू और मंगलूरु जैसे स्थानों पर इस पर विरोध भी देखने को मिल रहा है। शहरों के लिए यह बड़ा सवाल है कि वे शहरी विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन कैसे बनाएँ, ताकि ये परियोजनाएँ समुदाय और प्रकृति दोनों के लिए फायदे लेकर आएं।
Jan 4, 20243 min read


भारत में रिंग रोड का विकास
रिंग रोड प्रोजेक्ट्स कनेक्टिविटी बढ़ाने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने की अहम रणनीति बनते जा रहे हैं। जैसे चेन्नई का आउटर रिंग रोड पास के सैटेलाइट टाउनशिप्स के विकास को प्रभावित कर रहा है। ये प्रोजेक्ट बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर का वादा करते हैं, लेकिन जमीन अधिग्रहण और पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर चिंता भी बढ़ा देते हैं। किसान विरोध कर रहे हैं और उनकी प्रभावशीलता पर बहस जारी है। ऐसे में, रिंग रोड प्रोजेक्ट्स भारत के शहरों के भविष्य को किस दिशा में ले जाएंगे?
Jan 4, 20243 min read


सिक्कों से लेकर QR कोड तक
चाय की दुकानों से लेकर बुलढाना की बसों तक, यूपीआई छोटे शहरों में लेन-देन करने के तरीके को पूरी तरह बदल रहा है। जैसे-जैसे डिजिटल पेमेंट्स मेट्रो शहरों से बाहर भी तेजी से बढ़ रहे हैं, वहां सफलता की कहानियों के साथ साइबर क्राइम और फंसे हुए अकाउंट्स की चिंता भी सामने आ रही है। यूपीआई से लेन-देन आसान और सुलभ हुआ है, लेकिन डिजिटल सुरक्षा और जागरूकता के सवाल भी उठ रहे हैं। भारत के इन छोटे-छोटे शहरों की रोज़मर्रा की अर्थव्यवस्था के लिए ये डिजिटल बदलाव क्या मायने रखते हैं?
Dec 3, 20233 min read


सड़क पर (डिजिटल) नजर
हाई-रिज़ॉल्यूशन कैमरे अब सिर्फ बड़े शहरों की खासियत नहीं रहे — ये अब मेलविशारम में ट्रैफिक पर नज़र रख रहे हैं और कोयंबटूर के पास जंगली जानवरों की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। ये सिस्टम बेहतर सुरक्षा और तेजी से जांच का वादा करते हैं, लेकिन इसके साथ ही कुछ सवाल भी खड़े करते हैं: क्या ये वाकई अपराध को कम कर रहे हैं? बढ़ती लागत और निजता की चिंताओं के बीच, भारत के शहरी इलाकों में निगरानी का बढ़ता दायरा सिर्फ बेहतर कैमरों से नहीं, बल्कि बेहतर जवाबदेही से जुड़ा हुआ है।
Nov 24, 20233 min read


समस्या का सफाया करना
QR कोड वाली शिकायत प्रणाली से लेकर मोबाइल टॉयलेट तक, भारतीय शहर सार्वजनिक शौचालयों को फिर से सोच रहे हैं। लेकिन ऐसी तकनीकी सुविधाओं और नागरिक अभियानों के बावजूद साफ-सफाई में अभी भी उतार-चढ़ाव रहता है। कुछ शहरों में सुधार नजर आते हैं, जबकि कई जगहों पर रखरखाव कमजोर है। जब स्वच्छता की नई तकनीकें ज़मीनी हकीकत से मिलती हैं, तो सार्वजनिक शौचालयों का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि शहर इंफ्रास्ट्रक्चर, जवाबदेही और सम्मानजनक डिज़ाइन के बीच सही संतुलन कैसे बनाते हैं।
Nov 21, 20233 min read
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