घर वहीं हैं, जहाँ इतिहास बसा हो
- connect2783
- Jan 10, 2024
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Updated: Jul 17
मौसम की मार झेलती दीवारें, घटता हुआ बजट और बदलती हुई शहर की तस्वीर — भारत के विरासत घर शहरी आधुनिकता के दबाव में हैं। कुछ घर डिजिटल आर्काइव, पर्यटन और होमस्टे के माध्यम से अपनी पहचान बनाए रख रहे हैं, तो कुछ पूरी तरह से व्यावसायीकरण का विरोध कर रहे हैं। निजी जिम्मेदारी और सार्वजनिक स्मृति के बीच फंसे ये घर एक अहम सवाल उठाते हैं: जब अतीत से आमदनी न हो, तो उनकी बचत की जिम्मेदारी असल में किसकी होती है?

आजकल सोशल मीडिया जैसे कि इंस्टाग्राम पर भारतीय शहरों की धरोहरों को दिखाने वाले कई अकाउंट मिल जाते हैं। बियॉन्ड हेरिटेज और कलकत्ता हाउस जैसे पेज डिजिटल अभिलेखागार के रूप में काम कर रहे हैं, जो भूली हुई संरचनाओं, पुरानी बनी परंपराओं और शहरी समुदाय की कहानियों के बारे में बताते हैं।
तेजी से बढ़ते शहरीकरण के बीच हेरिटेज होम्स की चुनौतियों के मद्देनजर ऐसे कदम बेहद महत्वपूर्ण हैं। जलवायु संकट का दुष्प्रभाव सदियों पुरानी परंपराओं पर भी देखने को मिला है। इसी तरह जोधपुर और जैसलमेर में पारंपरिक बलुआ पत्थरों से बने घरों को कई तरह से नुकसान हो रहा है क्योंकि ये बार-बार होने वाली बारिश, नमी और अत्यधिक तापमान नहीं झेल पा रहे हैं। ये इमारतें बढ़ते अतिक्रमण और संरक्षण की उचित नीतियों के अभाव से भी जूझ रही हैं।
Initiatives like “Make It Happen” in Goa are preserving heritage by helping residence owners host tourists in their ancestral homes.
जहाँ एक तरफ पर्यटकों को इन घरों से जुड़ी यादों और कहानियों को जानने का मौका मिल जाता है वहीं दूसरी तरफ इससे होने वाली कमाई के कुछ हिस्से से इन घरों के रखरखाव में सहयोग भी हो जाता है। शिलांग की एमिका नॉन्गकिनरिह ने अपने परिवार के 140 साल पुराने पुश्तैनी घर को 'निराला होम्स' में बदलकर संरक्षित करने की जुगत की। अब वह प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (प्राइम मिनिस्टर एम्प्लॉयमेंट जेनरेशन प्रोग्राम, पीएमईजीपी) से मिलने वाली सब्सिडी और किराए से घर की मरम्मत के लोन को चुकाती हैं।

इस साल एक अमेरिकी कंपनी एयरबीएनबी ने 'सोल ऑफ इंडिया' माइक्रोसाइट के माध्यम से इन पुश्तैनी घरों में होमस्टे को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन मंत्रालय के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। इस तरह की पहल गुजरात के ऐसे शहरों को फिर से जीवन दे सकती है, जो कभी पारसी समुदाय का संपन्न केंद्र हुआ करता था।
नवसारी के आसपास एयरबीएनबी की भरमार है लेकिन उदवाड़ा के कई बुजुर्ग निवासी अपने गृहनगर को व्यवसायिक बनाने के पक्ष में नहीं हैं। इसी तरह उदवाड़ा की महरूख रबाडी अपने 150 साल पुराने अपने पुश्तैनी घर में अकेले रहना पसंद करती हैं।


जबकि कुछ पुश्तैनी घरों के मालिक होमस्टे में ही उम्मीद की किरण देखते हैं फिर भी उनके संरक्षण की सामूहिक जिम्मेदारी पर सवाल बना हुआ है। इन घरों के रखरखाव की जिम्मेदारी निजी मालिकों पर है लेकिन स्वीकृति में देरी और धन की कमी इसमें रुकावट बनते हैं। हालांकि ये हेरिटेज होम्स शहर के सामूहिक इतिहास की गवाही देते हैं और इनके संरक्षण के लिए बड़े पैमाने पर निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है।
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