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नदी तटों का जीर्णोद्धार

  • connect2783
  • Jan 4, 2024
  • 3 min read

Updated: Jul 17

भारत के शहरों में नदी के किनारे विकास तेजी से हो रहा है, जैसे कोटा में चंबल नदी के किनारे का प्रोजेक्ट, जो नदी के आसपास के इलाकों को सामुदायिक स्थानों में बदलने की कोशिश कर रहा है। लेकिन जैव विविधता के नुकसान और बाढ़ के खतरे बढ़ने की वजह से जम्मू और मंगलूरु जैसे स्थानों पर इस पर विरोध भी देखने को मिल रहा है। शहरों के लिए यह बड़ा सवाल है कि वे शहरी विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन कैसे बनाएँ, ताकि ये परियोजनाएँ समुदाय और प्रकृति दोनों के लिए फायदे लेकर आएं।

छवि: श्रीनगर में झेलम रिवरफ्रंट | एक्स पर अतहर आमिर खान
छवि: श्रीनगर में झेलम रिवरफ्रंट | एक्स पर अतहर आमिर खान

अहमदाबाद के साबरमती रिवरफ्रंट से प्रेरित होकर देश भर में नदियों के किनारों को पुनर्जीवित करने के लिए बड़े पैमाने पर कोशिशें जारी हैं। नजरअंदाज किये गए नदी तटों को एक सुंदर और मनोरंजक सामुदायिक स्थानों में बदलना ही इन रिवरफ्रंट विकास परियोजनाओं का उद्देश्य है। कोटा का चंबल रिवरफ्रंट इसका एक प्रमाणित उदाहरण है जो शहरी शिक्षा केन्द्र से बदलकर एक पर्यटन स्थल के रूप में उभरकर सामने आया है।


हालांकि इन परियोजनाओं का उद्देश्य नदी के आस-पास के इलाकों को सुंदर और मनोरंजक बनाना है लेकिन इससे नदी के पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को नुकसान पहुँचने का खतरा बढ़ जाता है। इसी तरह जम्मू के 530 करोड़ रुपये की लागत से बने तवी रिवरफ्रंट परियोजना को नदी की चौड़ाई कम होने के कारण बाढ़ के बढ़ते जोखिमों का सामना करना पड़ा। नेशनल एनवायरनमेंट केअर फेडरेशन (एनईसीएफ) ने मंगलुरु की नेत्रावती परियोजना की आलोचना की है और साथ ही साथ इसपर तटीय क्षेत्र विनियमन मानदंडों का उल्लंघन करने और मैंग्रोव के पेड़ों को नष्ट करने का आरोप भी लगाया है।

साल 2006 में कोलकाता के हुगली रिवरफ्रंट ने नदी के जलजीवन में दखलअंदाजी से बचने के लिए भूमि सुधार की बजाय सौंदर्यीकरण को ज्यादा तवज्जो दिया। विशेषज्ञों के मुताबिक यह एक ऐसा पहलू है जिसपर मौजूदा समय की परियोजनाओं में ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने उदयपुर के आयड़ रिवरफ्रंट पर चिंता जताते हुए कहा कि बाढ़ के मैदानों पर अतिक्रमण और सीमेंट कंक्रीट का अंधाधुंध उपयोग खतरे को बढ़ाता है और जल अधिनियम, 1974 के उल्लंघन को भी उजागर करता है।

भारत भर में अनेक रिवरफ्रंट विकास परियोजनाओं को दर्शाता मानचित्र | स्रोत: प्रज्ञा घोष, द प्रिंट
भारत भर में अनेक रिवरफ्रंट विकास परियोजनाओं को दर्शाता मानचित्र | स्रोत: प्रज्ञा घोष, द प्रिंट

भारत भर में नदी तट विकास परियोजनाएं

पुणे में तकरीबन 2000 से ज्यादा नागरिकों ने पेड़ों को गले लगाकर मुला-मुथा रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट के कार्यान्वन का विरोध किया। सामुदायिक हितों और पर्यावरण संरक्षण के साथ विकास के जुड़ाव को सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय लोगों की राय बहुत जरूरी होती है। इस मामले में "फ्रेंड्स ऑफ रिवर तवी" जैसे पर्यावरणवादी समूहों ने संतुलित दृष्टिकोण की जरूरतों को उजागर किया है।

स्रोत: मुथा नदी तट पर नागरिकों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का विरोध प्रदर्शन | द हिंदुस्तान टाइम्स
स्रोत: मुथा नदी तट पर नागरिकों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का विरोध प्रदर्शन | द हिंदुस्तान टाइम्स

इस वर्ष अप्रैल में पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने प्रस्तावित मुला-मुथा रिवरफ्रंट विकास परियोजना के लिए लगभग 6,000 पेड़ों को काटने के नगर निकाय के फैसले के विरोध में पुणे नगर निगम के पर्यावरण दूत पुरस्कार को लौटाने का फैसला किया था।

इसी तरह तेलंगाना का एक प्रतिनिधिमंडल सफल रिवरफ्रंट परियोजनाओं का अध्ययन करने के लिए दक्षिण कोरिया और सिंगापुर का दौरा करने वाला है ताकि करीमनगर के मनेर रिवरफ्रंट को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सके। ये परियोजनाएँ शहरी स्थानों को बढ़ाने के साथ-साथ समुदाय को शामिल करके पर्यावरण की अखंडता और इसके संरक्षण को बरकरार रखने में सहायक होती हैं। भारत के छोटे शहरों में रिवरफ्रंट पहल के विकास को पारिस्थितिक स्थिरता के साथ संतुलित करना होगा और केवल तभी इनकी सफलता संभव है।


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