समस्या का सफाया करना
- connect2783
- Nov 21, 2023
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Updated: Jul 18
QR कोड वाली शिकायत प्रणाली से लेकर मोबाइल टॉयलेट तक, भारतीय शहर सार्वजनिक शौचालयों को फिर से सोच रहे हैं। लेकिन ऐसी तकनीकी सुविधाओं और नागरिक अभियानों के बावजूद साफ-सफाई में अभी भी उतार-चढ़ाव रहता है। कुछ शहरों में सुधार नजर आते हैं, जबकि कई जगहों पर रखरखाव कमजोर है। जब स्वच्छता की नई तकनीकें ज़मीनी हकीकत से मिलती हैं, तो सार्वजनिक शौचालयों का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि शहर इंफ्रास्ट्रक्चर, जवाबदेही और सम्मानजनक डिज़ाइन के बीच सही संतुलन कैसे बनाते हैं।

भारत में सार्वजनिक शौचालय अक्सर स्वच्छता और लोगों तक कम पहुँच के कारण चिंता का विषय बने रहते हैं। सार्वजनिक शौचालय सार्वजिनक साफ-सफाई बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं लेकिन फिर भी इनकी रखरखाव और सफाई अक्सर विवाद का मुद्दा बनते हैं।
हाल ही में भारत के 341 जिलों में एक सर्वेक्षण किया गया जिसमें सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति सामने आई। इनमें 42% शहरी भारतीयों के मुताबिक सार्वजनिक शौचालयों की उपलब्धता में सुधार हुआ है वहीं 52% लोग इनकी सफाई से असंतुष्ट रहे।


कोयंबटूर में "नम्मा शौचालय" योजना की सरकारी निजी कंपनी भागीदारी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप, पीपीपी) मॉडल से अनुबंधों के बावजूद एक रिपोर्ट द्वारा इसकी खराब स्थिति को उजागर किया गया है। भारतीय शहरों में इन्हीं सब समस्याओं से निपटने के लिए "टॉयलेटसेवा" ऐप बनाई गई है।
पुणे और पिंपरी-चिंचवाड़ के अधिकारियों ने इस ऐप के साथ साझेदारी की है ताकि लोगों को शौचालय की स्थिति पर अपनी प्रतिक्रिया देने और उपयोगकर्ताओं को इसकी सुविधाओं से परिचित कराने में सहूलियत मिल सके। त्रिची नगर निगम ने गन्दे शौचालयों को चिन्हित करने और सुधार से जुड़ी प्रतिक्रिया देने के लिए आम लोगों के लिए क्यूआर कोड सिस्टम शुरू किया है।
पेशे से आर्किटेक्ट (वास्तुकार) विश्वनाथन श्रीधर ने चेन्नई में मोबाइल पब्लिक टॉयलेट तैयार किये हैं। यह एकल-व्यक्ति के उपयोग के लिए एक साफ जगह प्रदान करते हैं और इसे साइकिल या किसी वाहन पर भी रखा जा सकता है। महिलाओं और खास तौर पर विकलांग व्यक्तियों को जिन परेशानियों का सामना करना पड़ता था उन दिक्कतों का निपटारा करते हुए ये मोबाइल शौचालय उनके लिए आसान पहुंच और गोपनीयता प्रदान करते हैं।

शहर की बुनियादी सुविधाओं में सार्वजनिक शौचालय एक बहुत ही जरूरी घटक है। डॉ० बिंदेश्वर पाठक द्वारा शुरू किया गया सुलभ शौचालय आंदोलन स्वच्छता की चुनौतियों को निपटाने में सफल हुआ है
इस आंदोलन के जरिये बड़े ही इनोवेटिव तरीके से टू-पिट पोर-फ्लश टॉयलेट सिस्टम (टू-पिट पोर-फ्लश शौचालय या जुड़वां गड्ढे वाले शौचालय एक ऐसी शौचालय प्रणाली है जिसमें मल को दो गड्ढों में वैकल्पिक रूप से संग्रहित करके बिना किसी सीवेज नेटवर्क के उसका प्राकृतिक रूप से उपचार किया जाता है) का इस्तेमाल किया जा रहा है।
मैला ढोने के काम को खत्म करने और पूरी तरह से साफ सफाई में सुधार का ध्यान रखने के उद्देश्य के साथ इस तरह के प्रभाव सामूहिक सहभागिता के साथ-साथ स्थाई रूप से साफ-सफाई के चलन को भी बढ़ावा देते हैं।
फिर भी सार्वजनिक शौचालयों के रखरखाव और सफाई की परेशानी अब भी बरकरार है। हालांकि लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आम नागरिकों और कई सिविल सोसाइटी समूहों द्वारा शौचालयों की गुणवत्ता को बढ़ाने की कोशिश की जा रही है।
क्या आपको अपने शहर के किसी सार्वजनिक शौचालय का उपयोग करने में कभी कोई दिक्कत हुई है?
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