बाज़ारों की उलझी कहानी
- connect2783
- Jun 20, 2024
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Updated: Jul 16
भारत के कोने-कोने में लगने वाले साप्ताहिक हाट सिर्फ़ बाज़ार नहीं हैं — ये व्यापार, संस्कृति और समुदाय का हिस्सा हैं। कालिम्पोंग का बिहीबारे हाट हो या गुवाहाटी का बेलतला बाज़ार, ये हाट आज भी शहरों में बदलती ज़रूरतों के साथ चलते जा रहे हैं। लेकिन जैसे-जैसे शहरों में दिल्ली हाट जैसे 'क्यूरेटेड' बाज़ार बनते हैं, सवाल उठता है कि क्या शहरी बदलावों के बीच हम इन पारंपरिक हाटों की असली रौनक और अपनापन बनाए रख पाएंगे?

क्या आप जानते हैं कि कलिम्पोंग में स्थानीय किसान और विक्रेता हर हफ्ते तिब्बती भोजन और पारंपरिक हस्तशिल्प के साथ जैविक स्थानीय उत्पाद बेचते हैं? स्थानीय लोगों में यह 'बिहिबरे हाट’ के नाम से प्रसिद्ध है क्योंकि यह हर गुरुवार की सुबह आयोजित किया जाता है। यह बाजार एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक स्थान है जो स्थानीय अर्थव्यवस्था और सामुदायिक एकजुटता को बनाये रखने में मदद करता है। भारत में हाट मुख्य तौर पर खुले बाजार हैं जो मूल रूप से ग्रामीण खुदरा हाइपर बाजार के रूप में उभरे हैं और गाँव, शहरों और कस्बों के बीच व्यापार की सुविधा प्रदान करके अब शहरी क्षेत्रों में भी पहुँच गए हैं। ये आवधिक बाजार साप्ताहिक या पाक्षिक रूप से लगते हैं और ऐतिहासिक रूप से छोटे शहरों के परिवर्तन और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पश्चिम बंगाल का रामपुरहाट ऐसा ही एक उदाहरण है जो एक छोटे से हाट पर निर्भर शहर था पर अब यह एक बड़ी नगर पालिका बन गया है।
ये बाजार हर हफ्ते या पंद्रह दिन में एक बार लगते हैं और छोटे शहरों के विकास और बदलाव में हमेशा से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं।
असम का सबसे बड़ा शहर, गुवाहाटी एक प्रतिष्ठित और ऐतिहासिक द्वि-साप्ताहिक बाजार का गढ़ है। प्रत्येक सप्ताह के गुरुवार और रविवार को पीर अजान फकीर रोड पर लगने वाला बेलटोला बाजार अहोम साम्राज्य (1228-1826 ई०) दिनों से चलन में है। यह हाट अलग-अलग स्थानीय समुदायों के लिए एक व्यापार केंद्र के रूप में अपना महत्व बनाये है। यह पड़ोसी राज्य मेघालय से आने वाले ग्रामीणों के लिए सामाजिक-आर्थिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और असम के चौराहे पर लगा कनुबारी शहर का गुरुवार हाट स्थानीय समुदायों के बीच राजा मिर्च, लाल चींटी की चटनी और मांस जैसे स्थानीय उत्पादों की खरीद-बिक्री को मजबूत बनाता है।
जहां शहर अब हाट बाज़ारों की सामाजिक और सांस्कृतिक ज़रूरत को समझने लगे हैं, वहीं पुराने अनौपचारिक साप्ताहिक हाटों को शहरों में व्यवधान पैदा करने वाला भी माना जाने लगा है।
कई सीमावर्ती कस्बों और गाँव की इन हाटों ने भूटान, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों के साथ सीमा पार अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत और म्यांमार के बीच स्वतंत्रता से पहले भी व्यापार मौजूद था फिर 26 सितंबर, 1950 को एक हस्ताक्षरित समझौते के बाद सीमा चौकी के 40 किमी के दायरे में आने वाली सभी स्थानीय पहाड़ी जनजातियों को व्यापार के लिए पासपोर्ट की अनिवार्यता से छूट दे दी गई। अरुणाचल प्रदेश के नामपोंग शहर में पंगसौ दर्रे पर सीमा हाट की स्थापना के लिए भारत और म्यांमार के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया है जिसके तहत हर शुक्रवार को यहाँ लगने वाले हाट में खाद्य पदार्थों और मोटरबाइकों समेत 62 कर मुक्त वस्तुओं के व्यापार की अनुमति है। हालाँकि, कोविड-19 महामारी के बाद से व्यापार निलंबित है और कई छोटे व्यापारियों को सीमाओं को फिर से खोले जाने के सम्बंध में केंद्र सरकार के फैसले का इंतजार है क्योंकि इनकी आजीविका इन हाटों पर निर्भर करती है।
ओडिशा में हाल के दिनों में इन हाटों ने राजनीतिक प्रचार के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान के तौर पर सबका ध्यान आकर्षित किया है। मई 2024 में राजनीतिक नेताओं ने ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं, विशेष रूप से दूरदराज के गाँवों की आदिवासी आबादी तक पहुँचने के लिए कोरापुट और नबरंगपुर हाटों का दौरा किया जो केवल साप्ताहिक तौर पर इन हाटों में आते हैं। राजनीतिक दलों के इस सकारात्मक कदम ने सामाजिक-राजनीतिक वार्तालाप केंद्र के रूप में इन हाटों को एक नई ऊंचाई तक पहुँचाया है। समकालीन समय में हाट पर्यटन के रूप में भी उभरे हैं, जबकि कुछ छोटे शहरों में इनकी महत्ता जैविक और ऐतिहासिक है और बाकी दूसरे हाट दिल्ली हाट की तरह एक आधुनिक संस्करण हैं। दिल्ली हाट एक स्थायी और औपचारिक बाजार है। 1994 में दिल्ली पर्यटन विभाग द्वारा यहाँ के पारंपरिक हाट बाजारों को सौंदर्यपूर्ण तरीके से बदल दिया गया।

अन्य शहरों में भी दिल्ली हाट के समान ही हाट स्थापित करने की योजना पर काम चल रहा है। गुरुग्राम में कई मॉल और रेस्तरां होने के बावजूद पारम्परिक हाट का अभाव झलकता है, जिससे हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (एचएसवीपी) को 'गुड़गांव हाट' की योजना के लिए प्रेरणा मिली। यह हाट द्वारका एक्सप्रेसवे के पास सेक्टर 37 सी में स्थित होगा जो 2.4 एकड़ में फैला हुआ है। इसी तरह पुडुचेरी के समुद्री तट के सौंदर्यीकरण और पुनरोद्धार में दिल्ली हाट की तर्ज पर एक क्राफ्ट बाजार बनाने की तैयारी है, जो पैदल यात्रियों को प्राथमिकता देने के साथ-साथ हथकरघा और हस्तशिल्प को भी बढ़ावा देगा। पर्यटन विभाग द्वारा यह परियोजना पांडिचेरी नगर पालिका और पीडब्ल्यूडी के सहयोग से कार्यान्वित की जा रही है।
दशकों से शहरों में मौजूद अनौपचारिक साप्ताहिक हाटों को शहरी स्थानों के दुरुपयोग के रूप में देखा जाता रहा है जबकि शहरों को मनोरंजन के लिए हाट बाजारों की सामाजिक-सांस्कृतिक जरूरत महसूस होती है। मदुरै के बामा नगर में साप्ताहिक रविवार बाजार अनेक समस्याओं जैसे कि सड़क जाम, यातायात की समस्या और जानवरों को लुभाने वाले कचरे के निदान की कमी के कारण स्थानीय निवासियों की असुविधा का कारण बन गया है। पहले के समय में साप्ताहिक हाट उचापराम्बुमेदु पड़ोस में स्थित था लेकिन इसी तरह की चुनौतियों के कारण इसका स्थान बदल दिया गया था। इसी तरह गुवाहाटी का बेलटोला बाजार आस-पास के स्थानीय लोगों की चिंता का कारण बन गया है क्योंकि हाट विक्रेताओं ने मुख्य सड़क पर कब्जा करके भीड़भाड़ की स्थिति उत्पन्न कर दी है।
साप्ताहिक बाजारों के आयोजन में ट्रैफिक प्रबंधन, पार्किंग की जरूरतें और कूड़ा प्रबंधन जैसी शहरी समस्याओं को सुलझाना प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
पिछले साल सितंबर में, त्रिची नगर निगम ने एक आदेश जारी कर शहर के पांच अलग-अलग स्थानों पर अस्थायी साप्ताहिक सब्जी हाटों के संचालन पर रोक लगा दी थी। जबकि निगम के बाजार में किराए के स्टॉल वाले विक्रेताओं ने इस कदम का स्वागत किया, इसने उन सड़क विक्रेताओं के संचालन को सीमित कर दिया है जिनके पास हाथगाड़ी या मोटर चालित वाहनों तक पहुंच नहीं है। फरवरी 2023 में, नासिक के रिंग रोड में अनौपचारिक साप्ताहिक बाजारों के लगातार बढ़ने से निवासियों ने ऐसे हाटों के लिए खुले स्थान और वेंडिंग जोन की मांग की। जबकि निवासियों को अपनी जीविका के लिए ऐसे बाजारों की जरूरत होती है, वे शहर की मुख्य सड़कों पर बाजारों के असुरक्षित स्थान के बारे में चिंताओं का हवाला देते हैं।
साप्ताहिक बाज़ारों के आयोजन में, यातायात प्रबंधन, पार्किंग जरूरतें जैसे नागरिक मुद्दों को हल करना और कचरे के निदान के लिए रणनीतियाँ बनाना शहर के अधिकारियों के लिए एक चुनौती बनी हुई है। हालांकि ऐसे मुद्दों के समाधान को ग्रामीण आजीविका का समर्थन करने और सामुदायिक जुड़ाव को बढ़ावा देने की साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में सामाजिक-सांस्कृतिक स्थानों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए संतुलित किया जाना चाहिए। इस प्रकाश में जम्मू कश्मीर ग्रामीण आजीविका मिशन (जेकेआरएलएम) द्वारा श्रीनगर में आयोजित उम्मीद हाट ने महिलाओं के नेतृत्व वाले पाक कला, हथकरघा और हस्तशिल्प व्यवसाय का समर्थन करने वाले लगभग 4.5 लाख ग्रामीण स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) सदस्यों को एक मंच प्रदान किया है। इसी तरह, सतवत लोध की पहल के तहत बांग्ला सांस्कृतिक संगठन ने अगरतला के इलाके में स्थानीय बंगाली उपसंस्कृतियों को बढ़ावा देने के लिए त्रिपुरा का पहला 'सांस्कृतिक हाट' शुरू किया है। इस तरह की पहल सुनियोजित साप्ताहिक बाजारों की क्षमता का उदाहरण देती है जो शहरी-ग्रामीण आदान-प्रदान को स्थायी तरीके से बढ़ाती है।
क्या आपके शहर में कोई साप्ताहिक हाट या हफ़्ता बाज़ार है? आपके शहर का प्रशासन साप्ताहिक बाजारों को बचाने के साथ-साथ इससे जुड़ी नागरिक चुनौतियों का समाधान करने के लिए क्या कर रहा है? हमें नीचे टिप्पणियों में बताएं!












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