यह मेरी जगह है!
- connect2783
- Jun 20, 2024
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Updated: Jul 16
भारत में मेट्रो शहरों के साथ-साथ छोटे शहरों में भी को-वर्किंग कल्चर तेजी से बढ़ रहा है। जयपुर से लेकर कोयंबटूर तक, फ्लेक्सिबल वर्कस्पेस स्टार्टअप्स, फ्रीलांसरों और बड़ी कंपनियों के काम करने के तरीके को बदल रहे हैं। सस्ता रेंट, बेहतर कनेक्टिविटी और बदलता हुआ वर्क कल्चर इस ट्रेंड को आगे बढ़ा रहें हैं। जैसे गोवा समुद्र तट के पास वर्क हब का सपना देख रहा है, क्या छोटे शहर भी भारत की इस को-वर्किंग क्रांति को अपनाने के लिए तैयार हैं?

को-वर्किंग स्थानों के आंकड़ों पर नजर डालें तो इस तरह के 2197 स्थानों के साथ भारत संयुक्त राज्य अमेरिका(3700) और यूनाइटेड किंगडम(1044) के बीच में है यानी कि भारत पूरे विश्व में दूसरे रैंक पर है। भारत में को-वर्किंग स्थानों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है और यह पिछले चार साल में व्यवसायों के बीच अधिक लोकप्रियता के कारण दुगुने हो गए हैं। साल 2019 में प्रमुख टियर-1 शहरों में इन स्थानों की मौजूदगी 14% थी जो कि साल 2023 में बढ़कर 27% हो गई।
पिछले दो सालों में, खासतौर पर टियर-1, टियर-2 और टियर-3 शहरों में को-वर्किंग स्थानों की मांग में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। टियर-2 और टियर-3 शहरों में स्टार्टअप्स की संख्या में वृद्धि के साथ, कर्मचारियों के लिए घर से काम करने के बढ़ते चयन के कारण को-वर्किंग स्थानों की मांग बढ़ गई है। इसी तरह कई कम्पनियों ने क्षेत्रीय कार्यालय शुरू किए हैं या फिर ऐसे को-वर्किंग स्थानों को चुना है, जिससे कर्मचारियों को उनके संबंधित गृहनगर से काम करने की अनुमति मिलती है। इसके अलावा पूरी तरह से सुनियोजित दफ्तर, हाई-स्पीड इंटरनेट, आईटी सहायता और असीमित कॉफी जैसी सुविधाएं छोटे शहरों के लोगों को इस तरह से काम करने का चुनाव करने के लिए लुभाती रही हैं।
पूरी तरह से मैनेज्ड ऑफिस स्पेसेस, हाई-स्पीड इंटरनेट, आईटी सपोर्ट, और अनलिमिटेड कॉफी जैसी बेहतरीन सुविधाएं छोटे शहरों के लोगों को भी को-वर्किंग स्पेसेस की ओर आकर्षित करती रहती हैं।
जयपुर, चंडीगढ़ और कोयंबटूर जैसे टियर-2 शहरों में इन लचीले कार्य स्थानों की मांग बढ़ती जा रही है। महानगरों के अलावा छोटे शहरों में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है जिसके लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। टियर-1 शहरों में रहने की बढ़ती लागत और ज्यादा किराए के विपरीत किफायती किराया दर, बेहतर कनेक्टिविटी और डिजिटल बुनियादी ढांचे ने उद्यमियों को छोटे शहरों में अपने उद्यम को साकार करने में सहायता की है। सेंचुरी रियल एस्टेट के मैनेजिंग डायरेक्टर, रवींद्र पई ने बताया कि "कंपनी छोटे शहरों में ऐसे कार्य स्थलों को खोज रही है जो इनके कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके कार्यबल को भी लचीलापन मुहैया कर सके।" हालांकि को-वर्किंग स्थानों के फायदे इनकी क्षमता और बुनियादी सुविधाओं से इतर है। ये स्थान समुदायिक भावना को बढ़ाते हैं, लोगों को नेटवर्क बनाने की अनुमति देते हैं और अलग-अलग बैकग्राउंड के पेशेवरों के बीच सहयोग की सुविधा भी मुहैया कराते हैं। गुड़गांव में ये साझेदारी कार्य स्थान कंपनियों को लंबे समय के लीज से प्रभावित हुए बिना ऊपर या नीचे बढ़ने की मंजूरी दे रहे हैं।
को-वर्किंग स्थान छोटे शहरों तक अपनी पहुँच बढ़ाने के अवसर खोज रही है और इसका श्रेय बड़ी कंपनियों को दिया जाता है। आइडब्लूजी ने 2022 में दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और गुजरात में अपने 18 केंद्र बनाने के लिए कोनजोनिक्स के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। ये कंपनियां विशाखापत्तनम, कोयम्बटूर, लखनऊ, चंडीगढ़, जयपुर जैसे टियर-2 शहरों में खुल चुकी हैं लेकिन ये पानीपत और कोच्चि में भी अपनी मौजूदगी बनाने की योजना बना रही है। भारत के तेजी से बढ़ने वाले शहरों में अहमदाबाद, इंदौर, भुवनेश्वर, लखनऊ और चंडीगढ़ शामिल हैं, जहाँ को-वर्किंग स्थानों के संचालक इनकी बढ़ती मांगों के कारण अच्छा-खासा मुनाफा पा सकते हैं। ANAROCK ग्रुप्स (एक फ्लेक्स ऑपरेटिंग कंपनी) के चेयरमैन अनुज पूरी ने इस बात को पुख्ता किया कि " कुछ बड़े कॉरपोरेट्स कई टियर-2 और 3 शहरों में बढ़ते अवसरों को ध्यान में रखते हुए वहाँ अपनी शुरुआत करने का एक बेहतर समय देख रहे हैं जिसके कारण पिछले एक साल में इन शहरों में जगह की होड़ में फ्लेक्सी स्पेस का चलन बढ़ा है।" इसके अलावा को-वर्किंग स्थान का प्रबंधन करने वाली कंपनियां जैसे कि स्मार्टवर्क्स, AWFIS भी टियर -2 शहरों में को-वर्किंग स्थान शुरू करने की योजना बना रही हैं।
ये जगहें एक कम्युनिटी का एहसास देती हैं, जहां लोग नेटवर्किंग कर पाते हैं और अलग-अलग पृष्ठभूमि के प्रोफेशनल्स के बीच सहयोग बढ़ता है।
फ्रीलांसरों के बीच को-वर्किंग स्थान की लोकप्रियता ज्यादा है। भारत में कुल को-वर्किंग सीटों में से लगभग 11.19% सीटों पर इनका कब्जा है। मार्केटवॉच की रिपोर्ट के मुताबिक 2025 तक फ्रीलांसर समुदाय 1,60,000 करोड़ से 2,40,000 तक बढ़ने की उम्मीद है। जबकि वैश्विक स्तर पर 2030 तक को-वर्किंग मार्केट में 27.28% की बढ़ोतरी दिखने की उम्मीद है। वीवर्क के सीइओ करण वारवानी ने बताया कि फ्रीलांसिंग में बढ़ोतरी और गिग इकोनॉमी ने आधुनिक कार्यबल को एकजुट किया है, जिससे लचीले कार्य स्थानों की मांग बढ़ रही है। चंडीगढ़ में स्थित नेक्स्ट57, को-वर्किंग स्थान मुहैया कराने वाली कंपनी है जो कि टियर-2 और टियर-3 शहरों में फ्रीलांसरों, उद्यमियों और स्टार्टअप्स को उनके जरूरत अनुसार को-वर्किंग स्थान प्रदान करती है। वर्तमान में ये मोहाली, चंडीगढ़ और गाजीपुर में को-वर्किंग स्थान की सुविधा देते हैं। सह-संस्थापक प्रशांत वर्मा और मोहक गोयल इन्हें शुरू करने के बारे में बताते हैं कि इन स्थानों का उद्देश्य चार सीटों वाले स्थिर केबिन में काम करने से लेकर ज्यादा लचीले स्थानों में काम करने में लगने वाले उच्च कीमतों की सोच को गलत साबित करना था।
महामारी के दौरान जो को-वर्किंग स्पेसेस में तेजी आने की उम्मीद थी, वह अब तक पूरी तरह से सच नहीं हो पाई है।
आजकल रिवर्स माइग्रेशन और घर के करीब काम करने का विचार तेजी से लोकप्रिय हो गया है, जो लचीले कार्य स्थान के ऑपरेटरों को टियर-2 और टियर-3 शहरों में कार्यबल की जरूरतों को पूरा करने में सफल बनाता है। डेलॉयट और फ्रेशवर्क्स जैसी बड़ी कंपनियों ने कोयम्बटूर, पुणे और मेरठ जैसे छोटे शहरों और मध्यम शहरों में लगभग 3000 सीटों वाला को-वर्किंग स्थान खरीदा है। ये कंपनियां किफायती समाधान चुन रही हैं। इसी तरह भारत के अग्रणी को-वर्किंग स्थानों में से एक वीवर्क अपनी 60% जगह कोलियर्स इंडिया, खेतान एंड कंपनी, टाटा स्काई ब्रॉडबैंड जैसी कंपनियों को उपलब्ध कराता है जबकि अन्य 40% जगह का उपयोग स्टार्टअप, फ्रीलांसर और छोटे एवं मध्यम उद्यम करते हैं।
छोटे शहरों में को-वर्किंग संस्कृति के बढ़ते चलन के बीच गोवा अपने ग्रामीण इलाकों में हाई-स्पीड इंटरनेट डिजिटल नोमैड्स को लुभाने और समुद्री इलाकों के आस-पास को-वर्किंग स्थान शुरू करने की योजना बना रहा है। गोवा के पर्यटन मंत्री ने यह स्पष्ट किया कि "अगले साल तक हमारे पास डिजिटल नोमैड्स और फ्रीलांसरों को आकर्षित करने के लिए समुद्र तट के किनारे को-वर्किंग स्थान और हाई-स्पीड इंटरनेट के साथ बुनियादी सुविधाएँ होनी चाहिए, जो सामान्य 9-5 शेड्यूल से नहीं चलते हों।" ऐसी सरकारी पहल से प्रेरित होकर मयूर सोनटके जो कि अंजुना-गोवा, धर्मकोट और लोनावला में चलने वाले नोमैडगाओ, एक को-वर्किंग स्थान के संस्थापक हैं, वे प्रकृति के करीब रहते हुए रिमोट वर्कर्स और डिजिटल नोमैड्स के लिए को-वर्किंग/ को-लिविंग जगह प्रदान करते हैं। इसी तरह महानगरों और छोटे शहरों में कई कैफे और रेस्तरां भी को-वर्किंग जैसी सुविधाएं देते हैं। सोशल, एक साझा कार्य स्थान मुहैया करता है जो कि चंडीगढ़, पुणे, बैंगलोर और दिल्ली के कलाकारों और नवप्रवर्तकों का एक केंद्र है। coworkingers.com को-वर्किंग स्थानों की लोकेशन के साथ साथ को-वर्किंग कॉफी शॉप की जानकारी भी देता है। महानगरीय शहरों के अलावा, ये कोच्चि, देहरादून, कोयम्बटूर, चंडीगढ़, इंदौर, जयपुर और गोवा में को-वर्किंग कॉफी शॉप की एक सूची भी प्रदान करते हैं।

को-वर्किंग कल्चर अनगिनत सुविधाओं और लचीले कार्यशैली के साथ-साथ अनेक खतरों के लिये भी मार्ग खोल देता है। सुरक्षा के नियम, प्रवेश की शर्तें और इनके रोकथाम जैसे कई मुद्दे चिंता का कारण बन सकते हैं। इनसे निपटने के विशेष कानूनों के बिना इनसे होने वाले खतरों के प्रति सजग रहना जरूरी हो जाता है। बड़े- बड़े कॉरपोरेशन की इस क्षेत्र में अंधाधुंध बढ़ोतरी के कारण कर्मचारियों में मेहनत व आत्मविश्वास की कमी से व्यवसायिक एकजुटता को नुकसान पहुँच सकता है।
वैसे तो पूरे भारत मे को-वर्किंग कल्चर लोकप्रिय हो रहा है पर ऐसे छोटे शहर जो किसी महानगर के पास बसे हैं वहाँ पर इनकी जड़ें ज्यादा गहरी हैं। टियर-4 या कम प्रसिद्ध शहरों में को-वर्किंग स्थान के चलन के बारे में काफी कम जानकारी है। जबकि को-वर्किंग स्थान फ्रीलांसरों और रिमोट वर्कर्स के लिए फायदेमंद साबित हुए हैं। विभिन्न व्यवसायों की गोपनीयता और कॉन्फ्रेंस रूम की बुकिंग से जुड़ी चुनौतियों को अभी भी पूरी तरह से समझा नहीं गया है। महामारी के दौरान यात्रा पर रोक के कारण भारत के कई छोटे शहरों में को-वर्किंग स्थान उभरकर आए। हालांकि कुछ कंपनियों ने इस मॉडल को व्यवहारिक तौर पर सही पाया है, लेकिन महामारी के दौरान को-वर्किंग स्थानों में जितनी बढ़ोतरी की उम्मीद की गई थी वह अभी तक वास्तविकता नहीं बन पाई है।
आपके शहर के रिमोट वर्कर काम करने के लिए कहाँ जाते हैं हमें नीचे टिप्पणियों में बताएं!
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