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कॉफी के साथ उभरती नई संस्कृति

  • connect2783
  • Jan 22
  • 5 min read

Updated: Jul 16

भारत की कॉफी संस्कृति में एक अद्भुत क्रांति आई है, जो अब केवल फ़िल्टर कॉफी के रीजनल शौक से निकलकर पूरे देश में फैले ट्रेंड में बदल गई है। आधुनिक कैफे संस्कृति तेजी से बढ़ रही है, जहां घरेलू और अंतरराष्ट्रीय ब्रांड अब टियर-2 और टियर-3 शहरों तक पहुंच रहे हैं। कॉफी की सांस्कृतिक जड़ें गहरी हैं। बदलती जीवनशैली, डिजिटल मीडिया का असर, और युवाओं में स्पेशलिटी कॉफी के प्रति बढ़ती रुचि की वजह से कॉफी अब सिर्फ एक पेय नहीं, बल्कि एक नया जीवनशैली का हिस्सा बन गई है।

स्रोत: क्लब महिंद्रा
स्रोत: क्लब महिंद्रा

पारंपरिक रूप से 'चाय' प्रेमी माना जाने वाला भारत अब कॉफी क्रांति का गवाह बन रहा है। यह बदलाव 1990 के दशक में वैश्वीकरण के साथ शुरू हुआ, जिसने देशभर में कॉफी पीने के कल्चर को बढ़ावा दिया। लेकिन क्या भारत में कॉफी कल्चर की शुरुआत का श्रेय उदारीकरण को ही जाता है, जब विदेशी कंपनियों ने भारतीय बाजार में कदम रखा था? तो इसका जवाब है 'नहीं'। दक्षिण भारत की फिल्टर कॉफी को तो आप बखूबी जानते होंगे, जिसे ‘कापी’ भी कहा जाता है, इसकी जड़ें 17वीं शताब्दी तक जाती हैं। कापी बनाने की अनूठी विधि इसे अन्य कॉफी से अलग बनाती है। हालांकि, आज के समय में कॉफी पूरे देश में पारंपरिक चाय का एक प्रमुख विकल्प बन चुकी है। 


भारत में कॉफी का बाजार हर साल 10.15% की दर से बढ़ रहा है, जो कि वैश्विक वृद्धि दर (लगभग 2.5 से 3%) की तुलना में तीन से चार गुना अधिक है। इस बदलाव का सबसे बड़ा कारण कॉफी कल्चर की बढ़ती लोकप्रियता है। शुरुआत में, देशी कॉफी चेन जैसे बरिस्ता और कैफे कॉफी डे ने इस बदलाव को गति दी, जब इन्होंने मेट्रो शहर से निकलकर टियर-2 और छोटे शहरों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। फिर, स्टारबक्स जैसे अंतरराष्ट्रीय ब्रांड के आगमन और ब्लू टोकाई रोस्टर्स व ब्लैक बाज़ा जैसे स्थानीय ब्रांड की बढ़ती पहचान ने इस बदलाव को और तेज कर दिया। हाल ही में ये कॉफी चेन वाराणसी, अमृतसर, मसूरी, मनाली जैसे टियर-2 और टियर-3 शहरों में भी अपनी पहुंच बना चुके हैं। देश के बढ़ते मध्यमवर्ग को ध्यान में रखते हुए ये ब्रांड कॉफी कल्चर को नए आयाम दे रहे हैं।


 स्रोत : विकास षंकरथोता , आंसपलाश
स्रोत : विकास षंकरथोता , आंसपलाश


भारत के टियर-2 शहरों में कैफे संस्कृति की बढ़ोतरी ग्लोबल एक्सपोज़र और आर्टिसन कॉफी के बढ़ते प्रशंसक मिलाप की वजह से हो रही है।


भारत में कॉफी का सांस्कृतिक महत्व आइकॉनिक जगहों से भी जुड़ा है, जैसे इंडियन कॉफी हाउस, जो सालों से बुद्धिजीवियों और कलाकारों का अड्डा रहा है। पहली बार यह कॉफी हाउस मुंबई में खुला था और धीरे-धीरे इंदौर, भोपाल, त्रिशूर, रायपुर, नीलासपुर, धर्मशाला जैसे छोटे शहरों तक फैल गया। जहाँ लोगों को सस्ते दामों में कॉफी के साथ यादें और चर्चाएँ मिलती रहीं। वहीं, पंजाब विश्वविद्यालय और आईआईएसईआर, भोपाल (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च) जैसे शैक्षणिक परिसरों में भी कॉफी कल्चर ने अपनी जगह बना ली है। अब छात्र पढ़ाई के दौरान या दोस्तों के साथ समय बिताने के लिए चाय की जगह कॉफी पीना पसंद कर रहे हैं।


दूसरी ओर, कैफे कॉफी डे (CCD) ने 1996 में "A lot can happen over coffee" (कॉफी पर बहुत कुछ हो सकता है) टैगलाइन के साथ कॉफी हाउस बाजार में कदम रखा। इसने लोगों को एक ऐसा आरामदायक माहौल दिया, जहां वे कॉफी की चुस्कियों के साथ-साथ आराम से आपस में बातचीत भी कर सकते थे। इतना ही नहीं, इसने कॉफी मशीनों की शुरुआत करके आम लोगों तक कॉफी कल्चर को पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। घरेलू खपत को बढ़ावा देने में नेस्कैफे और ब्रू जैसे ब्रांड्स के इंस्टेंट कॉफी की आसान उपलब्धता का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कॉफी के सस्ते सैशे और स्मार्ट मार्केटिंग कैंपेन ने ज्यादातर घरों में कॉफी को रोजमर्रा की आदत में शामिल कर दिया है। खासकर नेस्कैफे ने भारतीय टीनएजर्स को टारगेट करके कई कैंपेन चलाए, जिससे नई पीढ़ी में कॉफी पीने का चलन बढ़ रहा है। इस तरह के प्रयासों ने न केवल घर-घर में कॉफी की पहुंच को बढ़ाया, बल्कि उनकी बिक्री और मार्केट शेयर को भी बढ़ावा दिया।


स्रोत : केनवा ईमेजेस
स्रोत : केनवा ईमेजेस

यह सांस्कृतिक बदलाव (कल्चरल शिफ्ट) एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करता है– टियर 2 और अन्य छोटे शहरों में कॉफी कल्चर के बढ़ते चलन का क्या मतलब है? इस चलन के पीछे कई कारक शामिल हैं, जैसे कि डिजिटल और सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव, शहरीकरण, बदलती जीवनशैली आदि। खासतौर पर इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म ने कॉफी को एक ट्रेंडी पेय बना दिया है, जहां कैफे की खूबसूरत सजावट और लैटे आर्ट (कॉफी की सतह पर डिजाइन बनाने की तकनीक) इसे मिलेनियल्स और जेन ज़ी के लिए एक आकर्षक जीवनशैली का प्रतीक बना रहे हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की सिफारिशें और उनके कंटेंट्स भी इन कैफे तक लोगों के भीड़ खींचने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।


कॉफी बोर्ड ऑफ इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि बढ़ती घरेलू आय और खर्च करने की क्षमता इस कल्चरल शिफ्ट को तेजी से आगे बढ़ा रही है। भारत की युवा पीढ़ी अब स्पेशलिटी कॉफी (उच्च गुणवत्ता वाली यह विशेष कॉफी साधारण कॉफी से अलग होती है) की ओर बढ़ रही है, जो पीढ़ीगत बदलाव (intergenerational shift) को दर्शाता है। बरिस्ता कॉफी के सीईओ रजत अग्रवाल बताते हैं, “पिछले 5-6 सालों में छोटे शहरों के उपभोक्ता ब्रांडेड उत्पादों के लिए प्रीमियम कीमत चुकाने को तैयार हैं, जिससे कंपनियों का ध्यान इन शहरों की ओर आकर्षित हो रहा है।” कॉफी की बढ़ती मांग को देखते हुए, स्टारबक्स इंडिया की 2028 तक 1000 से भी अधिक स्टोर खोलने की योजना है। इसी तरह भारतीय ब्रांड बरिस्ता ने भी 2030 तक अपने स्टोर की संख्या दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है। ये कॉफी चेन टियर-2 और टियर-3 शहरों में न केवल कॉफी कल्चर को बढ़ावा दे रहे हैं बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा कर रहे हैं।


भारत के टियर-2 शहरों में कैफ़े संस्कृति के बढ़ने के पीछे वैश्विक प्रभाव और आर्टिसनल कॉफी के प्रति बढ़ती रुचि भी बड़ी वजहें हैं। जालंधर में Retro by Cakewaali और सूरत में KOKORO जैसे कैफे केवल कॉफी परोसने की जगह नहीं हैं, बल्कि ये कॉफी प्रेमियों के लिए एक कम्युनिटी की तरह उभर रहे हैं। यहां लोग अलग-अलग ब्रूइंग टेक्नीक्स और फ्लेवर को एक्सप्लोर कर रहे हैं, जिससे छोटे शहर भी धीरे-धीरे नए कॉफी हब बनते जा रहे हैं। गंगटोक में रचना बुक्स के पास स्थित Café Fiction केवल एक कैफे नहीं है बल्कि यह एक ऐसा सांस्कृतिक प्लेटफॉर्म बन गया है, जहां स्थानीय युवा और किताबों के शौकीन सैलानी कॉफी के कप के साथ विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।

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भारत का कॉफी कल्चर अब केवल टियर-1 शहरों तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि अब यह लोगों की बदलती पसंद और विविध स्वाद को अनुभव करने के शौक के कारण पूरे देश में अपनाया जा रहा है। बड़े कॉफी ब्रांड्स का छोटे शहरों में विस्तार बड़े पैमाने पर रोजगार के नए अवसर पैदा कर रहा है, साथ में यह एक बड़े सांस्कृतिक और सामाजिक बदलाव की ओर भी इशारा कर रहा है। यह कॉफी क्रांति सिर्फ एक पेय पदार्थ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दर्शाती है कि लोग अब अपने लाइफस्टाइल और आकांक्षाओं को किस तरह परिभाषित कर रहे हैं।






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