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एक अंतिम प्रस्तुति

  • connect2783
  • Jun 6, 2024
  • 6 min read

Updated: Jul 16

भारत में कभी आम जनता के मनोरंजन के केंद्र रहे सिंगल-स्क्रीन थिएटर तेजी से खत्म हो रहे हैं। आज देश में 6,000 से भी कम थिएटर बचे हैं, जिनमें से केवल 1,000 ही संचालित हो रहे हैं। मल्टीप्लेक्स का उदय, महामारी की बाधाएं और बढ़ते कर दरों ने कई प्रतिष्ठित थिएटरों को बंद करने पर मजबूर कर दिया है। लेकिन क्या इस कहानी में कोई मोड़ आ सकता है? कुछ थिएटर अपनी इनोवेटिव रणनीतियों और सरकारी समर्थन के चलते बचाव कर रहे हैं, और हाल की ब्लॉकबस्टर फिल्मों की सफलता इस उद्योग के पुनरुद्धार का संकेत दे रही है।


एडवर्ड थिएटर, मुंबई स्रोत:एनपीआर
एडवर्ड थिएटर, मुंबई स्रोत:एनपीआर

क्या आप जानते हैं कि आज 6,000 से भी कम सिंगल स्क्रीन थिएटर बचे हैं और उनमें से भी केवल 1000 ही थिएटर के रूप में काम कर रहे हैं? एक ऐसा देश जहाँ थिएटर दशकों से सामूहिक मनोरंजन का स्त्रोत रहा है वहाँ थिएटर के इतने कम होते आँकड़े एक युग की समाप्ति का प्रतीक है। भारत में स्वतंत्रता के बाद 1960-80 के दशक में, जब अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी जैसे दिग्गज सितारों के कैरियर ऊँचाई पर थे तब फिल्में देखना एक अनुभव को जीने जैसा था।


कलकत्ता में चैपलिन सिनेमा। स्रोत: विकिपीडिया
कलकत्ता में चैपलिन सिनेमा। स्रोत: विकिपीडिया

1907 में, कलकत्ता में देश का पहला सिंगल-स्क्रीन मूवी थियेटर स्थापित हुआ, जिसका नाम शुरू में एलफिंस्टन पिक्चर पैलेस था। यह थिएटर, जो हॉलीवुड फिल्मों की स्क्रीनिंग के लिए एक लोकप्रिय स्थल बन गया, बाद में इसका नाम बदलकर "मिनर्वा" कर दिया गया और अंततः इसे चैपलिन सिनेमा के नाम से जाना जाने लगा।

साल 1907 में कोलकाता के सिंगल स्क्रीन थिएटर की स्थापना हुई और इसने सामुदायिक मनोरंजन केंद्र के रूप में खुद की पहचान बनाई। विशेष सांस्कृतिक कला का उपयोग कर भारत को विश्व के अग्रणी फ़िल्म निर्माता देशों में शामिल करने में यह सफल हुआ। मगर बढ़ती कर की दरें, कानूनी चुनौतियाँ और अलग-अलग मल्टीप्लेक्स का जन्म धीरे-धीरे देश की सिनेमाई और सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करता गया। और आखिरकार कोविड-19 महामारी ने भारत के सिंगल स्क्रीन थिएटर की पहले से ही टूटी हुई कमर पर एक और वार किया और इस तरह एक जीते-जागते सांस्कृतिक विरासत को सहेजकर रखने वाले युग का अंत हो गया।


कोविड-19 महामारी का फ़िल्म उद्योग पर गहरा असर पड़ा जिसके कारण लगभग 1,500-2,000 सिनेमाघर बन्द हो गए और जिनमें से ज्यादातर सिंगल स्क्रीन थिएटर थे। इन बेहतरीन सिनेमाघरों में पन्ना का कुमकुम टॉकीज शामिल है जो खाली सीटों की समस्या से जूझ रहा है। चित्रकूट में दीपक टॉकीज और टीकमगढ़ में लक्ष्मी टॉकीज जैसे अन्य नामी सिनेमाघर भी हैं जिन्हें अब शादियों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है या फिर ऐसे ही खाली छोड़ दिया गया है।


कर्नाटक के तटीय इलाके में एक समय 35 से ज्यादा सिंगल स्क्रीन थिएटर थे लेकिन मल्टीप्लेक्स के बढ़ने से यह संख्या घटकर केवल 12 रह गई है। कुंडापुरा में विनायक थिएटर और सुल्लिया में संतोष थिएटर को नवीनीकरण कर बदलने की जरूरत है और इस वजह से इसपर बन्द होने का खतरा मंडरा रहा है। मंगलुरु में कभी छः से आठ किलोमीटर के दायरे में आठ से दस थिएटर थे लेकिन अमृत टॉकीज, प्लेटिनम, न्यू चित्रा, श्रीनिवास, सेंट्रल थिएटर और ज्योति टॉकीज समेत कई थिएटर पहले ही बन्द हो चुके हैं। इसी तरह मसूरी में तीन सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर जिनमें मॉल रोड का पिक्चर पैलेस, कुलरी हिल पर हैमर के पास रियाल्टो और लाइब्रेरी बाजार में वासु शामिल हैं, ये तीनों सरकारी सहायता की कमी के कारण आखिकार बन्द हो गए। हालांकि 2016 में वासु सिनेमा को ट्विन थिएटर सिनेप्लेक्स में बदल दिया गया और इसका नाम बदलकर रिट्ज सिनेमा कर दिया गया। इस हिमालयी शहर में इसने कई फ़िल्म प्रेमियों को लुभाया जिससे इन सांस्कृतिक स्थलों के लिए उम्मीद की एक किरण जगी।


इस साल 17 मई को तेलंगाना में 450 सिंगल स्क्रीन थिएटरों को दो सप्ताह के लिये अस्थायी रूप से बन्द कर दिया गया था। इन्हें बन्द करने का कारण दर्शकों की कम संख्या, ब्लॉकबस्टर फिल्मों की कमी, आईपीएल और लोकसभा चुनाव थे।

देश भर में इन ऐतिहासिक सिनेमा हॉलों को आर्थिक कमी का सामना करना पड़ रहा है और इस कारण 2k प्रोजेक्टर जैसी जरूरी चीजें खरीदने में दिक्कत आ रही है जिससे इन हॉलों को सफलतापूर्वक चलाने की संभावना सीमित हो गई है।

मिंट के अनुसार, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा के हिंदी भाषी क्षेत्रों में टियर-3 और टियर-4 शहरों के सिंगल स्क्रीन थिएटर सबसे कम प्रदर्शन कर रहे हैं। 


ज्यादातर सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल ने फिल्में दिखाना बन्द कर दिया है और उन्हें कमर्शियल स्पेस या मल्टीप्लेक्स में बदल दिया गया है। तेलंगाना एक्जिबिटर्स असोसिएशन के अध्यक्ष विजयेंद्र रेड्डी बताते हैं कि आंध्र प्रदेश में 3600 थिएटरों में से सिर्फ 1600 ही बचे हैं और उनमें से भी कई मल्टीप्लेक्स या कमर्शियल प्रॉपर्टी बनने वाले हैं। इस साल 200 स्क्रीन हमेशा के लिए बन्द होने की उम्मीद है।


बढ़ती चुनौतियों के बाद भी, इनोवेटिव मार्केटिंग, रणनीतिक स्थानों और ऑनलाइन टिकट बुकिंग की समय पर शुरुआत ने कुछ सिनेमा हॉल को इस बवंडर के बीच भी टिके रहने में मजबूत बनाया है। कोलकाता के दो शुरुआती सिंगल स्क्रीन थिएटरों प्रिया और नवीना ने कुछ बेहतरीन सुविधाओं के साथ जैसे कि डॉल्बी एटमॉस साउंड, स्टेट-ऑफ-द-आर्ट प्रोजेक्टर और रिक्लाइनिंग सीट जैसे कई बदलाव के साथ फ़िल्म प्रेमियों को लुभाने में और लोगों की मौजूदगी में गिरावट का मुकाबला करने में सफलता हासिल की है। इसी तरह गदर 2 की रिलीज ने लुधियाना के एक सिंगल-स्क्रीन थिएटर को फिर से जीवित कर दिया जिसके बारे में माना जाता था कि वह लगभग बन्द हो चुका है।


साल 2023 सिंगल स्क्रीन थिएटर के लिए उम्मीदों से भरा है, जिसमें कई ब्लॉकबस्टर फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। 'पठान', 'जवान' और 'एनिमल' जैसी फिल्मों ने मुख्य रूप से दर्शकों को लुभाया जिसमें छोटे शहरों के बाजार भी शामिल हैं। इन फिल्मों की सफलता ने सिनेमाघरों खास तौर पर सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के लिए एक नए सिरे से उम्मीद और सुधार की संभावना को जन्म दिया है जो महामारी के दौरान बुरी तरह प्रभावित हुए थे।


भारत के सिंगल स्क्रीन थिएटरों का वितरण और दस्तावेज़ीकरण
भारत के सिंगल स्क्रीन थिएटरों का वितरण और दस्तावेज़ीकरण

घटते हुए सिंगल स्क्रीन सिनेमा संस्कृति को फिर से जीवित करने की कोशिश में कई सिनेमा हॉल के मालिकों ने इनोवेटिव और कॉन्टेक्स्ट-स्पेसिफिक रणनीति को अपनाया है। कुछ सिनेमाघरों ने कामुक फिल्में तब दिखानी शुरू कर दी जब पारिवारिक फिल्में पर्याप्त टिकट बिक्री को लुभाने में असफल रहीं। दूसरे कई मालिकों ने अपने सिनेमाघरों की तकनीक को बदलने और नया बनाने में काफी खर्च किया।

उदाहरण के लिए, मुंबई के नामी सिनेमा हॉल 'सेंट्रल प्लाजा' को बचाने के लिए दोशी ने दर्शकों को लुभाने के लिए मराठी-भाषा और भोजपुरी-भाषा की फिल्में दिखाने की कोशिश की। बाद में उन्होंने क्षेत्रीय भारतीय भाषाओं में डब की गई हॉलीवुड फिल्मों को दिखाने का भी प्रयोग किया। इन प्रयासों के बाद भी थिएटर के पुराने गौरव को वापस लाने में नाकाम रहे। इस बीच, गुवाहाटी का अनुराधा सिनेप्लेक्स एक दशक से अधिक समय से ऑस्कर फ़िल्म फेस्टिवल की मेजबानी कर रहा है जो यूएफओ 3D सिस्टम के साथ-साथ बेहतर पिक्चर क्वालिटी के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रोजेक्शन सिस्टम का दावा करता है।


हेमंत चतुर्वेदी ने एक विस्तृत फोटोग्राफी प्रोग्राम की शुरुआत की है जिसमें उन्होंने 50,000 किलोमीटर से भी ज्यादा यात्रा की और 22 राज्यों के 950 से अधिक शहरों का दौरा किया ताकि भारत के छोटे सिनेमाघरों की विरासत के लुप्त होने से पहले उन्हें सम्मान दिया जा सके।

हेमंत चतुर्वेदी इस बात पर जोर देते हैं कि "किसी परित्यक्त सिनेमा थियेटर की खामोशी से अधिक बहरा करने वाली कोई आवाज नहीं होती"।
नासिक में एक सिंगल स्क्रीन थिएटर। स्रोत: एनपीआर
नासिक में एक सिंगल स्क्रीन थिएटर। स्रोत: एनपीआर

इस अनोखे सफर की शुरुआत और इस जुनून की कहानी उनके बचपन की यादों से जुड़ी हुई है। 2019 में इलाहाबाद के लक्ष्मी टॉकीज के ध्वस्त होने के बाद से ही उनके स्थानीय मूवी थिएटरों को दस्तावेजी करने का सफर शुरू हुआ। तब से इन्होंने लगभग 1,150 थिएटरों की तस्वीरें स्वयं खींची हैं। वर्तमान में इनमें से 32 तस्वीरें दक्षिण मुंबई के काला घोड़ा कैफ़े में प्रदर्शित की गई हैं जिन्हें मुम्बई गैलरी वीकेंड का हिस्सा बनाया गया है।


सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों को बचाये रखने की कोशिश में उत्तर प्रदेश सरकार ने इन सिनेमाघरों को चालू रखने के लिए कर छूट, बिजली सब्सिडी और पुनर्विकास के लिए अनुदान देने की योजना बनाई है। इसी तरह महाराष्ट्र क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है ताकि उनकी गिरावट को रोका जा सके जिसके तहत सिंगल स्क्रीन थिएटर के साथ सिनेमाघरों को भी सालाना 44 मराठी फिल्में दिखाना अनिवार्य होता है। 1992 में लागू एक नियम के अनुसार महाराष्ट्र में मुंबई, पुणे, औरंगाबाद और दूसरे नगर निगम क्षेत्रों के सिनेमा मालिकों को अपनी संपत्ति का पुनर्विकास करने पर परिसर में एक मूवी थिएटर शामिल करना अनिवार्य है।


इतने चुनौतियों के बावजूद कुछ सिंगल स्क्रीन थिएटर इनोवेटिव रणनीति और सरकारी सहायता के माध्यम से जीवित रहने में कामयाब रहे हैं जो एक अनूठी सांस्कृतिक विरासत को बचाने का उदाहरण है। 2023 में ब्लॉकबस्टर फिल्मों को सफलता इन नामी संस्थानों के लिए उम्मीद की एक किरण है जो सिंगल स्क्रीन सिनेमा इंडस्ट्री को फिर से जीवित करने का एक शुरुआती कदम है।


इस बार सिनेमा लवर्स डे के दिन मल्टीप्लेक्स और सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों ने परिवारों, छुट्टियों पर जाने वाले बच्चों और छात्रों के लिये फिल्में अधिक सुलभ बनाने के लिए सिर्फ 99 रुपये में फ़िल्म देने के लिये हाथ मिलाया है जिससे इनके अस्तित्व को बचाया जा सके।

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