Winning Entry: Nagrika Spring Competition 2021

 

Pritisha Anand is from Sahibganj, Jharkhand. She is currently in 12th grade and is pursuing her education from Jawahar Vidya Mandir Shyamali, Ranchi. She has been writing since the last couple of years and has written poems and short stories. She is also working on her first novel, soon to be published as an e-book.

 

एक अनोखा अनुभव

(A Strange Experience)


आइए ले चलें आपको उस दौर के उस शहर, राहगीरी में, जहाँ राम मनोहर की सरकार ने मोटर से चलने वाले सभी वाहनों पर ताला लगा दिया था। दूसरे शब्दों में कहें तो मोटर वाहनों पर बैन लगा दिया था। बढ़ते  प्रदूषण और सालों पुरानी बीमारियों, जिनका इलाज संभव थाउनका आज के युग में असंभव हो जाना और मशीन वाले ज़माने में आलसी पन को पनपता देख सरकार के इस फैसले पर बहुत सी चुनौतियाँ सामने आई।सरकार ने अपने समूहों की बैठक में प्रतिद्वंदी को पछाड़ा और जब इस फैसले का शहर में आगमन हुआ तो उसे बहुत सी बुराइयों का सामना करना पड़ा।परन्तु सरकार अपने फैसले पर अडिग थी।इस नियम को लागू हुए करीब दो महीने बीत चुके थे और लगभग सबको इसकी आदत हो चुकी थी। 

बड़े शहर से आया एक युवक जिसका तबादला राहगीरी में हो जाने की वजह से पूरे परिवार को इस शहर में आकर बसना पड़ा।चलिए मिलवाते हैं आपको रोहण और  उसके परिवार  से। रोहण एक बड़े शहर का रहने वाला युवक था।वह अपने माता-पिता व बहन के साथ  मुंबई में रहता था।रोहण आई•टी•सी• विभाग में उत्पादन  प्रबंधक था। घर में बहुत  खुशियाँ थी मगर  रोहण के तबादले की खबर ने सबको परेशान  कर दिया  क्योंकि बड़े  शहर से इस नए शहर में सारा सामान लेकर बसना थोड़ा चुनौतीपूर्ण  साबित हो रहा था।पर नौकरी को तो छोड़ा नहीं जा सकता।इसलिए  सभी ने नए शहर में बसने के  फैसले पर ही अमल करना शुरु कर दिया।

राहगीरी स्टेशन पहुँचने पर उन्हें एक भी टैक्सी नहीं दिखाई दे रही थी। केवल तीन -पहिया रिक्शा, तांगा, ठेला और  साईकिल की दुकानें थी।पूरा परिवार ये मंजर देख कर दंग रह गया।रोहण ने जो घर खरीदा था वह स्टेशन से करीब  पच्चीस  किलोमीटर दूर था।इतनी दूर वृद्ध माता-पिता का चलकर जाना असंभव था। उसकी बहन शैव्या बचपन से ही रईसों की तरह पली-बढ़ी है,"बचपन से कार, हवाई जहाज  से सफर किया है,ये कौन से   गाँव  में लेकर आए हो आप भइया मुझे।" मैं नहीं चढ़नेंवाली इन छोटे-मोटे वाहनों पर।माता-पिता के समझाने पर जब शैव्या और रोहण मानें तब उन्होंने  तीन पहिया रिक्शा पर सफर करने का फैसला लिया।पच्चीस  किलोमीटर  के  सफर में उन्हें कहीं भी मोटर से या बैटरी  से चलने वाले कोई वाहन नहीं दिखाई  दिए ।रिक्शे वाले से जब इस दुविधा का कारण पूछा तो वह हँसकर बोला, "भईया यहाँ की सरकार ने सारे मोटर वाहनों पर ताला लगा दिया है इसलिए  इस शहर में आपको इन्हीं वाहनों से सफर करना होगा।यह शब्द  सुन रोहण और शैव्या के होश उड़ गए।सदियों से सुख-सुविधा में रहे दोनों के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।"माँ अब जिंदगी भर ऐसे ही रहना होगा क्या?", शैव्या बोली।रिक्शे वाले ने बोला,"बाबू साहब, आपलोग अभी नए  हैं इसलिए ऐसा लग रहा है।शुरुआत में शहर के लोगों ने भी बहुत विरोध किया था परन्तु अब सभी को इसका फायदा नजर आ रहा है, आपलोग को भी इसकी आदत लग जाएगी और  इस शहर से प्यार हो जाएगा।" रिक्शे वाले की यह बात उस परिवार  को बकवास लगी और  उन्होंने उसे टाल दिया।

परिवार  के घर पहुँचने के बाद सभी लोग सामान एकत्रित  करके घर को सजाने लगे।बड़े शहर के एक फ्लैट से बड़ा यह घर सबको बहुत अच्छा लगा और  इसकी सजावट भी सब खूब  मन लगाकर करने लगे पर रोहण और शैव्या अभी भी असमंजस मे पड़े थे कि रोजमर्रा  के कार्य वह बिना मोटर वाहनों से कैसे कर पाएंगे। माता-पिता की दवाइयाँ, ङाॅक्टर के पास  आना जाना क्या सब इन्हीं वाहनों से करना पड़ेगा। शैव्या  अपने विद्यालय क्या तांगा ठेला से जाएगीं।इसी सोच-विचार के साथ दिन खत्म हुआ।

अगले दिन की शुरुआत जब सूरज की  किरणों से हुई और ठंडी हवाएँ चेहरे को हल्के से छूकर जब वापस गई, तब सवेरा हुआ रोहण और उसके परिवार का। शैव्या का  नए  विद्यालय में अभी नामांकन नहीं हुआ  था तो वह माता-पिता के साथ घर पर ही थी।रोहण अपने दफ्तर  आने-जाने को लेकर सुबह से काफ़ी परेशान था परन्तु  देर न हो, यह सोच कर वह पैदल ही चल पड़ा। दफ्तर  जाकर वह काफी थक चुका था।बचपन से अब तक ऐसा पहली बार हुआ था कि वह इतनी दूर पैदल चलकर आया है।नए उत्पादन  प्रबंधक  के स्वागत में सभी कर्मचारी  लग गए। रोहण सब देखकर खुश तो था पर उसे अब दफ्तर  से वापस लौटने की चिंता  खाए जा रही थी।रोहण के इस असमंजस को एक कर्मचारी  ने समझ लिया और  पूछा,"क्या  बात है सर,आप बहुत परेशान दिख रहे हैं।"रोहण ने उसे अपने केबिन में बुलाया और  विस्तार  से सभी बातें उसके सामने रख दीं और  एक उम्मीद  से उसकी ओर देखा मानो वह उससे इस परेशानी का हल माँग रहा हो। कर्मचारी  ने कहा,"सर, मैं आपकी परेशानी समझता हूँ और  हम सब यहाँ इस परेशानी से गुजर  चुके हैं।शुरुआत  में हमने भी सरकार को बहुत दोष दिया, खरी-खोटी सुनाया पर दो महीने के अंदर जो चमत्कार  हमने देखा है उसे देखने के बाद सभी सरकार  की सराहना  करने लगे।मदद के तौर पर मैं यह कहूँगा कि आप अपने लिए और पूरे परिवार  के लिए एक साईकिल खरीद लीजिए और परिवार  में सबको सुबह-शाम उससे सफर करने को कहिए चाहे वह स्वस्थ  हो या अस्वस्थ। "यह बोलकर वह कर्मचारी  वहाँ से चला गया। रोहण समझ नही पाया कि वह क्या  कहना चाह रहा है।ठीक ऐसी ही बातें रिक्शे वाले ने भी कही थीं। दो महीने में उन्होंने  ऐसा क्या  चमत्कार  देख लिया।कर्मचारी की बातें मान वह अपने लिए और परिवार  में सबके लिए एक साईकिल  ले आया। शैव्या  उससे ही अपने विद्यालय  जाने लगी, माता-पिता के घुटनों में दर्द  होने के कारण वह केवल सवेरे ही कुछ दूर जा पाते थे और  रोहण अपनी साईकिल  से दफ्तर  जान लगा।शुरुआत  में  सबको बहुत तकलीफ  हुई पर धीरे -धीरे सभी लोग इसका निरंतर उपयोग करने लगे।

रोहण को हर दो महीने में अस्पताल जाना होता था। शैव्या की मधुमेह और माता-पिता के घुटनों का दर्द  दिखाने के लिए। अबकी बार, जब रोहण सबको लेकर अस्पताल  पहुँचा तो कुछ अलग ही मंज़र  था। ङाॅक्टर की बातें सुन किसी को विश्वास  नहीं हो रहा था। शैव्या  की शुगर लेवल काफी हद तक कम थी और  माता-पिता के घुटनों में जिस अम्ल ने काम करना बंद कर दिया था उसने अब धीरे धीरे  काम करना शुरू कर दिया था।रोहण को समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा हुआ कैसे।

साईकिल, बैल गाड़ी, तीन पहिया रिक्शा, तांगा, ठेला इन सबसे प्रदूषण भी कम  होगा और  बीमारियाँ भी नहीं रहेगी...

यह खुशखबरी जब उसने अपने कर्मचारी  को बताया तो वह मुस्कुराया और  कहा,"देखा सर, मैनें कहा था ना कि सरकार के यह नियम किसी चमत्कार  से कम नहीं है। इस शहर में इतना प्रदूषण  था कि खुली हवा में साँस लेना मुश्किल  हो रहा था। मोटर वाहनों के सुख-सुविधा के  कारण लोगों में  बीमारियाँ और फैल रही थी।मधुमेह घुटनों में दर्द, हार्ट -अटैक, मानसिक तनाव, मोटापा, गठिया जैसी कई बीमारियाँ इस शहर में डेरा डाल बैठी थी।सरकार ने बहुत  सोच समझकर  यह निर्णय  लिया था। साईकिल, बैल गाड़ी, तीन पहिया रिक्शा, तांगा, ठेला इन सबसे प्रदूषण भी कम  होगा और  बीमारियाँ भी नहीं रहेगी, हालांकि दिक्कतें आएगी परन्तु  आने वाले समय में यह कोई चमत्कार जैसा होगा"।रोहण ने अब समझ लिया था उस कर्मचारी  और  रिक्शे वाले ने ऐसा क्यों  कहा था।

घर जाकर यह घटना जब रोहण ने  पूरे परिवार  को बतायी  तो सभी बहुत प्रसन्न  हुए और  निर्णय  लिया कि वह अब इस शहर और  ऐसी  समझदार  सरकार  को छोड़ कर बड़े शहर नहीं जाएँगे। उन्हें  इस शहर से प्यार  हो गया था और  रोज़ाना  साईकिल पर सफर करना रोहण और  उसके परिवार  ने अपने रोजमर्रा  में शामिल  कर लिया था।इसी तरह हँसी खुशी पूरा परिवार उस शहर में रहने लगा।


 
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This piece is part of Nagrikal, a platform for citizens from small cities to share their experiences so that they be channeled into policies.