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अपने शहर से

  • connect2783
  • Oct 7
  • 5 min read

Special Mention- Hindi, Writing Contest 2025

By Dhananjay Sharma

City: Shravasti, Uttar Pradesh


सारांश: यह रचना एक आत्मीय पत्र के रूप में लिखी गई है, जिसमें नायक अपने प्रिय को संबोधित करते हुए अपने छोटे से शहर श्रावस्ती के प्रति गहरी भावनाएँ प्रकट करता है। यह पत्र केवल प्रेम की बात नहीं करता, बल्कि उस माटी से जुड़ी स्मृतियों, संघर्षों और जिम्मेदारियों की भी बात करता है, जिसने नायक को साँस दी और जीने का अर्थ भी। बड़े शहर की चकाचौंध और कठिनाइयों के बीच नायक को अपने गाँव की सादगी, अपनापन और मानवीयता की याद सताती है।


वह चाहता है कि उसका प्रिय भी उसी शहर में आए, ताकि वे मिलकर उस नगर की सरल और प्राचीन आत्मा को संवार सकें। यह शहर बिल्कुल नहीं बदला, आज भी वैसा का वैसा है। किसी के लिए ये वैसा का वैसा रहना पुरातन है तो किसी के लिए नया भी।


नायक ने अपने प्रिय को लिखे इस पत्र में और क्या-क्या साझा किया है, आइए जानते हैं।

फोटो स्रोत: लेखक
फोटो स्रोत: लेखक

प्रिय तुलसी!


यहीं इसी धरा के किसी दूसरे कोने में बैठकर तुम्हें लिख रहा हूँ। तुम्हें बखूबी पता है मैं कहाँ हूँ और किन स्थितियों में तुम्हें लिख रहा हूँ। आज आभास हो रहा है कि तुम्हारे लिए मेरा प्रेम और इस खंडहर की तूबियों के प्रति मेरा लगाव तुलनात्मक नहीं है।


यह प्रेम तुलनात्मक इसलिए नहीं है कि इस जगह ने मुझे श्वास दिया है और तुमसे इस श्वास की सार्थकता है। अर्थात् श्वास देने वाली और जिलाए रखने वाली, दोनों ही महान् होतींं हैं।


मुझे आज भी जितना प्रेम तुमसे है उतना ही अपनी माटी से भी है तभी तो देखो न, आज भी ऐसी दुविधा जैसी स्थिति में भी तुम्हीं मेरा सहारा बनी हुई हो।


अब तुम आश्वस्त हो चुकी होंगी कि मैं किसके बारे में लिख रहा हूँ। हां, अपने शहर श्रावस्ती के बारे में।

तुलसी! मेरा शहर बहुत ही छोटा है मात्र पाँच विकास खंडों में फैला यह जिला यहाँ के रहने वालों को एक चीज ज़रूर सिखा पाया है और वह है - अपनों से प्रेम करना।


तुमसे प्रेम करना भी इस शहर ने ही सिखाया है, जब तक तुम्हारे पास रहा, ये शहर हमेशा मेरे साथ रहा। दिल्ली के सड़कों पर चलते जब किनारे पर लगे बड़े-बड़े पेड़ देखता तो याद आते मुझे वो पकड़ी के पेड़ जिनकी छाया में छोटे व्यापारी मौसमी सब्जियां और फलों को सस्ते दरों पर बेचते रहते हैं जहां रास्ते से गुजरता हर इच्छुक खरीददार बिना मोलभाव के अपनी जरूरत की खरीददारी करता है।


पता है तुलसी लोग कहते हैं कि पूरे उत्तर प्रदेश में श्रावस्ती सबसे पिछड़ा है। असल में कहने वाले यह बात जोड़ना भूल जाते हैं कि लूट की दौड़ में श्रावस्ती सबसे पिछड़ा है। तुम्हें अगर बताऊं तो मानोगी नहीं कि यहाँ के लोग अपनी ज़रूरत जानते हैं वो उतनाभर कमाकर खुश हैं जिससे उनका घर चल जाएं।


हाँ, मानता हूँ कि आज के दौर में सिर्फ घर चलाना ही एक नागरिक का दायित्व नहीं है पर दोहरे नीतियों से भरे बाजारों में अपने ही लोगों को नित लूटना कितना सही है तुम्हीं कहो!


इसलिए ये लोग व्यापार की कसौटी पर उतने खरे नहीं उतरते क्योंकि इनमें भावनात्मकता अधिक है। भावनात्मक होने के फायदे भी है और नुकसान भी पर सच तो ये है कि तुलसी! आज भावनात्मकता के उफान मारने के कारण ही मैं तुमसे यह सब साझा कर रहा हूँ। तुम्हें तो पता ही होगा यह मेरा अपना शहर जो एक दिन तुम्हारे चाहने से हमारा अपना शहर हो जाएगा, वह गौतम बुद्ध की कर्मस्थली रही है। आज भी यहाँ के लोग अष्टांगिक मार्ग का पालन करते हुए दिख जाते हैं।


वे सम्यक नियम के पुरजोर समर्थक के रूप में आज भी कार्यशील हैं।


तुलसी! तुम्हें पता चल गया होगा मैं कहाँ हूँ पर किन परिस्थितियों में तुम्हें लिख रहा हूं शायद यह तुमने अभी

नहीं जाना है।


आज दिल्ली छोड़े हुए साल हो गया, आज फिर वहीं उसी जगह बैठा हूँ जहाँ कई सालों पहले निरंतर बैठा

करता था।

तुम्हें पता है ! यह शहर बिल्कुल नहीं बदला, आज भी वैसा का वैसा है। किसी के लिए ये वैसा का वैसा रहना पुरातन है तो किसी के लिए नया भी।

पर मेरे लिहाज़ से यह इसका अपरिवर्तित रूप किसी डिबेट का विषय नहीं बल्कि समझ का विषय है। अपने शहर से मुझे दिल्लगी बहुत है और हो भी क्यों आज कल जब कोई युवा बड़े शहर से असफल होकर वापस आ जाता है तो पूरा शहर मजाक बनाता फिरता है। कहता है - देखो ये बाबू तो हो बीते। पर असल में मेरा नगर इन सब की चिंता नहीं करता जैसा मैंने कहा भी कि मेहनत उतनी जितने में जीवन अच्छे से खुशी-खुशी गुजर जाए।


इसके इतर न समाज को कुछ चाहिए और न समाज के लोगों को। मेरी असफलता मेरे मायने में अलग है और इस नगरीय समाज के मायने में अलग, मेरे मायने में मैंने खुद से घृणा की और नगरीय समाज ने अपने मायने से मुझे संभाला और नया रास्ता दिया। अब तुम ही बताओ मैं क्यों जाऊं दूसरे शहर रोटी की व्यवस्था करने। मैं क्यों छोड़ू वो आशियाना जो मुझे मौके पे मौके देता है।


तुम ही बताओ क्या मैंने अपने शहर का हाथ बटाकर गलत कर रहा हूँ?

आखिर शहर ने हमें इतना कुछ दिया है तो हमारा भी तो कुछ दायित्व है कि हम भी उसे अधिक से अधिक दें!

बताओ है कि नहीं?


मैं सोचता हूँ कि अगर यह शहर भी बदल गया होता तो आज यहां भी आधुनिकता की आड़ में तमाम निजी

योजनाएं जनता का पेट काट रहीं होतीं और फिर मेरे जैसों को सहारा कौन देता। मेरे यहाँ से जाने के बाद मैंने जितना इंतेज़ार अच्छे दिनों का किया, उससे कहीं ज्यादा इंतेज़ार इस शहर ने मेरा किया।


और तुम सुनो! अब मैं इस शहर के इंतेज़ार का नतीज़ा देने के क्रम में आगे बढ़ रहा हूँ और इसीलिए तुम्हें लिख रहा हूं। सरकार ने यहाँ के पर्यटन पर विशेष काम किया है, बाहरी देशों से बौद्ध तथा जैन श्रद्धालुओं की भरमार यहाँ सदैव लगी रहती है। राष्ट्रीय राजमार्ग से नवाजा गया हमारा जिला अब हवाई यात्राओं के लिए भी तैयार हो

चुका है।


पर एक कसक है जो बाकी है इस शहर के भोलेपन का फायदा उठाती बाहरी व्यापारिक नीतियाँ। तुलसी! तुमसे निवेदन है कि जब तुम अपना तबादला कराने का सोचो तो इसी जगह कराओ। मैंने यह बहुत बार सोचा पर कह नहीं पाया पर आज कह रहा हूँ। इस शहर को तुम्हारी जरूरत है और सिर्फ इसी नहीं बल्कि ऐसे सारे शहर को तुम्हारी जरूरत है जहां प्राचीन सभ्यता का संरक्षण अधूरा है।


मैं तुम्हारे सहयोग से अपने इस फूल से भी कोमल और अतिप्राचीन नगरीय सभ्यता को सहेजना चाहता हूँ।

तुम्हारी सरकारी जनोपयोगी योजनाओं से इस शहर की भोली जनता को उनके हक का लाभ उन तक

पहुंचाना चाहता हूँ।


अच्छा तुलसी!अब विदा चाहता हूँ, बहुत कुछ है कहने को पर तुम्हें भी काम होगा।अतः शेष अगले पत्र में तब तक के लिए।


विदा।

तुम्हारा आभारी,

पीयूष।

लेखक के बारे में:

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धनञ्जय शर्मा

"धनञ्जय शर्मा" नाम की संज्ञा उन्हें पिताजी से मिली थी। उस समय उन्हें इसका अर्थ ज्ञात नहीं था, परन्तु आज वे पेशे से अध्येता हैं और अपने नाम को सार्थक करते हुए निरंतर आगे बढ़ रहे हैं। वर्तमान में वे दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी में परास्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं और साथ ही लेखन आदि में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं।


कई दर्जनों कार्यक्रमों में उन्होंने सफल प्रतिभागिता की है। वे पत्रिकाओं के लिए लेखन, समसामयिक मुद्दों पर विमर्श, तथा गद्य-लेखन आदि में विशेष रुचि रखते हैं। प्रतियोगिताओं में भाग लेने की उनकी इस रुचि ने उन्हें हमेशा कुछ नया सीखने का अवसर दिया है। इसके अतिरिक्त, उन्हें अवधी लोकगीत लेखन व गायन के साथ-साथ कविताई भी अत्यंत प्रिय है।


6 Comments


Aman Pandey
Aman Pandey
Oct 10

बहुत सुंदर

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Dhananjay Bhardwaj
Dhananjay Bhardwaj
Oct 31
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शुक्रिया 🌻

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triggerx
triggerx
Oct 09

अंत्यंत् प्रभाव सिल

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Dhananjay Bhardwaj
Dhananjay Bhardwaj
Oct 31
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शुक्रिया 💐

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Aanchal Jha
Aanchal Jha
Oct 09

सुंदर रचना🙌🏻❤️

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Dhananjay Bhardwaj
Dhananjay Bhardwaj
Oct 31
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शुक्रिया 🦫

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