उज्जैन – अनुभवों का उजास
- connect2783
- Sep 16
- 5 min read
Updated: Sep 30
Second Position- Hindi, Writing Contest 2025
By Gopal Mali
City: Ujjain, Madhya Pradesh
सारांश: कुछ नगर केवल नगर होते हैं — ईंट, पत्थर, सड़कों और इमारतों का समुच्चय। पर कुछ ऐसे होते हैं, जो चेतना की थाती बन जाते हैं, इतिहास, संस्कृति और अनुभवों की सुवास लिए चलते हैं। उज्जैन ऐसा ही नगर है — न केवल शिव की नगरी, बल्कि आत्मबोध, अनुभव और जीवन-ज्ञान की पाठशाला। लेखक बताते हैं कि उज्जैन में कई वर्ष बिताने के बावजूद, यह नगर उनके लिए शुरू में केवल ईंट-पत्थर और घाट-चौक जैसा प्रतीत हुआ। न गलियाँ अपनापन देतीं, न चेहरे परिचय का सुकून। लेकिन धीरे-धीरे उज्जैन, जिसकी हर गलियों, घाटों और परंपराओं में जीवन की गहरी सीख छुपी थी, उनका शिक्षक बन गया।आख़ि र यह कैसे हुआ, जानने के लिए इस आत्मीय संस्मरण को ज़रूर पढ़ें।

कुछ नगर केवल नगर होते हैं — ईंट, पत्थर, सड़कों और इमारतों के समुच्चय। पर कुछ ऐसे होते हैं, जो चेतना की थाती बन जाते हैं; जो अपनी सांसों में इतिहास, संस्कृति और अनुभवों की सुवास लिए चलते हैं। उज्जैन ऐसा ही एक नगर है — न केवल शिव की नगरी, बल्कि आत्मबोध, अनुभव और जीवन-ज्ञान की पाठशाला।
मैं मूलतः इंदौर जिले के एक ग्रामीण अंचल का निवासी हूँ। किंतु विगत छह वर्षों से उज्जैन ने मुझे अपने वात्सल्य में इस प्रकार समेट लिया है कि अब यह शहर मेरी पहचान का विस्तार बन गया है, मेरा गुरु बन गया है। इसकी गलियाँ, घाट, परंपराएँ, उत्सव और मौन में रचे अनुभवों ने मेरी सोच, संवेदना और दृष्टिकोण को गढ़ा है — एक जीवंत कक्षा की तरह।
घाटों और गलियों से मिले अमूल्य शिक्षापाठ
प्रभातकाल में जब रामघाट की पुरातन सीढ़ियों पर बैठ, त्रिभुवन-वन्दिता माँ क्षिप्रा की लहरों को निहारता हूँ, तो जल की शांति और प्रवाह दोनों मिलकर मुझे एक साथ दो शिक्षाएँ देते हैं — जीवन में धैर्य बनाए रखो, और परिस्थितियों में प्रवाहित रहो। क्षिप्रा का मौन प्रवाह बताता है कि सबसे गहन संदेश शब्दहीन होते हैं।
घाट पर दीपदान करते वृद्ध, भक्ति में लीन युवा, और श्रद्धालु परिवार – ये सभी जीवन की विविधता और आस्था के सहअस्तित्व का पाठ पढ़ाते हैं।
घाट पर जल में डोलते दीपकों को देखकर मैं यह सीखता हूँ कि कठिनाइयों की लहरों में भी आशा की लौ को बुझने नहीं देना चाहिए।
महाकालेश्वर मंदिर, जो केवल एक आस्था का केंद्र नहीं बल्कि एक सामाजिक अनुशासन की जीवंत मिसाल है। भस्म आरती में जब शिव को राख से पूजते हैं, तब यह दृश्य मृत्यु के यथार्थ से नहीं, बल्कि जीवन के सत्व से परिचय कराता है — कि नश्वरता की स्वीकृति ही अमरत्व की ओर पहला कदम है।
उत्सवों और परंपराओं से मिली जीवन-दृष्टि
उज्जैन की संध्याएँ — जब आकाश रक्तवर्ण हो उठता है, और मंदिरों से गूंजती घंटियाँ जैसे पूरे नगर को एक लय में बाँध देती हैं — तब मैं ठहरता हूँ, और सीखता हूँ कि विराम में भी गति होती है। यह शहर सिखाता है कि आत्मा को सुनने के लिए कभी-कभी भीड़ से परे हटकर मौन में उतरना आवश्यक होता है।
सिंहस्थ कुम्भ के आयोजन में शामिल होकर यह भान होता है कि असंभव कुछ भी नहीं। करोड़ों लोगों की आस्था को एक स्थान पर एकत्रित कर अनुशासित रूप देना, किसी शास्त्रीय संगीत के ताल-लय-स्वर जैसा सामूहिक चमत्कार है। यह शहर यह भी सिखाता है कि सामूहिक चेतना जब किसी उद्देश्य के लिए एक होती है, तो ईश्वर स्वयं व्यवस्थापक बन जाता है।
हरसिद्धि मंदिर की दीपमालाएँ, नववर्ष की पंचकोशी यात्रा, नगर भ्रमण की झाँकियाँ, सब एक गाथा हैं — समय और संस्कार की। इनमें शामिल होकर मैंने जाना कि परंपरा केवल अतीत की जंजीर नहीं, बल्कि भविष्य की चाभी भी है। ये परंपराएँ एक आत्मीयता रचती हैं, जो हर निवासी को परस्पर जोड़ती हैं — जैसे कोई अदृश्य धागा।
जनजीवन, चौपालें और सरल शिक्षाएँ
यहाँ की चाय की दुकानों पर बैठकर हुए अनौपचारिक संवादों में जितना जीवनदर्शन मिला, वह किसी विश्वविद्यालय की किताबों से अधिक गूढ़ रहा। नूतन चाय भंडार, माधव पुस्तकालय, गोपाल मंदिर का चौक, विक्रांत भैरव की शांति – ये सब मेरी खुली पाठशाला के अध्याय हैं।
विक्रम विश्वविद्यालय की ऊर्जावान छात्र-छात्राएँ, प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेते युवा, सफल होने के लिए संघर्षरत चेहरों में मैंने सीखा कि सपने देखने के लिए नींद की नहीं, जिजीविषा की आवश्यकता होती है। यह शहर सपनों को आकार देता है — और असफलताओं को सहलाना भी जानता है।
यहाँ की चौपालें केवल गपशप का माध्यम नहीं, बल्कि पीढ़ियों के संवाद का मंच हैं। बुजुर्गों की कहानियाँ, युवाओं की योजनाएँ और बच्चों की कल्पनाएँ — सब एक साथ मिलती हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि उज्जैन केवल पवित्रता का केन्द्र नहीं, संवाद का भी संगम है।
शहर की आत्मा — सुगंध, ध्वनि और दर्शन
यह नगर सुगंध और स्वर का ऐसा समन्वय है जो आत्मा को सिक्त करता है। धूप-चंदन की गंध, मंदिरों में गूंजते शंख और आरती की घंटियाँ — इन सबसे निकलती अदृश्य ऊर्जा मेरे भीतर चेतना का संचार करती है। ऐसा प्रतीत होता है मानो हर गली, हर मोड़ पर कोई अदृश्य ऋषि कोई मंत्र फूंक गया हो।
हर दीवार पर अंकित दोहे, हर चौराहे पर विराजमान मूर्तियाँ, और हर गली में किसी न किसी देवता की उपस्थिति, यह सिखाते हैं कि आस्था किसी एक स्थान की मोहताज नहीं। यह नगर हमें सिखाता है कि जीवन का हर क्षण, हर स्थल, हर गतिविधि — एक अवसर है आत्मबोध का।
एक अद्वितीय शिक्षक — जो आत्मा को पढ़ाता है
उज्जैन मेरे लिए कोई भौगोलिक ठिकाना नहीं, एक आत्मिक संवाद है। यह न तो केवल भौतिक नगरी है, न ही केवल धार्मिक स्थल – यह एक जीवंत दर्शन है, जो अपने रहन-सहन, परंपराओं, आस्था और अनुशासन के माध्यम से जीवन का मार्गदर्शन करता है।
यह वह गुरु है, जो शब्दों से नहीं, अनुभूतियों से पढ़ाता है। इसकी शिक्षा में न डाँट है, न परीक्षा – केवल अनुभव है, और अनुभव ही इसका प्रमाणपत्र।
निष्कर्ष: जब मेरा शहर मेरा शिक्षक बन गया
जब मैं “मेरा शहर, मेरा शिक्षक” कहता हूँ, तो मेरा मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है। यह नगर मेरी चेतना में बैठ गया है — उसने मुझे सिखाया है कि जीवन केवल जीने की क्रिया नहीं, समझने की साधना है।
यहाँ की हवा ने मेरे विचारों को दिशा दी, यहाँ के रंगों ने मेरी अनुभूतियों को स्वर दिए, और यहाँ की परंपराओं ने मेरी आत्मा को संबल प्रदान किया। उज्जैन ने मुझे जीवन के हर रंग को खुली आँखों से देखना सिखाया — और यही है एक सच्चे शिक्षक का कार्य।
उज्जैन – केवल शिव की नगरी नहीं, वह चिरंतन गुरु है, जो हर पीढ़ी को अपने अनुभवों के माध्यम से शिक्षित करता है।
लेखक के बारे में:

गोपाल माली
गोपाल "गर्वित" इंदौर जिले के निवासी हैं। इन्होंने स्नातक की पढ़ाई कंप्यूटर साइंस में की है और वर्तमान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर कर रहे हैं। विद्यालय जीवन से ही ये कविता और भाषण के माध्यम से मंचों पर सक्रिय रहे हैं। इन्हें मातृभाषा उन्नयन संस्थान से काव्यदीप सम्मान तथा राष्ट्रीय कवि संगम से दिल्ली दस्तक सम्मान प्राप्त हुआ है। इंदौर, देवास, दिल्ली सहित अनेक मंचों पर काव्यपाठ कर इन्होंने हिंदी साहित्य को गौरव प्रदान किया है।
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