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छोटे शहरों में बढ़ती गर्मी

  • connect2783
  • Jun 30, 2024
  • 7 min read

Updated: Jul 16

भारत के छोटे शहर रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की लहर से जूझ रहे हैं, जैसे ऊटी, बाडमेर और रतलाम में अब तक के सबसे अधिक तापमान दर्ज किए गए हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि शहरीकरण भी तापमान बढ़ने का एक बड़ा कारण है। ऐसे में ये शहर इन कठिन हालातों से कैसे निपट रहे हैं? हीट एक्शन प्लान, कूलिंग स्टेशन और समुदाय आधारित पहल जैसी नई रणनीतियां लागू की जा रही हैं। क्या ये कदम बढ़ती गर्मी की समस्या से लड़ने की चाबी साबित होंगे?

जयपुर में गर्मी के दिन बर्फ बेचता एक विक्रेता | हिंदुस्तान टाइम्स
जयपुर में गर्मी के दिन बर्फ बेचता एक विक्रेता | हिंदुस्तान टाइम्स

तमिलनाडु का हिल स्टेशन ऊटी अपने मनोरम दृश्य और सुहावने मौसम के लिए मशहूर है। किंतु इस साल 30 अप्रैल को 29.4℃ तापमान के साथ यहाँ सबसे गर्म दिन रहा। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के मुताबिक साल 1901 के बाद के सभी रिकॉर्ड को तोड़ते हुए यह ऊटी का सबसे अधिक तापमान था। इसी तरह कर्नाटक के नजदीक कोडागु जिले में भी 38.6℃ तक  उच्च तापमान का अनुभव हुआ। बीते महीने की 23 तारीख को राजस्थान के बाड़मेर में 48℃ के साथ देश भर में सबसे अधिक तापमान दर्ज किया गया। राजस्थान के ही उच्च तापमान वाले छोटे शहरों में फलौदी (47.8℃), चुरू (47.4℃) और जैसलमेर (47.2℃) के नाम शामिल हैं। भारत के दूसरे शहरों का भी वही हाल है, सिरसा में 47.4℃, भटिंडा में 46.6℃, कांडला में 46.1℃, रतलाम और झांसी में 45℃ और अकोला में 44.8℃ तक तापमान पहुँच गया है। हाल के अखबारों पर एक सरसरी डालने से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत के ज्यादातर छोटे शहर बढ़ते तापमान और लू की चपेट में हैं।


आईआईटी, भुवनेश्वर ने एक हालिया अध्ययन में इस बात को उजागर किया है कि भारतीय शहरों के तापमान में 60% तक कि बढ़ोतरी के पीछे का कारण केवल शहरीकरण है। 'शहरीकरण और स्थानीय जलवायु परिवर्तन से जुड़े भारतीय शहरों की वार्मिंग' नामक शोध पत्र के मुताबिक पूर्वी भारत के टियर-2 शहरों में बढ़ते शहरीकरण के कारण बढ़ी गर्मी ने नई दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े महानगरों को पीछे छोड़ दिया है। अनियोजित और अंधाधुंध शहर के निर्माण के लिए कंक्रीट और डामर जैसी गर्मी अवशोषित करने वाली वस्तुओं का उपयोग किया जाता है जिसने इन छोटे शहरों के प्राकृतिक वातावरण को पूरी तरह से बदल दिया है और साथ ही साथ इनके अर्बन हीट आइलैंड (यूएचआई) को भी बढ़ाया है।


गर्मी की लगातार तेज होती लहरें भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बढ़ते खतरे का संकेत दे रही है। इनसे खाद्य पदार्थों की कीमत और लोगों की स्वास्थ्य स्थिति पर पड़ने वाले प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर हावी होने लगे हैं। भुवनेश्वर जैसे शहरों में जल्दी खराब होने वाली खाद्य सामग्री के विक्रेताओं के सामने कई चुनौतियाँ हैं। स्टोरेज और रेफ्रिजरेटर की कमी, बुनियादी सुविधाओं की कमी और इतनी गर्मी के कारण वे खाद्य सामग्री को खरीद मूल्य से नीचे बेचने के लिए मजबूर हैं ताकि खाद्य वस्तुओं को बर्बादी से बचाया जा सके। इस तरह उन्हें बढ़ते तापमान की वजह से दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। जलवायु परिवर्तन ने आजीविका और प्रवासन के तौर तरीकों को भी प्रभावित किया है। राजस्थान के गंगापुर के कई पड़ोसी गाँव में पानी की भारी कमी ने खेती के नए विकल्प को जन्म दिया है। यहाँ हर साल नवम्बर से फरवरी तक के महीने में तकरीबन 50,000 ट्रकों को आइसक्रीम ट्रकों में बदल दिया जाता है और 9 महीने तक ये अलग-अलग शहरों में आइसक्रीम की बिक्री के लिए निकल पड़ते हैं। इस तरह यह व्यवसाय यहाँ के लोगों के लिए एक मुख्य आर्थिक जीवनरेखा बन गई है।


इसमें मिस्ट स्प्रिंकलर, कूलिंग कर्टेन, साथ ही पीने के पानी और प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा भी शामिल है। सौर पैनलों द्वारा संचालित, यह बाइसन और खस पैनलों से बना है जो इस जगह को पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ बनाता है। स्रोत: महिला हाउसिंग ट्रस्ट, एनडीटीवी राजस्थान
इसमें मिस्ट स्प्रिंकलर, कूलिंग कर्टेन, साथ ही पीने के पानी और प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा भी शामिल है। सौर पैनलों द्वारा संचालित, यह बाइसन और खस पैनलों से बना है जो इस जगह को पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ बनाता है। स्रोत: महिला हाउसिंग ट्रस्ट, एनडीटीवी राजस्थान
 सीबैलेंस सॉल्यूशंस, एक सस्टेनेबिलिटी कंसल्टेंसी, अनौपचारिक आवास को और अधिक आरामदायक बनाने के लिए अभिनव समाधान तैयार कर रही है। स्रोत: सीबैलेंस सॉल्यूशंस
सीबैलेंस सॉल्यूशंस, एक सस्टेनेबिलिटी कंसल्टेंसी, अनौपचारिक आवास को और अधिक आरामदायक बनाने के लिए अभिनव समाधान तैयार कर रही है। स्रोत: सीबैलेंस सॉल्यूशंस

स्विचऑन फाउंडेशन की तरफ से सार्वजनिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए एक अध्ययन किया गया, जिसके मुताबिक उड़ीसा के शहरी क्षेत्रों में 73% महिलाएँ हीटवेव के कारण थकान महसूस करती हैं जबकि पुरुषों की संख्या 62% है। गर्मी के कारण सिरदर्द, चक्कर आना, मतली और हीट रैश जैसी सामान्य समस्याएं होती हैं, इनमें से सिरदर्द सबसे आम है और हर 10 में से 9 व्यक्ति इसकी चपेट में है। इस अध्ययन के द्वारा कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियों को भी उजागर किया गया। इसमें शामिल 56% लोगों की कूलिंग फैसिलिटी तक सीमित पहुँच है, 61% को लगातार बिजली कटने और पानी की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है वहीं लगभग 33% लोग गर्मी के कारण वित्तीय तनाव में हैं। मार्च 2024 में महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों से 28 दिनों के भीतर ही हीटस्ट्रोक के 23 मामले दर्ज किए गए। सबसे ज्यादा हीटस्ट्रोक के मामले अमरावती में दर्ज किए गए, उसके बाद रायगढ़, पुणे, बीड, बुलढाना, कोल्हापुर आदि का स्थान रहा। इसके साथ ही ठाणे, अहमदनगर, अकोला, भंडारा, चंद्रपुर, धुले, गडचिरोली, जलगांव, नांदेड़ और सतारा में एक-एक केस दर्ज किया गया।

यूनिसेफ की तरफ से किये गए विश्लेषण से पता चलता है कि दक्षिण एशिया में बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे शामिल हैं जो उच्च तापमान के सीधे संपर्क में आते हैं। तकरीबन 46 करोड़ बच्चे जो यहाँ की आबादी का 17% हिस्सा हैं और जिनकी उम्र 18 साल से कम है, हर साल 83 दिनों से अधिक 35℃ से भी ज्यादा तापमान का सामना करते हैं।

इसके अलावा दक्षिण एशिया के 28% बच्चे हर साल 4.5 या इससे ज्यादा हीटवेव की मार झेलते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ी गर्मी और चिलचिलाती धूप ने बच्चों और गर्भवती महिलाओं के न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी खतरे पैदा कर दिए हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्य ने हीटवेव से छात्रों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिये स्कूल की समय सारणी में बदलाव किया और गर्मी छुट्टी जल्दी देने की घोषणा की। बीते 23 मई को हिमाचल प्रदेश का ऊना 41.4℃ तापमान के साथ सबसे गर्म शहर रहा जिसके कारण स्थानीय मौसम विज्ञान विभाग को येलो अलर्ट जारी करना पड़ा। स्थानीय अधिकारियों ने बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए दो दिनों तक सभी स्कूलों को बंद रखने का आदेश दिया।


देश भर के अलग-अलग शहरों में बढ़ते तापमान से निपटने के लिए कई तरह के पैंतरे आजमाए जा रहे हैं। अहमदाबाद के ट्रैफिक जंक्शन पर मिस्ट स्प्रिंकलर का इस्तेमाल कर किसी तरह राहत पाने की कोशिश की जा रही है वहीं भुवनेश्वर में खास तौर पर गर्मी से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए "कूल वार्ड" तैयार किये जा रहे हैं, जिनसे उन्हें ठंडा वातावरण मिल सके। सामुहिक रूप से चलने वाले एक्शन प्लान भी जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट फ़ॉर ह्यूमन सेटलमेंट (आईआईएचएस) और अलायंस फ़ॉर एनर्जी एफिशिएंट इकोनॉमी (एईईई) के सहयोग से चलने वाला प्रोग्राम सोलर डेकाथलॉन इंडिया, नेट जीरो कार्बन इमारतों के डिज़ाइन को बनाने के लिए प्रयास कर रहा है जिससे साफ और कम तापमान वाली जगह का उपयोग किया जा सके। इसी तरह जिंदल स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर के छात्रों ने सोसाइटी फ़ॉर ह्यूमन वेलफेयर एंड एजुकेशन के साथ मिलकर अलीगढ़ के वंचित बच्चों के लिए "हमारा स्कूल" के नामक एक इको-फ्रेंडली स्कूल डिज़ाइन किया। इसी बीच, एक सस्टेनेबिलिटी कंसल्टेंसी- सीबैलेंस सॉल्यूशंस भी आम लोगों के घर को गर्मी से राहत दिलाने और आरामदायक बनाने के लिए इनोवेटिव तरीके अपना रही है। स्थानीय लोगों के साथ कुछ प्रयोग कर, महिलाओं के साथ "लिसनिंग वर्कशॉप" (जिसमें सभी स्थानीय महिलाओं की भागीदारी हो और तरह-तरह के उपाय निकलकर सामने आए, जिसे सुनने के बाद उसपर विचार किया जा सके) आयोजित कर वे गर्मी से राहत दिलाने वाले कई किफायती तरीके आजमाने में सफल हुए हैं जैसे कि छत की दीवारों पर एल्युमीनियम फॉयल बैरियर का उपयोग, छत पर छोटे पौधे लगाना और पानी से भरी बेकार पीईटी बोतल का उपयोग करना।

नागपुर के वीएनआईटी की प्रोफेसर राजश्री कोठारकर कई सालों से तापमान परिवर्तन से प्रभावित ताप की बढ़ोतरी के अध्ययन का नेतृत्व कर रही हैं। इसके लिए उन्होंने इन परिवर्तनों की मैपिंग करके एक छोटे वातावरण पर बनाये गए पर्यावरण के प्रभाव को समझने के लिए 14 सेंसर के एक नेटवर्क को तैयार किया है।

अधिकारियों के सहयोग से कोठारकर की रिसर्च टीम ने एक स्थानीय हीट एक्शन प्लान (एचएपी) बनाया है जिससे शहरों में हीट अलर्ट जारी करने में मदद मिल सके और लोगों को हीटवेव से बचाया जा सके।

महिला हाउसिंग ट्रस्ट के सहयोग से निर्मित, जोधपुर का ‘नेट ज़ीरो कूलिंग स्टेशन’ शहरी गरीबों के लिए एक समर्पित स्थान है, जो अस्थायी रूप से अत्यधिक गर्मी से राहत प्रदान करता है। स्रोत: महिला हाउसिंग ट्रस्ट
महिला हाउसिंग ट्रस्ट के सहयोग से निर्मित, जोधपुर का ‘नेट ज़ीरो कूलिंग स्टेशन’ शहरी गरीबों के लिए एक समर्पित स्थान है, जो अस्थायी रूप से अत्यधिक गर्मी से राहत प्रदान करता है। स्रोत: महिला हाउसिंग ट्रस्ट

इसी तरह जोधपुर ने पिछले साल अप्रैल में एचएपी लॉन्च किया, जिसे महिला आवास ट्रस्ट (एमएचटी) और प्राकृतिक संसाधन रक्षा परिषद  (एनआरडीसी) के आपसी सलाह द्वारा बनाया गया था।

 इस साल 23 मई को जोधपुर नगर निगम उत्तर ने स्थानीय डाटा और सामूहिक इनपुट का उपयोग कर अपने एचएपी को बढ़ावा देने के लिये हितधारकों से सलाह मशवरा किया। इसके अलावा जोधपुर के एचएपी के एक भाग के रूप में पहला ‘नेट जीरो कूलिंग स्टेशन’ बनाया गया है। शहर में रहने वाले वैसे लोग जिनके पास रहने के लिए उचित घर नहीं होते, उनके लिए ये एक बेहतर विकल्प है जो उन्हें अस्थायी रूप से रहने की जगह और चिलचिलाती धूप से राहत प्रदान करता है। इसमें मिस्ट स्प्रिंकलर, कूलिंग कर्टेन, पीने के पानी और प्राथमिक चिकित्सा की सुविधाएं शामिल है। इसमें बाइसन और खस पैनल भी हैं जो सोलर पैनल और विंड टॉवर से संचालित होते हैं जो इस जगह को इको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल बनाते हैं।

भारत में 1981-90 से 2011-20 तक हीटवेव दिनों की संख्या में 45% की वृद्धि देखी गई! नागरीका द्वारा इन्फोग्राफ़िक्स
भारत में 1981-90 से 2011-20 तक हीटवेव दिनों की संख्या में 45% की वृद्धि देखी गई! नागरीका द्वारा इन्फोग्राफ़िक्स
नागरीक द्वारा इन्फोग्राफ़िक्स | आईएमडी गणनाओं पर आधारित
नागरीक द्वारा इन्फोग्राफ़िक्स | आईएमडी गणनाओं पर आधारित

नागरिक ने भी जनवरी 2023 में एक कमेंट्री के जरिये एचएपी पर संक्षिप्त चर्चा की जिसका शीर्षक था "क्या आपका शहर अगली हीटवेव के लिए तैयार है?" मई 2024 में हमने अपनी दूसरी नागरिकल सीरीज के तहत छोटे शहरों में जलवायु परिवर्तन पर केंद्रित एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें बढ़ते तापमान और हीटवेव से जुड़े रिसर्च, डेटा मॉनिटरिंग और डेटा की उपलब्धता के साथ-साथ नीतिगत प्रतिक्रिया और शहरी स्तर की कार्रवाई पर चर्चा की गई थी। इस पूरी रिपोर्ट का वेब लॉन्च पैनल डिस्कशन के साथ आयोजित किया गया था जिसका शीर्षक था " क्षितिज पर गर्मी : भारत के छोटे शहरों में बढ़ता तापमान - प्रभाव और समाधान।" आयोजित पैनल में मौजूद प्रोफेसर अंजना व्यास, नीतू जैन और श्री विवेक गिलानी ने बढ़ते तापमान के प्रभाव से बचने के लिए कई उपाय सुझाए जैसे कि ग्रीन बिल्डिंग रेटिंग सिस्टम बनाना, नगर नियोजन की जरूरत, टेराकोटा टाइल्स की मदद से ठंडी छत बनाना, सफेद रिफ्लेक्टिव पेंट का उपयोग, छत पर छोटे पौधे लगाना आदि। देश भर के शहरों को बढ़ते तापमान की चुनौतियों से निपटने के लिए स्थानीय जरूरतों के अनुसार बड़े पैमाने पर एचएपी विकसित करना चाहिए। सामूहिक रूप से चलने वाली पहल को बढ़ावा देने से ही एक लचीले शहरी वातावरण को तैयार किया जा सकता है। इसके साथ ही तापमान बढ़ोतरी से बचाव के लिए इससे जुड़े डेटा मॉनिटरिंग और पॉलिसी रिस्पांस को भी बढ़ाना होगा।


क्या आपका शहर भी असामान्य उच्च तापमान को झेल रहा है?


आपके शहर में गर्मी से संबंधित समस्याओं का समाधान करने के लिए अधिकारियों या अलग-अलग समूहों द्वारा किस तरह के कदम उठाए जा रहे हैं? हमें नीचे टिप्पणी में बताएं।



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