आपणो मेलो
- connect2783
- Aug 15, 2024
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Updated: Jul 15
गुलाबी शहर में बसी बचपन की मिठास, दादी की कहानियों-सी सुरीली याद। दीक्षा का मन इस मेले में फिर से अपने पुराने दिनों को याद करने लगता है! चार दिन का ये मेला रंग-बिरंगे पंडालों, थिरकते लोकनृत्यों और पारंपरिक लोकगीतों का जादुई संगम है। हवा महल की झिलमिलाती खिड़कियों से आती धूप, सिटी पैलेस की गूंजती दीवारें और खिलखिलाहट भरे स्वर एक ऐसी कहानी रचते हैं, जो मन को आह्लादित करते हैं। ये मेला जीवन और संस्कृति का एक मिश्रित राग है। चलो देखते हैं, इस मेले में हमें अपना बचपन फिर से मिलता है या नहीं!
एक रविवार, जब सूरज अपने प्रचंड रूप में था, तभी मेरे फोन उठाने पर मुझे मेरी बचपन की सहेली दीक्षा की आवाज़ सुनाई दी। वह चौथी कक्षा में दूसरे प्रदेश चली गई थी। फिर क्या, मैंने बिस्तर को ऐसे छोड़ा मानो मेरी ट्रेन छूट रही हो। जैसे ही मैं उसके घर पहुँची, दरवाजे पर दादी के हाथों के बने लड्डुओं की खुशबू ने मेरा स्वागत किया। उन लड्डुओं की मिठास ने बचपन की सारी यादें ताज़ा कर दीं। हम दोनों ने बैठकर बचपन में पड़ोसी अंकल की खिड़की तोड़ने से लेकर ग्रीष्मावकाश का होमवर्क साथ में करने तक के सारे किस्से याद किए। हमारी हंसी-ठिठोली के बीच दादी ने भी अपने बचपन की कहानियाँ सुनानी शुरू कीं। उनके किस्से सुनकर हमारी शरारतें तो कुछ भी नहीं लगीं। दादी ने अपने मेले की बात छेड़ी और असीम उत्साह के साथ अपने पसंदीदा झूले और खाने से लेकर मेहंदी प्रतियोगिता जीतने तक के सारे किस्से सुनाए। पहली बार मुझे दादी में एक छोटी नन्ही बच्ची दिखी। मुझे यह अहसास हुआ कि बदलते वक्त के साथ हमारे मेलों में कितना परिवर्तन हुआ है। इस विचार ने मेरे मन में एक तूफ़ान पैदा कर दिया, जिसे शांत करने के लिए मैंने कलम का सहारा लिया और उस रात मेले की रंग-बिरंगी झाँकियों, झूलों और गुब्बारों से भरी कहानी लिखी।
अगले दिन, मैं उस कहानी का विश्लेषण करने अपनी दोस्त के घर पहुँची। मेरी नाव पर सवार होकर मेरी दोस्त और दादी ने इस काल्पनिक मेले का अनुभव किया। तो चलिए मेरे मन के मेले की सैर करने…
जय सिंह की दृष्टि, विद्याधर भट्टाचार्य की बुद्धि से खिल उठी सृष्टि, हमारी गुलाबी नगरी की समृद्धि से एक दिन अख़बार पढ़ते हुए मुझे ज्ञात हुआ कि हर वर्ष जैसलमेर में मरु महोत्सव नामक मेला आयोजित किया जाता है। तब नन्हे मन में उस मेले को अनुभव करने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई। यदि अभी मुझे ऐसा मेला अपने जयपुर शहर में आयोजित करना हो तो मेरा शैशव मन झूम उठेगा। मेरे सभी विचारों के पीछे की बुनियाद एक ही है कि इस पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव हमें हमारी संस्कृति से दूर कर रहा है। पारंपरिक मेले के लिए लोग कभी उत्साहित नहीं होंगे, यदि आप भी ऐसा सोचते हैं तो यह मेला आपके इस भ्रम को ध्वस्त करने के लिए ही है। तो आपको मैं इस मेले के लिए आमंत्रित करती हूँ- ‘खम्मा घणी सा, पधारो म्हारो जयपुर रा मेला में’। दादी ने हास्यपूर्ण तरीके से कहा, “घणी खम्मा सा, ई मेला में आबा के लिए मैं घनी उतावली हूँ।”
मेघ हुए सावन जब, सरयू हुआ घाघ तब, गगन हुआ पावन जब, महीना आया माघ तब हवा महल की शिखर को भी लालायित कर दे और तन-मन को ठंडक देवे ऐसे मौसम में मेले का आनंद ही कुछ और है, तो क्यों ना इसे फरवरी के महीने में आयोजित किया जाए। दिन की हल्की-हल्की धूप से लेकर रात में ठंडी-ठंडी हवा के झोंके तक, इस चार दिवसीय मेले के साक्षी लोग इस अनुभूति को भूल नहीं पाएँगे।
मेले का प्रचार-प्रसार भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस तकनीकी ज़माने में खबरें जंगल में आग की तरह फैलती हैं। तो हम पोस्टर से आसपास के लोगों को और सोशल मीडिया पर रील बनाकर देश-विदेश के लोगों को अवगत करा सकते हैं। अख़बारों में इश्तिहार भी एक अच्छा विकल्प रहेगा।
हवा महल की रंगीन खिड़कियों से, सिटी पैलेस के गलियारों तक, खिल उठी किलकारी, गुलाबी नगरी के गलियों की इस चार दिवसीय मेले में हर दिन अलग-अलग लोकनृत्य और गीत की प्रस्तुति होगी। राजस्थान की महान हस्तियों को आमंत्रित किया जाएगा जिनकी कला और जज़्बा पूरे देश ही नहीं विदेश तक सराहनीय है। राजस्थान के माननीय मुख्यमंत्री को मेले का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया जाएगा। बचपन में मम्मी-पापा का हाथ थामे उस खुशी का ठिकाना नहीं था जब हम मेले में जाते थे, मानो जीवन का सारा आनंद प्राप्त कर लिया हो। वैसे तो मुझे झूलों से डर लगता था लेकिन एक बार हिम्मत करके मैं ड्रैगन झूले पर बैठी, फिर क्या मेरी चीख कानों तक और मेरे भयभीत चेहरे की तस्वीर आज तक मेरे पास रखी हुई है। झूलों से मन तो भर जाता था लेकिन इस ख़ाली पेट का क्या करें जिसके कारण मम्मी के आवाज़ लगाने पर मिकी माउस झूले को छोड़ना पड़ता था। गुड़िया के बाल, बर्फ का गोला और चाऊमीन मैंने ऐसे खाए मानो कल दुनिया का अंत होने वाला हो। यह छोटी नन्ही याद मेरे दिल पर इतनी गहरी छाप छोड़ जाएगी मुझे ज्ञात ही ना था। यह सुन दादी के मुख मंडल पर बचपन का उत्साह छलका। फिर मैंने सहसा खड़े होते हुए दादी का हाथ पकड़कर धीमे से कहा, “आओ दादी, चलो बचपन की सभी यादों को जोड़ते हुए, मेले की माला पिरोते हैं!!!”
मेले की एक ओर कुछ लोग खाने का ज़ायका ले रहे होंगे और दूसरी ओर खुशी से जगमग नन्हे चेहरे खेल और झूलों से जीवन की अंतिम उल्लास का अनुभव कर रहे होंगे। स्टॉल में राजस्थान की विश्व प्रसिद्ध गर्म-गर्म दाल बाटी चूरमा, घी में डुबा हुआ बाजरे का रोटला, गट्टे की सब्ज़ी, तीखी लहसुन की चटनी और मेरी पसंदीदा केर सांगरी की सब्ज़ी और भी बहुत से राजस्थान के प्रसिद्ध व्यंजन के मात्र विवरण से हमारे मुँह में पानी आ रहा है। मीठे के बिना खाना कैसा और राजस्थान का रबड़ी वाला घेवर, मालपुआ, मावा कचौड़ी, नर्म मठरी, चाशनी वाली फीणी नहीं खाई तो जीवन अधूरा ही रह जाएगा। इस स्वाद के तूफ़ान को शांत करने के लिए खट्टा मीठा कैरी का पन्ना और ठंडी-ठंडी छाछ पीना ना भूलें। सुहावने मौसम में जब लोग मेले में प्रस्थान करें तो उनके स्वागत पर शहनाई की धुन उन्हें उत्साहित कर देगी। एक भव्य रंगीन द्वार से जब वे अंदर प्रवेश लें तो गर्म-गर्म कुल्हड़ की मसाला चाय उनका इंतजार कर रही होगी। अब आगे की ओर प्रस्थान करने पर एक रास्ता उन्हें भव्य मेले तक ले जाएगा।
मैं चाहूँगी कि यह मेला जयपुर हेरिटेज सिटी में हो, इससे आने वाले पर्यटकों को हमारे महल, मंदिर और जीवन शैली के बारे में जानने को मिलेगा। कहते हैं ना ‘अतिथि देवो भव:’ तो हमारे मेहमानों की सुरक्षा हमारा पहला धर्म है। गेट पर सिक्योरिटी गार्ड आने वाले सभी लोगों की जाँच करके ही अंदर आने देंगे। अंदर एक सहायता डेस्क होगी जहाँ लोग अपनी समस्या बता सकते हैं व एक लॉस्ट एंड फाउंड डेस्क भी होगी। पर्यावरण के बिना मनुष्य जीवन कैसा तो इस पूरे मेले को प्लास्टिक फ्री और सोलर पॉवर के उपयोग से हम प्रदूषण कम से कम कर सकते हैं।
मैं चाहूँगी कि यह मेला मेरे शहर के लिए साल भर का उत्साह और देश-विदेश के पर्यटक लेकर आए। यह आने वाली सभी पीढ़ियों को हमारी राजस्थानी संस्कृति के बारे में जानकारी देगा व मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरी तरह वे भी इस मेले के लिए सभी उत्साहित होंगे। हर दिन का अलग विवरण करते हुए मैं आपको आपके ख़्वाहिशों में इस उन्माद मेले की सैर कराती हूँ।
‘गौर-गौर गणपति ईसर पूजे पार्वती...’ इस गीत से पूरा जयपुर चैत्र के महीने में झूम उठता है। हर साल एक जुलूस निकलता है जिसमें महिलाएँ, सुहाग का प्रतीक लाल रंग के वस्त्र पहनकर और मन में अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए इस यात्रा में शामिल होती हैं। मैं चाहूँगी कि इस यात्रा से हमारे मेले की शुरुआत हो। लोग माणिक पोशाक में सिर पर ईसर और पार्वती जी की मिट्टी से बनी हुई मूर्तियाँ उठाते हुए पूरे मेले का चक्कर काट रहे होंगे, वहीं कुछ लोग ख़ुशी से अपने कदम थिरका रहे होंगे। इस दृश्य की कल्पना करके ही मेरा मन गदगद हो रहा है। दिन ढल रहा होगा, सूरज बादलों की चादर में पैर पसार रहा होगा तभी आवाज़ आती है- ‘कालयो कूद पड्यो मेले में...’ और काले चमकीले घाघरे में कलाकार राजस्थान के कालबेलिया की प्रस्तुति कर रहे होंगे। यह देख दर्शक स्वयं को नाचने से रोक नहीं पाएंगे। बंदूक से गुब्बारे फोड़ना, मेहंदी, रंगोली कॉम्पिटिशन, चकरी फेंकना, घड़े बनाना सभी बच्चों से बड़ों तक को लुभा देंगे। एक कोने में पगड़ी पहने हुए, बड़ी मँछुओं को तानते हुए महाराज कुल्हड़ की चाय पिला रहे होंगे। पहले दिन का अंत, अनेक महिलाओं की प्रेरणादायक ‘रुमा देवी’ के प्रेरणादायक शब्दों से समाप्त होगा। वे एक समाज सेविका व भारतीय पारंपरिक हस्तकला कारीगर हैं।
दूसरे दिन ऊंट रेस देख लोगों में ऊर्जा छा जाएगी। सजे हुए घोड़े, ऊंट, हाथी की सवारी बच्चों को उत्साहित कर देंगी। दूसरी जगह कठपुतली का शो होगा जिसमें हमारे महान राजाओं की वीरगाथाओं का वर्णन होगा। बच्चे ड्रैगन झूला, जॉयंट व्हील, मिकी माउस झूला झूलने में व्यस्त होंगे। आज की शाम घूमर के नाम जिसमें कलाकार रंगीन घाघरा चोली में जयपुर की शान घूमर नृत्य की प्रस्तुति देंगे। इस दिन का अंत महान राजस्थानी गायक मामे खान की मधुर आवाज़ से चाँदनी रात में चार चाँद लगा देगी। इस दिन हुए मेहंदी कॉम्पिटिशन में सभी महिलाओं ने फूलों और बेलों से हाथ सजाए। मुझे दादी की आवाज़ में बचपन का जोश और चेहरे पर मासूमियत देख उनके अंदर छुपी हुई बच्ची का अनुभव हुआ।
तीसरा दिन हमारी राजस्थानी कला को समर्पित होगा। पिचवाई, लघु, फड़, बनी-थनी सभी की प्रदर्शनी होगी। दिवंगत महान मूर्तिकार अर्जुन प्रजापति की मूर्तियाँ देख लोग विस्मित हो जाएँगे। आदिवासी कला का प्रदर्शन ना केवल लोगों को बल्कि हमारे आदिवासी भाइयों और बहनों को उनकी कला दिखाने का मौका भी देगा।
स्थानीय व्यवसायियों द्वारा लगी जयपुरी कुर्ती, लहरिया की साड़ी, झुमकों और भी जयपुर के प्रसिद्ध सामान की स्टाल से लोगों ने जमकर ख़रीदारी की। कच्ची घोड़ी और चरी के बिना राजस्थान का कोई भी महोत्सव अधूरा है। अब मेला अपने आखिरी दिन की ओर रुख़ करेगा।
आखिरी दिन कवि सम्मेलन की वाह-वाह से गूँज उठेगा। कवियों और शायरों के शब्दों और जनता की तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा मेला भर जाएगा। जयपुर राजघराने की श्रीमती दिया कुमारी जी के द्वारा प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कृत किया जाएगा। ढलते हुए सूरज के साथ इस साल के मेले की यादें सभी पर्यटकों के मन में जीवन भर के लिए समा जाएँगी।
क्या आप अपने बचपन का अनुभव करने मेरे मेले में आना चाहेंगे? मेरे इस सवाल पर दादी ने पूरे जोश से हाँ बोला, तो क्यों ना आप भी हमारे साथ शामिल हों?
About the Author

Siddhi Bhardwaj
A native of Jaipur, Siddhi is currently pursuing an MBBS degree. With a curiosity that spans from the vibrant strokes of colours to the complexities of diplomacy, Siddhi finds inspiration in a wide range of interests. An avid sports enthusiast, she often imagines herself on the sports field when not immersed in her journey to becoming a doctor.
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