मेरा शहर ब्यूटिफ़ुल
- connect2783
- Aug 15, 2022
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Updated: Jul 15
पटना की धूप में एक नरम उजास था, जब सुमन मैडम वर्षों बाद उस मिट्टी पर लौटीं जहाँ बचपन की हँसी गूँजती थी। कार की खिड़की से उनकी आँखें पुरानी गलियों को देख रही थी, अब वहाँ धूल-मिट्टी या भीड़-भाड़ नहीं थी, बल्कि स्वच्छ हवाओं में सिमटी उम्मीद की हल्की-सी चमक थी। कागजी योजनाओं में उलझी सुमन मैडम भी अब बदलाव का स्पंदन महसूस कर रही थीं। आइए पढ़ते हैं एक ऐसे शहर की कहानी जो संकल्प के ताने-बाने से बुना गया है।
चहल-पहल वाली गलियों से गुजरते हुए आज सुमन को कई बरस हो गए थे, ये वही गलियां हैं जो कभी कूड़े के ढेर से उठते धुएँ के कारण आसपास के लोगों के लिए बीमारियों का कारण हुआ करती थी।
सुमन ने अपने पर्स से इत्र में सनी हुई रूमाल निकाली और अपने कार के शीशे को नीचे सरकाया और बाहर देखकर खुद से ही बोली “ब्यूटीफुल”।
ड्राइवर भी अपने मैडम के हाव भाव को पहचान गया था और खुद को बोलने से रोक नहीं पाया , “माफी चाहते हैं मैडम लेकिन ई जेतना भी काम हुआ है न, काफी खून पानी लगा है तब जाकर आप सुंदर नजारा देख रहे हैं, और तो और टोटल का टोटल सब आजकल के लईका लोग ही किया है।”
सुमन मूल रूप से पटना की थी और मध्यप्रदेश के जबलपुर में बतौर (स्वास्थ्य सचिव) आई.ए.एस कार्यरत थी और चार सालों के बाद अपने घर पटना वापस लौटी थी। ड्राइवर का इस तरह घुलना उसको भी अच्छा लग रहा था और काम से दूर अपने शहर के नएपन को जानने के लिए उसे ही अपना गाइड समझा।
बात आगे बढ़ाते हुए ड्राइवर ने बताया, “2016 में जगह-जगह पानी जमा हुआ था और पटना में कई लोगों को डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियां होती रही, कचरे का सही से प्रबंधन नहीं हो रहा था, लेकिन काफी हद तक इन सब चीजों में अब जाकर सुधार हुआ है।”
कुछ इसी तरह की बातें और युवाओं के योगदान के बारे में ड्राइवर सुमन मैडम को बताते रहा और जैसे ही डाक बंगला चौराहा के ट्रैफिक पर गाड़ी रुकी सुमन मैडम ने देखा कुछ युवा नेता खुली जीप में रोड शो कर रहे हैं, जोश सबों में इतनी मानो आसमान को झुका दे, इन सबों को देखकर सुमन को भी अपने कॉलेज के दिनों की याद आने लगी और खुद को उसी युवा वर्ग में महसूस किया।
“रंजीत, आप जरा गाड़ी साइड में पार्क कीजिए, मैं इन सब से मिलकर आ रही हूं।” ड्राइवर ने पार्किंग में गाड़ी को पार्क किया और सुमन मैडम उस भीड़ का हिस्सा हो गई।
दरअसल ये प्रचार-प्रसार वार्ड पार्षद के चुनाव को लेकर था और पटना के अधिकांश वार्ड में इस बार एक अलग ही आंकड़े देखने को मिल रहे थे, नए-नए चेहरे के पीछे हुजूम उमड़ रहा था, जहां पुराने प्रत्याशी अपनी दावेदारी को मजबूरी में पेश कर रहे थे वहीं नए युवा चेहरे खुलकर अपनी बातों को रखते हुए एक अलग सलीके से परिवर्तित पटना का एहसास करवा रहे थे।
सुमन मैडम को अंदाज पसंद आया और जुलूस में शामिल होकर गांधी मैदान तक का सफर उसी सब के साथ पूरा किया, गुलाल में सनी हुई सुमन मैडम को शायद अपने शहर का भविष्य सुरक्षित दिख रहा था इन युवा साथियों के हाथों में।
छुट्टी खत्म होते ही सुमन मैडम ने फ्लाइट पकड़ी और अपनी ड्यूटी को वापस लौट गई, प्लेन के खिड़की के बाहर इस उम्मीद में देखा कि शायद ये स्लम एरिया की बस्ती का हाल अच्छा हो जाए, महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था बेहतर हो, साफ सफाई बेहतर हो, आंखों पर तौलिया रखकर भीगे मन से शहर को अलविदा कहा और चली गई फिर से वापस लौटने के इंतजार में।
इधर चुनाव खत्म हुए और अधिकांश सीटों पर युवा प्रत्याशी आगे आए और अब बारी थी शहर के हालात बदलने की, सारे वार्ड पार्षद की मीटिंग बुलाई गई और सबसे पहले शहर में महिलाओं के सुरक्षा का मुद्दा उठाया गया, उन तमाम कारणों पर प्रकाश डाला गया जिस से आधी आबादी को रात में घर से बाहर निकलने में परेशानी हो रही हो, परिणाम स्वरूप निष्कर्ष यह निकला कि हर एक गली में और हर एक मोड़ पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे, टोल फ्री नंबर 222 चौबीसों घंटे काम करेंगे और समाज की मानसिकता को शिक्षा के माध्यम से बदलने की कोशिश करेंगे। सभी युवाओं ने इसका समर्थन किया ।
रिजल्ट इसका ये आया कि अगले 2 महीने के भीतर एक भी ऐसा कोई मामला नहीं आया जहां महिलाओं के खिलाफ कोई अनैतिक कार्य किया गया हो।
अब बारी थी साफ-सफाई व्यवस्था बेहतर बनाने की, ऐसा नहीं था कि पूर्व के लोगों ने साफ सफाई पर ध्यान नहीं दिया बल्कि उन लोगों ने इस पर नीतियों को नए तरीके से नहीं सोचा और बस राम भरोसे ही इसको छोड़ना मुनासिब समझा, युवाओं की फौज ने पटना को और बेहतर बनाना अपनी जिम्मेदारी समझी।
सबसे पहले उस चीज को संज्ञान में लाया गया जिसमें देश के टॉप रैंक के शहर स्वच्छता में आते हों, तो मध्य प्रदेश के इंदौर शहर को रोल मॉडल चुना गया, इंदौरी पॉलिसी को अपनाया गया, सारे वार्ड में ये ऐलान किया गया कि जिस वार्ड का नाम स्वच्छता सर्वेक्षण में प्रथम स्थान प्राप्त करेगा उसको 10 लाख का इनाम दिया जाएगा, ऐसा ऑफर आते ही लोगों ने कंपटीशन की भावना से अपने गली, मोहल्लों में कचरा जहां-तहां फेकना बंद कर दिया और स्वच्छ रखने की होड़ में लग गए, कचड़ा कूड़ेदान के अलावा यत्र-तत्र फेंकने वाले के ऊपर सीसीटीवी से मॉनिटरिंग होने लगी और जुर्माने का प्रावधान किया गया, शुरुआत में लोगों को ये आदत छोड़ने में समय लगा मगर अब स्वच्छता बना के रखना उनकी आदत सी हो गई थी।
सारे शहर ने युवाओं के कार्य को सराहा और युवा जिम्मेदारियों के ऊपर गर्व महसूस किया।
लेकिन अभी भी एक तबका ऐसा था जो विकास से वंचित रह गया और वो था शहर के अलग-अलग जगहों में रह रहे स्लम बस्ती वाले, जब उनका ध्यान इन बस्तियों पर गया तो ऐसा लगा मानो इनके साथ भेदभाव किया जा रहा हो, एक ही शहर के लोग मगर अलग-अलग ढंग से रहने को मजबूर, ऐसा भेदभाव क्यों?
सारे वार्ड पार्षदों ने अपने यहां के लोकल विधायक से संपर्क किया और विधानसभा में इस मुद्दे को उठाने की बात कही, विधायक जी ने भी हामी भरी और विधानसभा का सत्र आते ही यह प्रस्ताव रखा कि स्लम एरिया वालों को एक पैटर्न के तहत बसाया जाए और इन्हें भी एक शहर का अंग माना जाए, बेहतर शिक्षा उपलब्ध हो, स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराई जाए, पक्के मकान बतौर मालिकाना हक इनको दिया जाए, सारे सदस्यों की सहमति से इनके प्रस्ताव पर चर्चा हुई और बिल पास कर दिया गया।
नतीजतन कुछ ही महीनों में सर्वेक्षण हुआ और सारे लोगों को विस्थापित किया गया और स्कूल और अस्पताल बनाया गया। स्लम एरिया के लोगों को एक ही पैटर्न का घर दिया गया जो मानो ऐसा प्रतीत हो रहा हो जैसे ब्रिटेन में व्यवस्थित ढंग से लोग बसते हो।
युवाओं में जोश और रफ्तार के परिणामस्वरूप ही शहर का विकास बोलने लगा और पटना वास्तव में अपने पुराने इतिहास को जी रहा था, वही शहर जिसने युवा चंद्रगुप्त मौर्य को बनाया, वही शहर जिसने चाणक्य के अर्थशास्त्र को समेटा, वही शहर जिसने हूणों और शकों को हराया, वही शहर जिसने अशोक को सम्राट अशोक बनाया।
सुमन मैडम दोबारा अपने शहर को 2021 में लौटी और विमान की खिड़की से ही गुलाबी रंग के पक्के मकान दिखने शुरू हो गए, ड्राइवर रंजीत एयरपोर्ट पर आया था मैडम को रिसीव करने ।
“नमस्ते मैडम, 1 साल बाद आ रही हैं आप, बहुत बढ़िया मौके पर आईं हैं आप, अब तो दिवाली और छठ दोनों का ही आनंद लीजिए पटना में”- उत्साह में ड्राइवर ने सुमन मैडम का सामान उठाया और गाड़ी में रखते हुए बोला।
रास्ते में मैडम ने पूछा “रंजीत वो गुलाबी रंग का बहुत सारा मकान क्या है?” रंजीत मुस्कुरा कर बोला- “मैडम आपके युवाओं ने कमाल कर दिया, ये झुग्गी वालों को बसाया गया है,” गाड़ी आगे बढ़ रही थी और मैडम को शहर का बदलाव नजर आ रहा था।
दीपावली में मैडम, उनकी मां और रंजीत छत पर खड़े होकर आस-पास के बच्चों के साथ फुलझड़ी जला रहे थे और सारे शहर की जगमगाहट का मुआयना कर रहे थे। ये उनकी पहली ऐसी दिवाली थी जिसमें कहीं किसी महिला के साथ कोई बुरे बर्ताव की कोशिश न हुई हो, कहीं कोई गंदगी नहीं हो और गरीबों और अमीरों के मकान के बीच दीये और झालरों को लेकर फर्क न हुआ हो। चारों तरफ बस जगमग जगमग शहर नजर आ रहा था।
इधर सुमन मैडम की मां खाना परोस रही थीं और रंजीत गाड़ी को पार्क कर रहे थे और सुमन मैडम युवाओं के कार्य को सराह रही थीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सच में आज राम जी पटना ही लौटे हों , और लक्ष्मी जी अपने धन दौलत के साथ-साथ सरस्वती जी भी अपनी बुद्धि और विवेक उड़ेल रही हों।
उनको ये अच्छा लगा होता अगर शहर पहले ही युवाओं के नीतियों से लैस होता। खुद के शहर की तारीफ करने से वह खुद को नहीं रोक पाई।
अनायास ही सुमन मैडम के मुंह से निकला “ब्यूटीफुल”।
About the Author

Suruchi Suman
A resident of Patna, Suruchi is a final-year law student pursuing an honours in BA LLB at the Central University of South Bihar, Gaya. An avid traveller, Suruchi enjoys documenting her observations through writing. She enjoys writing about cities around India, drawing inspiration to move ahead with courage and honesty.
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