कोटा फैक्टरीज का उभार
- connect2783
- Jun 13, 2024
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Updated: Jul 16
कोचिंग सेंटर अब मेट्रो शहरों से बाहर भी तेजी से फैल रहे हैं, जैसे रांची, पटना और गुवाहाटी में, जहां ग्रामीण इलाकों के छात्र प्रतियोगी परीक्षाएं पास करने की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि, बढ़ती लागत, नियमों की कमी, और मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं अभी भी बड़ी चुनौतियां हैं। सरकार की मुफ्त कोचिंग योजनाएं तो सामने आ रही हैं, लेकिन कोचिंग संस्कृति के दबावों को संभालना जरूरी बना हुआ है। क्या आपके शहर में भी ऐसे ट्रेंड्स दिख रहे हैं?

भारत में कोचिंग कल्चर का उदय
क्या आपने अपने शहर में कोचिंग सेंटरों की बढ़ती मौजूदगी देखी है? वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) के मुताबिक, कोचिंग लेने वाले सरकारी और और निजी स्कूल के छात्रों की भागीदारी 2019 में 9.9% से बढ़कर 2021 में 11.5% हो गई है। 75वें नेशनल सैम्पल सर्वे के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में निजी कोचिंग पर प्रति छात्र लगभग 1952 रुपये खर्च होता है जो ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में तीन गुना ज्यादा है जहाँ प्रति छात्र 584 रुपये खर्च होता है। कई लोगों का मानना है कि निजी स्कूल या सरकारी स्कूल का शिक्षा पाठ्यक्रम अपर्याप्त है क्योंकि ये छात्रों को नीट और जेईई जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रवेश के लिए तैयार करने में काफी नहीं हैं। बड़ी संख्या में अभिभावक और छात्र अब कोचिंग को ही तवज्जो देते हैं।
छोटे शहरों में कोचिंग सेंटर की बाढ़
केवल महानगरों में ही नहीं बल्कि गांव के युवाओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए छोटे शहरों और कस्बों में भी कोचिंग का विकास हो रहा है। उदाहरण के लिए, झारखंड कोचिंग एसोसिएशन के मुताबिक साल 2012 में राँची में केवल 200 कोचिंग सेंटर थे लेकिन सिर्फ छः सालों में ये 10,000 हो गए। नागपुर, भुवनेश्वर, पटना और मदुरै जैसे शहरों में भी कोचिंग सेंटरों की बढ़ोतरी देखी गई है। छोटे शहरों में पटना के मुसल्लहपुर हाट जैसे कोचिंग सेंटर 9-10 महीनों के लिए लगभग 1000 रुपए प्रति महीने की मामूली फीस पर कोचिंग सेवा देने के लिए लोकप्रिय हैं। दिल्ली की तुलना में कम कोचिंग फीस और रहने के किफायती खर्च के कारण नोएडा एक प्रमुख कोचिंग हब के रूप में उभर रहा है।
कैरियर काउंसलर छोटे शहरों में कैरियर के सीमित अवसर को कोचिंग के क्रेज का कारण बताते हैं। सरकारी नौकरी, मेडिकल या इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कैरियर बनाना एक आकर्षक और सुरक्षित चुनाव के तौर पर माना जाता है।
गुवाहाटी में 160 से अधिक कोचिंग सेंटर हैं जो यूपीएससी, कैट, नीट, जेईई और दूसरे प्रतियोगी परीक्षा देने वाले छात्रों को तैयारी करवाते हैं। दिल्ली और चेन्नई जैसे महानगरों के कई नामी कोचिंग सेंटर सीमित कनेक्टिविटी और परिवहन के कारण पूर्वोत्तर के कई छात्रों की पहुंच से बाहर हैं। असम के नागांव, होजाई और तेजपुर जैसे छोटे शहरों और कस्बों से आने वाले छात्र राजधानी आते हैं जिससे गुवाहाटी एक नए कोचिंग केंद्र के रूप में उभर रहा है। इसी तरह देहरादून भी डिफेंस और एमबीए के कोचिंग केंद्र के रूप में बढ़ रहा है जो बिहार, झारखंड और यूपी के छोटे शहरों के छात्रों को आकर्षित कर रहा है।
भारत की कोचिंग राजधानी की समस्या
राजस्थान के टियर-2 शहर कोटा को "कोचिंग राजधानी" के रूप में जाना जाता है। यहाँ हर साल लगभग 300,000 छात्र आते हैं। ये छात्र देश के नामी गिरामी पब्लिक मेडिकल कॉलेज या इंजीनियरिंग कॉलेजों में सीट पाने के लिए cram स्कूलों (एंट्रेंस ओरिएंटेड ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट) में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। कोटा की लोकप्रियता सफल छात्रों के ट्रैक रिकॉर्ड, प्रतिस्पर्धी माहौल और विशेषज्ञ शिक्षकों की मौजूदगी के कारण है। हालांकि छात्रों के जीवन पर यहाँ की कोचिंग कल्चर का चिंताजनक असर पड़ना जारी है। पढ़ाई के तनाव और एंट्रेंस क्रैक करने के दबाव में आकर इस साल जनवरी से लेकर अब तक 10 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं।
सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ लॉ एंड पालिसी के निदेशक डॉ० सौमित्र पठारे कहते हैं कि भारत में रोजगार और मानसिक स्वास्थ्य जैसी समस्याओं के बीच कोचिंग सेंटर इन समस्याओं का एक लक्षण है।
उभरती चुनौतियाँ : कोचिंग सेंटर की अग्नि सुरक्षा, लाइसेंसिंग और रेगुलेशन
इन सबके अलावा भी कई दूसरी चुनौतियाँ हैं क्योंकि कोचिंग सेंटर लगातार बढ़ रहे हैं। भोपाल के एमपी नगर में लगभग 90% कोचिंग सेंटरों में पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं और आग से सुरक्षा की मशीनों की कमी है। ज्यादातर सेंटर एक ही जगह पर 2000 छात्रों को पढ़ाते हैं। ये जगह बहुमंजिला इमारतों या बेसमेंट में होते हैं जहाँ आने-जाने वाले रास्तों की कम चौड़ाई सुरक्षा की दृष्टि से भयावह है। मई 2024 में राजकोट के गेम ज़ोन में आग लगने के बाद अग्नि सुरक्षा मंजूरी नहीं होने के कारण सूरत में कई कोचिंग सेंटरों को सील कर दिया गया। इस बीच उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग (यूसीपीसीआर) की मदद से 2022 में देहरादून के कई कोचिंग सेंटरों का निरीक्षण किया गया जिसमें बगैर लाइसेंस और बुनियादी सुविधाओं के बिना कोचिंग सेंटरों से कई गम्भीर समस्याएं सामने आई।
कई जेईई और नीट कोचिंग सेंटरों ने लाइसेंस नहीं होने के कारण बहुत अधिक फीस वसूलना शुरू कर दिया है। भोपाल और देहरादून जैसे शहरों में 30,000 से लेकर 3 लाख रुपये तक सलाना फीस है। भारत के शिक्षा मंत्रालय ने ऐसी चुनौतियों के कारण इस साल जनवरी में कोचिंग सेंटरों के लिए कई नए निर्देश जारी किए हैं ताकि छात्रों के लिये ज्यादा रेगुलेटेड और सहायक वातावरण को बढ़ावा मिल सके। मुख्य उपायों में कई बातें शामिल हैं जैसे कि 16 वर्ष से कम उम्र के छात्रों के नामांकन पर रोक, सिर्फ माध्यमिक विद्यालय परीक्षा के बाद नामांकन की अनुमति, कोचिंग की गुणवत्ता, फीस, सुविधा या रिज़ल्ट के बारे में झूठे विज्ञापनों पर रोक लगाना आदि शामिल है। इसके अलावा छात्रों की सहायता के लिए कॉउंसलिंग को भी जरूरी बनाया गया है। अधिक फीस वसूलने पर 1 लाख रुपए तक का जुर्माना या रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया जा सकता है।
केंद्र सरकार द्वारा जारी निर्देशों से प्रभावित होकर मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य के उच्च शिक्षा विभाग की मदद से इन निर्देशों को लागू किया और इसके साथ ही नए नियमों को तोड़ने वाले कोचिंग सेंटरों पर नकेल कसने की योजना बना रही है। हालांकि कोचिंग क्लासेस टीचर्स फेडरेशन महाराष्ट्र (सीसीटीएफएम) जैसे संगठनों ने नए निर्देशों खासतौर पर 16 साल से कम उम्र के छात्रों के लिए कोचिंग पर रोक का विरोध करते हुए कहा है कि यह सरकारी पहल सामने आई है। इस साल उड़ीसा के राज्य चयन आयोग ने 5 मई को एक प्रवेश परीक्षा आयोजित की जिसके तहत उन उम्मीदवारों को चुना गया जो सिविल सेवा परीक्षाओं में सफलता के लिए भुवनेश्वर में मुफ्त आवासीय कोचिंग का लाभ पानाछात्रों के शैक्षणिक विकास पर नकारात्मक असर डालेगा। इस घटना से पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने अगस्त 2023 में सेफ सिटी प्रोजेक्ट के तहत कुछ नियम जारी किए थे, जिसमें कोचिंग सेंटरों को रात 8 बजे के बाद लड़कियों की क्लासेस चलाने से रोक दिया गया था। इस बात पर भी लड़कियों के अवसरों को सीमित करने का हवाला देते हुए कार्यकर्ताओं और छात्रों की आलोचना के कारण दिसम्बर तक इसे रद्द कर दिया गया है।
फ्री कोचिंग - कोचिंग को प्रजातंत्रीय बनाने के लिये सरकार की पहल
छात्रों को मुफ्त और जरूरत के आधार पर कोचिंग मुहैया कराने के लिए कई चाहते थे। इसके साथ ही इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट एजेंसी (आईटीडीए) ने 70 आदिवासी छात्रों को मुफ्त कोचिंग मुहैया कराने की पहल की है जो संघ और राज्य सेवा परीक्षा देना चाहते हैं। इसी तरह "नान मधुलवन योजना" के तहत चेन्नई, कोयम्बटूर और मदुरै में तीन आवासीय ट्रेनिंग सेंटर शुरू कर करने की योजना बना रही है जो प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मुफ्त कोचिंग की सुविधा देगी। इसमें चयनित 1000 उम्मीदवारों को तमिलनाडु कौशल विकास निगम द्वारा छः महीने की ट्रेनिंग के साथ भोजन और आवास की सुविधा भी मिलेगी। सिलीगुड़ी नगर निगम 42 वार्डों के ग्यारहवीं कक्षा के उन मेधावी छात्रों के लिये बंगाली, अंग्रेजी और हिंदी माध्यम में मुफ्त कोचिंग की सुविधा दे रहा है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं।


कोचिंग कल्चर में बदलाव
रामानुजन स्कूल ऑफ मैथेमेटिक्स के तहत पटना के आनंद कुमार के द्वारा शुरू किया गया सुपर 30 कार्यक्रम साल 2002 से हर साल उन 30 प्रतिभाशाली छात्रों को जेईई परीक्षा की तैयारी कराने के लिए चुनता है जो आर्थिक रूप से वंचित हैं। पथ प्रदर्शक फाउंडेशन ने फ्री ऑनलाइन क्लासेस आयोजित करके भारत के कोचिंग की तस्वीर को बदल दिया है। इसी तरह 800 से अधिक छात्रों वाले रहमानी30 स्कूल ने गरीब मुस्लिम युवाओं के लिए इंजीनियरिंग, फाइनेंस और मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी के लिए मुफ्त कोचिंग की सुविधा देता है। छोटे शहरों और गरीब परिवारों के छात्रों के लिए ऑनलाइन शिक्षण में यूपीएससी वाला और स्टडीआईक्यू जैसे एड-टेक प्लेटफॉर्म एक किफायती और व्यक्तिगत कोचिंग के रूप में अपनी धाक जमा रहे हैं। खान स्टडी ग्रुप (केएसजी) जैसे पारम्परिक कोचिंग सेंटरों ने भी अब डिस्टेंस डिजिटल लर्निंग को बढ़ावा देते हुए छात्रों को मेल के माध्यम से स्टडी मैटेरियल भेजना शुरू कर दिया है।
हालांकि छात्रों की कोचिंग सेवाओं तक पहुंच को प्रजातांत्रिक बनाने के लिए और अधिक प्रतियोगी एंट्रेंस को पास करने का अवसर देने के लिए बहुत कुछ किया गया है। लेकिन युवाओं पर इनके बढ़ते दबाव को दूर करने की जरूरत पूरी नहीं हुई है।

कोटा में कोचिंग की छात्राओं के बीच बढ़ती आत्महत्या दर की निगरानी के लिए जिला प्रशासन ने 5 विशेष महिला दस्ते स्थापित किये हैं जिसमें एक प्रशासनिक सेवा अधिकारी, एक सब-इंस्पेक्टर और एक डॉक्टर शामिल हैं। इनका काम मानसिक स्वास्थ्य देखना, एक अच्छा वातावरण देना, अन्य मुद्दों से गोपनीय रूप से निपटना और जरूरत पड़ने पर लड़कियों को चिकित्सा पेशेवरों के पास भेजना है। फिर भी भारत की शिक्षा प्रणाली को फिर से गहन मूल्यांकन की जरूरत है। इन चुनौतियों को व्यापक रूप से सम्बोधित करना यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि वर्तमान कोचिंग संस्कृति छात्रों की भलाई से समझौता किए बिना उनकी इच्छाओं का समर्थन करता है।
क्या आपका शहर भी कोचिंग हब बन रहा है?
हाँ
नहीं
क्या आपके शहर में ऐसी कोई सरकारी पहल या सामुदायिक प्रयास हैं जो शैक्षिक असमानताओं को कम करने के लिए फ्री कोचिंग की सुविधा दे रहे हैं?
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