एक अनोखा अनुभव
- connect2783
- Aug 15, 2021
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Updated: Jul 15
रोहण की कहानी ‘राहगीरी’ नामक एक अनजाने शहर में कदम रखती है, जहाँ सड़क पर एक भी मोटर गाड़ी नहीं है। यह कहानी एक ऐसे कल्पनाशील झरोके का द्वार खोलती है, जो पर्यावरण की उलझनों को सुलझाकर नई जीवनशैली का रास्ता दिखाती है। मुंबई में पले-बढ़े रोहण की नजरों से यह शहर केवल यातायात की दिशा ही नहीं, बल्कि सोच की दिशा भी बदलता है। समय की कश्ती पर सवार शब्दों का यह अनोखा सफर शायद कभी हकीकत ही बन जाए।
आइए ले चलें आपको उस जमाने के एक शहर राहगीरी में जहाँ राम मनोहर की सरकार ने मोटर से चलने वाले सभी वाहनों पर ताला लगा दिया था। दूसरे शब्दों में कहें तो मोटर वाहनों पर बैन लगा दिया गया था। बढ़ते प्रदूषण और सालों पुरानी बीमारियों, जिनका इलाज संभव था, उनका आज के युग में असंभव हो जाना और मशीन वाले ज़माने में आलसी पन को पनपता देख सरकार के इस फैसले पर बहुत सी चुनौतियाँ सामने आई। सरकार ने अपने समूहों की बैठक में प्रतिद्वंदी को पछाड़ा और जब इस फैसले का शहर में आगमन हुआ तो उसे अनगिनत विरोधों का सामना करना पड़ा। परन्तु सरकार अपने फैसले पर अडिग थी। इस नियम को लागू हुए करीब दो महीने बीत चुके थे और लगभग सबको अब इसकी आदत हो चुकी थी।
बड़े शहर से आया एक युवक जिसका तबादला राहगीरी में हो जाने की वजह से उसके पूरे परिवार को इस शहर में आकर बसना पड़ा। चलिए मिलवाते हैं आपको रोहण और उसके परिवार से। रोहण एक बड़े शहर में रहने वाला युवक था। वह अपने माता-पिता व बहन के साथ मुंबई में रहता था। रोहण आई•टी•सी• विभाग में उत्पादन प्रबंधक था। घर में बहुत खुशियाँ थी मगर रोहण के तबादले की खबर ने सबको परेशान कर दिया क्योंकि बड़े शहर से इस नए और अनजान शहर में सारा सामान लेकर बसना थोड़ा चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा था। पर नौकरी को तो छोड़ा नहीं जा सकता। इसलिए सभी ने नए शहर में बसने के फैसले पर ही अमल करना शुरु कर दिया।
राहगीरी स्टेशन पहुँचने पर उन्हें एक भी टैक्सी नहीं दिखाई दे रही थी। केवल तीन-पहिया रिक्शा, तांगा, ठेला और साईकिल की दुकानें थी। पूरा परिवार ये मंजर देख कर दंग रह गया। रोहण ने जो घर खरीदा था, वह स्टेशन से करीब पच्चीस किलोमीटर दूर था। इतनी दूर वृद्ध माता-पिता का चलकर जाना असंभव था। उसकी बहन शैव्या बचपन से ही रईसों की तरह पली-बढ़ी है, “बचपन से ही कार, हवाई जहाज से सफर किया है, ये कौन से गाँव में लेकर आए हो आप भइया मुझे। मैं नहीं चढ़ने वाली इन छोटे-मोटे वाहनों पर।” माता-पिता के समझाने पर जब शैव्या और रोहण ने किसी तरह हामी भरी तब उन्होंने तीन पहिया रिक्शा पर सफर करने का फैसला लिया। पच्चीस किलोमीटर के सफर में उन्हें कहीं भी मोटर से या बैटरी से चलने वाले कोई वाहन नहीं दिखाई दिए। रिक्शे वाले से जब इस दुविधा का कारण पूछा तो वह हँसकर बोला, “भईया यहाँ की सरकार ने सारे मोटर वाहनों पर ताला लगा दिया है इसलिए इस शहर में आपको इन्हीं वाहनों से सफर करना होगा।” यह शब्द सुन रोहण और शैव्या के होश उड़ गए। सदियों से सुख-सुविधा में रहे दोनों के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। “माँ अब जिंदगी भर ऐसे ही रहना होगा क्या?”, शैव्या बोली।
रिक्शे वाले ने बोला, “बाबू साहब, आपलोग अभी नए हैं इसलिए ऐसा लग रहा है। शुरुआत में शहर के लोगों ने भी बहुत विरोध किया था परन्तु अब सभी को इसका फायदा नजर आ रहा है, आपलोग को भी इसकी आदत लग जाएगी और इस शहर से प्यार हो जाएगा।” रिक्शे वाले की यह बात उस परिवार को बकवास लगी और उन्होंने उसे टाल दिया।
परिवार के घर पहुँचने के बाद सभी लोग सामान एकत्रित करके घर को सजाने लगे। बड़े शहर के एक फ्लैट से बड़ा यह घर सबको बहुत अच्छा लगा और इसकी सजावट भी सब खूब मन लगाकर करने लगे पर रोहण और शैव्या अभी भी असमंजस मे पड़े थे कि रोजमर्रा के कार्य वह बिना मोटर वाहनों के कैसे कर पाएंगे। माता-पिता की दवाइयाँ, डॉक्टर के पास आना-जाना क्या सब इन्हीं वाहनों से करना पड़ेगा। क्या शैव्या अपने विद्यालय तांगा ठेला से जाएगी। इसी सोच-विचार के साथ दिन खत्म हुआ।
अगले दिन की शुरुआत जब सूरज की किरणों से हुई और ठंडी हवाएँ चेहरे को हल्के से छूकर जब वापस गई, तब सवेरा हुआ रोहण और उसके परिवार का। शैव्या का नए विद्यालय में अभी नामांकन नहीं हुआ था तो वह माता-पिता के साथ घर पर ही थी। रोहण अपने दफ्तर आने-जाने को लेकर सुबह से काफ़ी परेशान था परन्तु देर न हो, यह सोच कर वह पैदल ही चल पड़ा। दफ्तर जाकर वह काफी थक चुका था। बचपन से अब तक ऐसा पहली बार हुआ था कि वह इतनी दूर पैदल चलकर आया है। नए उत्पादन प्रबंधक के स्वागत में सभी कर्मचारी लग गए। रोहण सब देखकर खुश तो था पर उसे अब दफ्तर से वापस लौटने की चिंता खाए जा रही थी। रोहण के इस असमंजस को एक कर्मचारी ने समझ लिया और पूछा, “क्या बात है सर, आप बहुत परेशान दिख रहे हैं।” रोहण ने उसे अपने केबिन में बुलाया और विस्तार से सभी बातें उसके सामने रख दीं और एक उम्मीद से उसकी ओर देखा मानो वह उससे इस परेशानी का हल माँग रहा हो।
कर्मचारी ने कहा, “सर, मैं आपकी परेशानी समझता हूँ और हम सब यहाँ इस परेशानी से गुजर चुके हैं। शुरुआत में हमने भी सरकार को बहुत दोष दिया, खरी-खोटी सुनाई पर दो महीने के अंदर जो चमत्कार हमने देखा है उसे देखने के बाद सभी सरकार की सराहना करने लगे।
मदद के तौर पर मैं यह कहूँगा कि आप अपने लिए और पूरे परिवार के लिए एक साइकिल खरीद लीजिए और परिवार में सबको सुबह-शाम उससे सफर करने को कहिए चाहे वह स्वस्थ हों या अस्वस्थ।” यह बोलकर वह कर्मचारी वहाँ से चला गया। रोहण समझ नही पाया कि वह क्या कहना चाह रहा है। ठीक ऐसी ही बातें रिक्शे वाले ने भी कही थी । दो महीने में उन्होंने ऐसा क्या चमत्कार देख लिया। कर्मचारी की बातें मान वह अपने लिए और परिवार में सबके लिए एक-एक साईकिल ले आया। शैव्या उससे ही अपने विद्यालय जाने लगी, माता-पिता के घुटनों में दर्द होने के कारण वह केवल सवेरे ही कुछ दूर जा पाते थे और रोहण अपनी साइकिल से दफ्तर आने-जाने लगा। शुरुआत में सबको बहुत तकलीफ हुई पर धीरे-धीरे सभी लोग इसका निरंतर उपयोग करने लगे।
रोहण को हर दो महीने में अस्पताल जाना होता था। शैव्या की मधुमेह और माता-पिता के घुटनों का दर्द दिखाने के लिए। अबकी बार, जब रोहण सबको लेकर अस्पताल पहुँचा तो कुछ अलग ही मंज़र था। डॉक्टर की बातें सुन किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था। शैव्या की शुगर लेवल काफी हद तक कम थी और माता-पिता के घुटनों में जिस अम्ल ने काम करना बंद कर दिया था उसने अब धीरे-धीरे काम करना शुरू कर दिया था। रोहण को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसा हुआ कैसे?
“साइकिल, बैल गाड़ी, तीन पहिया रिक्शा, तांगा, ठेला इन सबसे प्रदूषण भी कम होगा और बीमारियाँ भी नहीं रहेगी...” यह खुशखबरी जब उसने अपने कर्मचारी को बताया तो वह मुस्कुराया और कहा, “देखा सर, मैंने कहा था ना कि सरकार का यह नियम किसी चमत्कार से कम नहीं है।
इस शहर में इतना प्रदूषण था कि खुली हवा में साँस लेना मुश्किल हो रहा था। मोटर वाहनों के सुख-सुविधा के कारण लोगों में बीमारियाँ घर कर रही थी। मधुमेह, घुटनों में दर्द, हार्ट-अटैक, मानसिक तनाव, मोटापा, गठिया जैसी कई बीमारियाँ इस शहर में डेरा डालकर बैठी थी। सरकार ने बहुत सोच समझकर यह निर्णय लिया था। साईकिल, बैल गाड़ी, तीन पहिया रिक्शा, तांगा, ठेला इन सबसे प्रदूषण भी कम होगा और बीमारियाँ भी नहीं रहेगी, हालांकि दिक्कतें आएगी परन्तु आने वाले समय में यह कोई चमत्कार जैसा होगा।” रोहण ने अब समझ लिया था उस कर्मचारी और रिक्शे वाले ने ऐसा क्यों कहा था।
घर जाकर यह घटना जब रोहण ने अपने पूरे परिवार को बतायी तो सभी बहुत प्रसन्न हुए और निर्णय लिया कि वह अब इस शहर और ऐसी समझदार सरकार को छोड़ कर बड़े शहर नहीं जाएंगे। उन्हें इस शहर से प्यार हो गया था और रोजाना साइकिल पर सफर करना रोहण और उसके परिवार ने अपनी दिनचर्या में शामिल कर लिया था। इसी तरह हँसी खुशी पूरा परिवार उस शहर में रहने लगा।
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Pritisha Anand
Originally from Sahibganj, Pritisha is currently pursuing a BA Honours degree in Political Science at the University of Delhi. Driven by a profound passion for writing, she harbors the aspiration of bringing her literary creations to the world through publication someday.
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